इक्कीसवाँ सदी में हिन्दी: वैश्विक परिदृश्य

इक्कीसवीं सदी तेजी से नवीनतम प्रौद्योगिकी की ओर बढ़ रही है। इस नवीन प्रौद्योगिकी ने इंटरनेट के माध्यम से नई दुनिया को जन्म दिया है। यह नई दुनिया है वेब जगत की। वेब जगत ने संचार क्रांति के माध्यम से पूरी दुनिया को नजदीक ला दिया है। इस नई दुनिया में मुख्य भूमिका है युवा वर्ग की। दुनिया की सबसे ज्यादा युवा आबादी भी भारत में ही है। यहां दुनिया की लगभग 21% युवा आबादी निवास करती है। भविष्य में यह आबादी अपने ज्ञान एवं कौशल के बल पर पूरी दुनिया में अपनी पैठ जमाने में और अधिक सक्षम होगी। तब यह भी सम्भव है कि हमारी भाषा हिन्दी वैश्विक परिदृश्य में अपनी उपस्थिति को और अधिक गौरवान्वित करेगी।

    वर्तमान में हिंदी भाषा लगभग 175 देशों में अपना स्थान बना चुकी है। विश्व के प्रायः सभी विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। विश्व की तीन प्रमुख भाषाओं; अंग्रेजी, हिंदी, मंदारिन में हिंदी की विशेष जगह बनी हुई है। यह केवल साहित्य और धर्म की भाषा नही है बल्कि ज्ञान-विज्ञान के समस्त क्षेत्रों में इसकी पैठ है। आई आई टी बी.एच्.यू. द्वारा बी. टेक की पढ़ाई हिंदी भाषा में अभी हाल ही में शुरू की गई है। विभिन्न टी. वी. चैनल और विदेशी पत्र-पत्रिकाएं( जिनमें इकोनॉमिक टाइम्स और बिजनेस स्टैंडर्ड जैसे बड़े नाम भी शामिल हैं) हिंदी भाषा में भी प्रकाशित होते हैं।

   हिंदी के वैश्विक प्रसार में वर्तमान समय में प्रचलित तकनीकी सूचना प्रौद्योगिकी का भी विशेष योगदान है। वैसे तो अस्सी के दशक में ही हिंदी का कम्प्यूटर की भाषा के रूप में प्रयोग होने लगा था। लेकिन बीसवीं शती तक आते-आते इंटरनेट पर हिंदी भाषा के प्रयोग ने गति पकड़ी। यह वह समय था जब हिंदी का एक नया रूप हमारे सामने आया-‘ हिंदी ब्लॉगिंग’। इसे सामान्य भाषा में ‘हिंदी चिट्ठा’ भी कहा जाता है। वैसे तो इंटरनेट पर ब्लॉग्स्पॉट की शुरुआत वर्ष 1999 से होती है। 2003 में गूगल द्वारा इसे खरीदने के बाद यह इंटरनेट पर जानकारियां साझा करने का सशक्त माध्यम बना। उसी समय आलोक कुमार अपने पहले हिंदी ब्लॉग ‘नौ दो ग्यारह’ लेकर आये। यह पहला हिंदी भाषा का ब्लॉग था जो हिंदी सम्बन्धी प्रयोगों के बारे में जानकारियां उपलब्ध कराता था। उस समय हिंदी भाषा में ब्लॉग लिखने में काफी दिक्कतें आती थी। सन 2007 से ब्लॉग्स्पॉट में हिंदी यूनिकोड का समर्थन एवं ट्रांसलेशन टूल के उपयोग से ब्लॉग लेखन में हिंदी माध्यम का प्रचलन काफी तेज होने लगा है। दो दशक से भी कम समय में आज लगभग 50000 से अधिक हिंदी ब्लॉग विभिन्न ब्लॉग साइट्स (ब्लॉगर, वर्डप्रेस, माय स्पॉट, वेब दुनिया) पर इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध हैं। इन हिंदी ब्लॉग्स की सूची में हिंदी कुंज, कविताकोश, हिंदी साहित्य, ज्ञान दर्पण, हिंदी युग, ज्ञान कुंज, साहित्य कुंज, , समयांतर, समकेअलीन जनमत, रचनासमय, जानकीपुल ( साहित्य सम्बन्धी), क्रेडि हेल्थ, गोमेडी, हिंदी साइंस फिक्शन , स्वास्थ्य सबके लिए, आयुर्वेद, क्लाइमेट वाच,माई उपचार( स्वास्थ्य सम्बन्धी ), अच्छी बातें, ज्ञानी पण्डित, आपकी सफलता ( प्रेरणा दायक ), इंडिटेल्स, मुसफिर चलता जा ( यात्रा सम्बन्धी ), डिजिट, बीजीआर, गैजेडट्स 360, सपोर्ट मी इंडिया ( तकनीक सम्बन्धी ), एनडीटीवी इंडिया, आजतक ,जी न्यूज हिंदी, बीबीसी न्यूज़, सत्य हिंदी, हरि भूमि, राष्ट्रीय भारत ( समाचार सम्बन्धी ) शामिल है। हिन्दी भाषा को समृद्धशाली बनाने में प्रवासी लेखकों के ब्लॉग का भी विशेष स्थान है। जिनमे मुख्य हैं – व्योम के पार,  भारत दर्शन, नारी, शब्दों का उजाला, नारी, आओं सीखे हिंदी इत्यादि। स्थानाभाव के कारण हिंदी ब्लॉग्स की विस्तृत सूची को यह शामिल करना असंभव है। आज ये सभी ब्लॉग हिंदी भाषा में ज्ञान- विज्ञान ,तकनीक, धर्म- दर्शन,खान-पान, कृषि सम्बन्धी, रहन-सहन, यात्राएं समाज सेवा, पर्यटन स्वास्थ्य इत्यादि विषयों के माध्यम से पाठकों के विशाल समूह तक पहुँच रहे हैं। इन ब्लॉग्स के माध्यमम से सभी आपीने विचारों को अभियक्त कर रहे हैं

   इस नए दौर के चलन में हिन्दी भाषा गतिमान है। नए-नए आविष्कार और ग्लोबल होते बाजार ने हिंदी को वैश्विक तो बनाया है लेकिन इसके स्वरूप में भी परिवर्तन किया है। तकनीक और पारिभाषिक शब्दावली की दुरूहता जनसामान्य हिंदी पाठकों के लिए जगजाहिर है। इस समस्या के प्रति भी हिंदी ब्लॉग्स काफी सजग हैं। वह अपने पाठकों को बेहद सरल एवं सहज शब्दावलियों के माध्यम से ज्ञान उपलब्ध करा रहे हैं। हिंदी को शब्दिक रूप से समृद्ध और उसकी सम्प्रेषणीयता को प्रभावी बना रहे हैं। हिंदी ब्लॉग्स में उपलब्ध पाठ्य सामग्री युवाओं को रोचक ढंग से पढ़ने का विकल्प प्रस्तुत कर रही हैं।

  इलेक्ट्रॉनिक संचार के  क्षेत्र में हिंदी के इस बढ़ते प्रयोग से इसकी अंतरराष्ट्रीय भूमिका भी मजबूत हो रही है। इन ब्लॉगिंग साइट्स के माध्यम से आज लेखक और पाठक एक दूसरे से सीधे जुड़ते हैं। पढ़ने के बाद पाठक अपनी प्रतिक्रिया तुरन्त ब्लॉग्स पर लिख सकता है, जो लेखक तक आसानी से पहुँच सकती है।

  इस नवीन तकनीक ने हिंदी भाषा को एक वैश्विक मंच दिया है। अब लेखक और पाठक का यह रिश्ता राष्ट्रीय से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुँच गया है। सीमा का यह अतिक्रमण हमारी भाषा को अन्य भाषाओं से अधिक विकासशील बना रही है और हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में दृढ़ता से प्रतिष्ठित करने में महती भूमिका निभा रही है।

 निधि अग्रवाल , शोध छात्रा

    हिंदी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय

    लखनऊ

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