नदी के जल से स्नान की परम्परा
नदी के जल से स्नान करने की भारतीयों की जिद वैदिक काल की है । नदी का किनारा छूट गया तो जो भी जल मिला स्नान हेतु उसी में पवित्र नदियों की कल्पना कर ली । उदाहरण के लिए- गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरी जल अस्मिन् सन्निधिं कुरु।।तात्पर्य यह कि भारत की सभी सातों पवित्र नदियों -गंगा, यमुना , गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु कावेरी मेरे स्नान जल में सन्निधि करिये – शामिल हो जाइये और मुझे पवित्र करिये ।
इसका सीधा मतलब यह है कि हमारे वैदिक कालीन पूर्वज सदानीरा वेगवती नदियों के जल के फिजिकल-स्प्रिचुअल गुणों से परिचित हो चुके थे और नदी स्नान को सामाजिक संस्कार में बदलने के लिए तत्संबंधित सुझाव को साहित्य मे शामिल कर चुके थे । वैदिक ही नहीं परवर्ती पुराण साहित्य, धर्म साहित्य से होते हुए लोक गाथाओं मे भी नदियों की पवित्रता , देवत्व की स्थापना मिलती है ।
लेकिन नदियों के प्रति मेरी श्रद्धा मेरे निजी अनुभवों से जुडी है । मैं कालेज के विद्यार्थी जीवन से ही गहरे कुंए से बडी मेहनत से पानी खींचने की अतृप्तिकर व्यवस्था अथवा पाइप्ड-वाॅटर की पतली धार से कभी सन्तुष्ट नहीं होता था , मुझे अपने गांव के विपुल जलराशि वाले कल्याण तारा में कूद जाने के मौके की तलाश हमेशा रहती । तालाब नहाते पकड़े जाने पर पिटाई होती , पैरेंट्स डरते थे कि तालाब मे डूब न जाये। इसलिए कि निगाह रखी जाती।
जिस कस्बे में इंटर कालेज था वहां रेल तो थी पर प्रशस्त जलराशि का तालाब नहीं था । अतः निकटवर्ती पल्हाने घाट पर गंगा स्नान का अवसर मिल जाता । वेगवती गंगा में डुबकी मारने का यह सुख फिर बढ गया जब मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय का छात्र बना । जब-तब गंगा स्नान होता , एक भौतिक सुख मिलता पर मां गंगा के जल में अवगाहन एक आध्यात्मिक यात्रा है इसकी जानकारी बहुत बाद में प्रयाग के प्रसिद्ध विद्वान पण्डित देवदत्त शास्त्री जी से हुई ।
पत्रकारिता और सरकारी नौकरी में लखनऊ रहने के कारण गंगा-यमुना से दूर होने के बाद भी नदी प्रेम गया नहीं । लखनऊ में माँ गोमती हैं लेकिन लखनऊ नगर का समस्त सीवेज भार वहन करने के कारण वे सेवनयोग्य नहीं रहीं ।
अब सरकारी सेवा समाप्त होने के बाद फ्रीडम है , जब मन में तरंग हो , कर्मकांड विहीन आध्यात्मिक यात्रा में डुबकी लगाओ । चाहे प्रयागराज में चाहे कौशाम्बी में जहां भी हो गंगा जी या यमुना जी की शरण मिल जाती है ।
मेरे गांव से यमुना जी मात्र 10 किमी और गंगा जी 35 किमी हैं । अब गांव में हूं तो जब जी चाहा यमुना जी के प्रशस्त विस्तार में चहलकदमी की और विशाल मरकत जलराशि में आकण्ठ बैठ गया । जब भी कोई त्यौहार पडा तो गंगा स्नान के कडे शीतला धाम (50किमी) लिए चला गया। जाकर गंगा सेवन , साथ ही जगज्जननी माता शीतला का दर्शन । पाण्डवों द्वारा स्थापित कालेश्वर शिवलिंग के दर्शन और पूजन का अवसर भी।
नदी हमारी चेतना में
नदी हमारी चेतना में अभिन्न रूप से हैं । किसी जमाने में नदी ही जीवन रही होगी तभी वैदिक संहिताओं में 31 नदियों का उल्लेख मिलता है जिसमें से ऋग्वेद में 25 नदियों का उल्लेख किया गया है। किन्तु, ध्यान देने योग्य है कि ऋग्वेद के नदी सूक्त में केवल 21 नदियों का वर्णन किया गया है।