क्या चीन भारत को घेर रहा है?

चीन के साथ डिप्लोमेटिक चैनल खोल के रखने होंगे. बातचीत की गुंजाइश सदैव बनी रहे

अनुपम तिवारी, स्वतंत्र, लेखक
अनुपम तिवारी

आज से ठीक एक वर्ष पहले दो बड़े देशों के सैनिकों के बीच, युद्ध के लिहाज से दुनिया की सबसे दुर्गम जगहों में से एक पर, हाथापाई शुरू होती है जो देखते ही देखते इतना विकराल रूप ले लेती है कि दोनों पक्षों को मिलाकर कम से कम 40 सैनिक मारे जाते हैं. ये मुठभेड़ सामान्य नही थी, इसमे परंपरागत हथियार इस्तेमाल नही किये गए. आपस मे लात घूंसे और नुकीली तारों से बंधे घातक डंडे चले थे. जिन सैनिकों का जीवन इन आदिम हथियारों की बलि चढ़ा होगा, उनके द्वारा सहे गए दर्द की कल्पना करना भी मुश्किल है.

तब से अब तक श्योक नदी में काफी पानी बह चुका है. परंतु जमीन पर हालात आज भी तल्ख हैं. 11 दौर की कोर कमांडर स्तर  की बातचीत से रिश्तों पर पड़ी बर्फ कुछ पिघली जरूर है. पेंगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से दोनों सेनाएं हट चुकी हैं मगर अब भी पूर्णतः शांति की संभावना दूर की कौड़ी दिखती है. गोगरा हॉट स्प्रिंग, देमचोक और डेप्सोंग जैसे इलाकों पर सैनिकों के पीछे हटने पर अब भी दोनों पक्ष एक मत नही हो पाए हैं.

एक साल से बना हुआ तनाव

2020 के फरवरी-मार्च में जब भारत कोरोना की पहली लहर के सदमे में था, चीनी सेना एलएसी से सटे इलाकों में युद्धाभ्यास की आड़ में कई सामरिक ठिकानों पर जमा होने लगी. अतिमहत्वपूर्ण समझे जाने वाले पेंगोंग झील का इलाका हो चाहे देपसांग के मैदान, या फिर गलवान घाटी, लगभग समूची लदाख सीमा पर चीनी गश्ती दल नज़र आने लगे, जो दशकों से चली आ रही यथास्थिति को बदलने पर आमादा थे.

सीमा पर हालात अनियंत्रित होने लगे. 15 जून को गलवान घाटी में कर्नल संतोष बाबू के नेतृत्व में पेट्रोलिंग पर गयी सैन्य टुकड़ी का चीनियों से सामना हुआ और विवाद इतना बढ़ गया कि बहादुर कर्नल समेत 20 भारतीय सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ गयी. अपनी अदम्य वीरता के लिए मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित कर्नल बाबू और उनके जांबाजों ने भारतीय आकलन के अनुसार कम से कम 30 चीनियों को मौत के घाट उतार दिया था, वह भी बिना एक भी गोली चलाये.

यह सारा झगड़ा भारतीय सीमा की ओर, चीनियों द्वारा एक सैन्य चौकी बनाने के प्रयास के कारण हुआ था. भरतीय सेना ने तत्काल आवश्यक सुरक्षा प्रयासों को तेज करते हुए, चीन को किसी भी तरह की बढ़त लेने से रोक दिया. कैलाश रेंज पर कब्जा करना भारत की सबसे बड़ी रणनीतिक सफलता साबित हुई. ब्लैक टॉप इत्यादि महत्वपूर्ण चोटियों पर बैठ जाने से मोलडो गैरिसन जैसे चीन के कई महत्वपूर्ण ठिकाने अब भारतीय सैनिकों की बंदूकों के निशाने पर आ गए थे.

गलवान मुठभेड़ के मायने

गलवान की घटना को स्वतः स्फूर्त मानना गलत होगा. यह दो स्थानीय कमांडरों द्वारा अति उत्तेजना में की गई झड़प नही थी. चीनी सेना पिछले कई सालों से सीमा पर इस तरह की हरकतें करती रही है. वास्तव में यह एक पूर्व निर्धारित कदम था. सम्भव है वह इस तरह के झगड़े दूसरे स्थानों पर भी करता किंतु भारत की ओर से इतने विस्फोटक जवाब की उसने आशा नही की थी. यह भी सम्भव है कि उस स्थिति में चीन की सारी योजना ताश के पत्तों की तरह ढह गई.

चीनी सेना भी कई इलाकों पर बढ़त लेती दिखी. दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में आज भी उनकी उपस्थिति भारत के लिहाज से काफी खतरनाक है. वह इस स्थिति में हैं कि कारगिल जाने वाले रास्ते को कभी भी बाधित कर सकते हैं. 

भारत के धैर्य की परीक्षा

बीते एक साल में पीएलए ने सीमा में अपनी ओर तमाम तरह के स्थायी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर लिए हैं. दावे यहां तक किये जा रहे हैं कि भारत के क्षेत्र में भी वह मौजूद हैं. राजनैतिक नेतृत्व चाह कर भी इस बारे में कुछ कहने से बचता दिखता है. अविश्वास हर तरफ व्याप्त है. 

इस साल अप्रैल के बाद से दोनों तरफ से यथास्थिति बहाली की ओर कोई प्रगति नही दिखाई दी है. बेहद दुर्गम इलाकों में 50 से 60 हजार सैनिक हाड़ जमा देने वाले मौसम का सामना करते हुए सजगता पूर्वक तैनात खड़े हैं. कह सकते हैं कि यह धैर्य की परीक्षा भी है और संसाधनों के जुटाने की होड़ भी.

क्या चीन भारत को घेर रहा है?

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के ताजा रवैये को देखते हुए यह जरूर कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में इस समस्या का हल निकलने वाला नही है. लदाख से सटे तिब्बत के इलाके में पाकिस्तानी और चीनी वायुसेना का ताजा युद्धाभ्यास इसकी एक बानगी है. सिर्फ लदाख ही नही हिन्द महासागर में भी चीन भारत को चौतरफा घेरने की योजना पर स्पष्ट रूप से काम कर रहा है. 

पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में वह आक्रामक है. म्यांमार, श्रीलंका, पाकिस्तान से लेकर सुदूर जंजीबार तक वह अपने बंदरगाह विकसित कर रहा है. LAC के ऊपर लगातार तैनात सैनिकों की अदलाबदली की जा रही है. और उसकी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना पर अनवरत काम चल रहा है. भारत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के क्वैड संगठन बनाने का चीन ने बड़ी सख्ती से विरोध किया है.

भारत के विकल्प

भारत के सम्मुख अब विकल्प सीमित होते जा रहे हैं. चीन की बढ़ती आक्रामकता का जवाब देने के लिए कई स्तरों पर एक साथ समग्र प्रयास करने पड़ेंगे. आवश्यक सैन्य उपकरणों की खरीद और उनके ऑपरेशनल होने में एक लंबा समय निकल जाता है, इस प्रक्रिया में तेजी आवश्यक है. 

युद्धों के मायने बदल रहे हैं, सेनाओं को स्वचालित और कृत्रिम बुद्धिमत्ता वाले उपकरणों की ओर जल्द से जल्द ले जाना होगा. साथ ही देश के अंदर ऐसी तकनीकी विकसित करनी होगी कि साइबर हमलों व हैकरों से अपने तंत्र को बचाया जा सके. इसके लिए विदेशी निवेश भी आकर्षित किये जाने चाहिए.

इसके साथ ही आक्रामक विदेश नीति फौरी जरूरत है. चीन ने विश्व भर में अपने दुश्मन बना लिए हैं, भारत चीन के विरोध में उठने वाली आवाजों का नेता बन सकता है. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस इत्यादि देशों के साथ मिल कर चीन के खिलाफ गोलबंदी अधिक तेजी से करनी पड़ेगी. क्वैड को सिर्फ सामरिक समूह से इतर सैन्य गठजोड़ वाले गुट के रूप में परिवर्तित किया जाना चाहिए. क्वैड समूह में अधिक देशों को साथ ला कर क्वैड प्लस की कल्पना को मूर्त रूप देने का समय आ गया है. 

आर्थिक रूप से चीन पर कई प्रतिबंध लगा कर हमने एक संदेश देने की कोशिश की थी, ऐसे ही संदेश लगातार देते रहना बेहतर होगा. सबसे जरूरी बात यह है कि चीन के साथ डिप्लोमेटिक चैनल खोल के रखने होंगे. बातचीत की गुंजाइश सदैव बनी रहे हमारी ताकत बढ़ती रहे, साथ ही सीमा पर धैर्य भी बना रहे ऐसी स्थिति हमारे लिए फायदेमंद रहेगी. 

(लेखक वायुसेना से अवकाशप्राप्त हैं। रक्षा एवं सामरिक मामलों पर विभिन्न मीडिया चैनलों पर अपने विचार रखते हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published.

12 + 4 =

Related Articles

Back to top button