अब ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ में भी बोली जाएँगी – हिंदी , उर्दू और बांग्ला भाषाएँ

🖎 प्रमोद भार्गव 

प्रमोद भार्गव

लंबे कूटनीतिक प्रयासों के बाद हाल में हिंदी, उर्दू और बांग्ला भाषाओं को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ में मान्यता मिल गई है। दक्षिण एशिया की इन तीनों भाषाओं को बोलने वाली विशाल आबादी दुनियाभर में फैली है और अब समय आ गया है कि उन्हें ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ जैसी वैश्विक संस्था में हैसियत दी जाए। प्रस्तुत है, इसी विषय की पड़ताल करता प्रमोद भार्गव का यह लेख।–संपादक

आखिरकार दीर्घकालिक प्रयासों के बाद भारत की राजभाषा हिंदी ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (संरा) की आधिकारिक भाषा बन गई है। भारत की ओर से लाए गए हिंदी के प्रस्ताव को महासभा ने मंजूरी दे दी है। हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए ‘संरा’ को भारत सरकार ने आठ लाख डॉलर की मदद भी की थी।  

हिंदी के साथ बांग्ला और उर्दू को भी इस श्रेणी में लिया गया है। अब ‘संरा’ में सभी कामकाज और जरूरी संदेश व समाचार इन तीनों भाषाओं में उपलब्ध होंगे। इन भाषाओं के अलावा मंदारिन, अंग्रेजी, अरबी, रूसी, फ्रेंच और स्पेनिश पहले से ही ‘संरा’ की आधिकारिक भाषाएं हैं।

‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को पचास देशों के एक अधिकार-पत्र पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी। वर्तमान में इसके 193 देश सदस्य हैं। शुरुआत में ‘संरा’ की आधिकारिक भाषाएं 4 थीं – अंग्रेजी, रूसी, फ्रेंच और चीनी। ये भाषाएं अपनी विलक्षणता या ज्यादा बोली जाने के बावजूद ‘संरा’ की भाषाएं इसलिए बन पाई थीं, क्योंकि ये विजेता महाशक्तियों की भाषाएं थीं। बाद में इनमें अरबी और स्पेनिश भी शामिल कर ली गई।

‘संरा’ में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीएस तिरूमती ने बताया कि हिंदी को 2018 से ही एक परियोजना के अंतर्गत बढ़ावा देने के लिए शुरूआत कर दी गई थी। इसी समय से ‘संरा’ ने हिंदी में ट्विटर-खाता और न्यूज-पोर्टल शुरू कर दिया था। इस पर प्रत्येक सप्ताह हिंदी ऑडियो बुलेटिन सेवा शुरू कर दी गई थी। हिंदी की सेवाएं ‘संरा’ के मंच से प्रसारित होना इसलिए जरूरी था, ताकि ‘संरा’ का महत्व दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी भाषा जानने वालों को पता हो। यह इसलिए भी जरूरी था, ताकि ‘संरा’ से जुड़े अंतरराष्ट्रीय कानून, सुरक्षा, आर्थिक-विकास, सामाजिक-प्रगति, मानव-अधिकार और विश्‍वशांति से जुड़े मुद्दों को लोग जान सकें।

भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी पांच भाषाएं विश्‍व की 16 प्रमुख भाषाओं में शामिल हैं। 160 देशों के लोग भारतीय भाषाएं बोलते हैं और वे 93 देशों के जीवन से जुड़ी होने के साथ, विद्यालय और विश्‍वविद्यालय स्तर पर पढ़ाई भी जाती हैं। चीनी भाषा मंदारिन बोलने वालों की संख्या हिंदी बोलने वालों से ज्यादा जरूर है, किंतु अपनी चित्रात्मक जटिलता के कारण, इसे बोलने वालों का क्षेत्र चीन तक ही सीमित है। शासकों की भाषा रही अंग्रेजी का शासकीय व तकनीकी क्षेत्रों में प्रयोग तो अधिक है, किंतु उसके बोलने वाले हिंदी-भाषियों से कम हैं।

विश्‍व-पटल पर हिंदी बोलने वालों की संख्या दूसरे स्थान पर होने के बावजूद इसे ‘संरा’ में अब जाकर शामिल किया गया है। भाषाई आंकड़ों की दृष्टि से जो सर्वाधिक प्रमाणित जानकारियां सामने आई हैं, उनके आधार पर ‘संरा’ की छह आधिकारिक भाषाओं की तुलना में मंदारिन 80 करोड़, हिंदी 55 करोड़, स्पेनिश 40 करोड़, अंग्रेजी 40 करोड़, अरबी 20 करोड़, रूसी 17 करोड़ और फ्रेंच 9 करोड़ लोग बोलते हैं। जाहिर है, हिंदी ‘संरा’ की अग्रिम पंक्ति में खड़ी होने का वैध अधिकार रखती है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 43.63 प्रतिशत आबादी हिंदी बोलती है। यदि इसमें भोजपुरी, ब्रज, अवधी, बघेली, बुंदेली और हिंदी से मिलती भाषाएं भी जोड़ दी जाएं तो इस संख्या में 13.9 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे और यह प्रतिशत बढ़कर 54.63 हो जाएगा।

अब चूंकि हिंदी ‘संरा’ की आधिकारिक भाषा बन गई है, इसलिए भारत को ‘सुरक्षा परिषद्’ की सदस्यता मिलने की उम्मीद भी बढ़ गई है। इसके अलावा जो अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं, उनमें भी हिंदी के माध्यम से संवाद व हस्तक्षेप करने का अधिकार भारत को मिल जाएगा। ये संगठन हैं – ‘अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी,’ ‘अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी,’ ‘अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ,’ ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन’ (यूनेस्को), ‘विश्‍व स्वास्थ्य संगठन,’ ‘संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन’ और ‘संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय बाल-आपात निधि’ (यूनिसेफ)। इन वैश्विक मंचों पर हमारे प्रतिनिधि यदि देश की भाषा में बातचीत करेंगे तो देश का आत्मगौरव तो बढ़ेगा ही, भारत के लोगों का यह भ्रम भी टूटेगा कि हिंदी में अंतरराष्ट्रीय संवाद कायम करने की साम्यर्थ्य नहीं है।

‘केंद्रीय हिंदी निदेशालय’ द्वारा ‘संरा’ को भेजी गई रिपोर्ट में विश्‍वग्रंथों के आंकड़ों को आधार बनाया गया था। इस परिप्रेक्ष्य में ‘एनसाइक्लोपीडिया’ के मुताबिक मातृभाषा बोलने वाले लोगों की संख्या बताई गई थी – मंदारिन 83.60 करोड़, हिंदी 33.30 करोड़, स्पेनिश 33.20 करोड़, अंग्रेजी 32.20 करोड़, अरबी 18.60 करोड़, रूसी 17 करोड़ और फ्रेंच 7.20 करोड़। ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ के अनुसार अंग्रेजीभाषियों की संख्या 33.70 करोड़ है, जबकि हिंदीभाषियों की संख्या 33.72 करोड़। हालांकि ‘गिनीज बुक’ ने हिंदीभाषियों की संख्या 1991 की जनगणना के आधार पर ही बताई थी। ‘विश्‍वभाषा ई-पत्रक स्रोत ग्रंथ’ ‘लैंग्वेज एंड स्पीकिंग कम्युनीटीज‘ के अनुसार तो दुनिया में 96.60 करोड़ लोग हिंदी बोलते व समझते हैं। यानी हिंदी का स्थान मंदारिन से भी ऊपर है।

इन तथ्यपरक आंकड़ों से प्रमाणित होता है कि संख्याबल की दृष्टि से मंदारिन को छोड़ अन्य भाषाओं की तुलना में हिंदी की स्थिति हमेशा मजबूत रही है। हिंदी के साथ एक और विलक्षणता जुड़ी हुई है कि जितने राष्ट्रों की जनता द्वारा वह बोली व समझी जाती है, ‘संरा’ की पहली चार भाषाएं उतनी नहीं बोली जातीं। हिंदी भारत के अलावा नेपाल, मारीशस, फिजी, सूरीनाम, ग्याना, त्रिनिनाद, टुबैगो, सिंगापुर, भूटान, इंडोनेशिया, बाली, सुमात्रा, बांग्लादेश और पाकिस्तान में खूब बोली व समझी जाती है।

भारत की राजभाषा हिंदी है तथा पाकिस्तान की उर्दू, इन दोनों भाषाओं के बोलने में एकरूपता है। दोनों देशों के लोग लगभग 60 देशों में आजीविका के लिए निवासरत हैं। इनकी संपर्क भाषा हिंदी मिश्रित उर्दू अथवा उर्दू मिश्रित हिंदी है। हिंदी फिल्मों और दूरदर्शन कार्यक्रमों के जरिए भी हिंदी का प्रचार-प्रसार निरंतर हो रहा है। विदेशों में रहने वाले ढाई करोड़ हिंदीभाषी हिंदी फिल्मों, टीवी सीरियलों और समाचारों से जुड़े रहने की निरंतरता बनाए हुए हैं। ये कार्यक्रम अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, हालैंड, दक्षिण अफ्रीका, फ्रांस, थाइलैंड आदि देशों में रहने वाले भारतीय खूब देखते हैं।

भाषा से जुड़े वैश्विक ग्रंथों में दर्ज आंकड़ों के अनुसार तो हिंदी को सन् 2000 के आसपास ही ‘संरा’ की भाषा बना देना चाहिए था, लेकिन विश्‍व-पटल पर भाषाएं भी राजनीति की शिकार हैं। जो देश अपनी बात मनवाने के लिए लड़ाई को तत्पर रहे हैं, उन सभी देशों ने अपनी-अपनी मातृभाषाओं को ‘संरा’ में बिठाने का गौरव हासिल कर लिया। लेकिन अब वैश्वीकरण के दौर में हिंदी संपर्क भाषा के रूप में भी प्रयोग होने और विज्ञापन की सशक्त भाषा के रूप में उभर गई है। भारत समेत अन्य एशियाई देश हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में अपनाने लगे हैं। कई योरोपीय देशों में एशियाई लोगों के लिए हिंदी संपर्क भाषा के रूप में भी प्रयोग होने लग गई है। जाहिर है, हिंदी को ‘संरा’ की आधिकारिक भाषा बनाना आवश्यक हो गया था।(सप्रेस)


❖  श्री प्रमोद भार्गव स्वतंत्र लेखक और पत्रकार हैं।

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