हरीतिकी (हरड़) के चिकित्सीय उपयोग पर चर्चा

हरीतिकी को शास्त्रों में माँ कहा गया है

हरीतिकी हरड़ अथवा हर्रे एक बहुउपयोगी आयुर्वेदिक औषधि है. वरिष्ठ पत्रकार राम दत्त त्रिपाठी ने लखनऊ के वैद्य अभय तिवारी और आयुषग्राम चित्रकूट के वैद्य मदन गोपाल वाजपेयी से वार्ता की.

श्री रामदत्त त्रिपाठी: हरीतिकी को शास्त्रों में माँ कहा गया है और सामान्यतः लोग विभिन्न प्रकार – चूर्ण, वटी या फल के रूप में प्रयोग करते हैं। वैद्य त्रिपाठी जी! आप इस विषय पर प्रकाश डालें कि इसे माँ क्यों कहा जाता है और हरड़ का किस रूप में, और किस रोग में, किस प्रकार से सेवन करना लाभकारी होता है?

वैद्य अभय तिवारी: हरड़ को हमारे शास्त्रों में एक रसायन मानकर अत्यंत उच्च स्थान दिया गया है और हमारे प्राचीन ऋषियों ने तो इसे विभिन्न रोगों के लिए एकल औषधि के रूप में महिमामंडित किया है। बल्कि, यहाँ तक कहा गया है कि हरीतिकी माँ के समान पोषण करती है, माँ कभी कुपित भी हो सकती है लेकिन, उदर में गई हुई हरीतिकी कभी हानिकारक नहीं होती है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति की माँ घर पर नहीं है, तो हरड़ को उसकी माँ समझना चाहिए। यहाँ तक कि इसे सेवन करने, लेप करने और केवल सूंघने और स्पर्श करने मात्र से भी इसका लाभ मिलता है। वर्षा ऋतु में सेंधा नमक के साथ, शरद ऋतु में पिप्पली के साथ, बसंत ऋतु में शहद के साथ और ग्रीष्म ऋतु में गुड के साथ इसका सेवन करना चाहिए। 

श्री रामदत्त त्रिपाठी: डॉ. वाजपेयी जी! आपने विभिन्न रोगियों या स्वस्थ व्यक्तियों में हरड़ का किस किस प्रकार से प्रयोग कराया है?

डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: महर्षि चरक कहते हैं कि हमारे शरीर के विभिन्न स्रोतसों (channels) को साफ करने वाली सभी औषधियों में हरीतिकी (हरड़) सर्वश्रेष्ठ औषधि है। हरीतिकी एक broad spectrumऔषधि है। हरीतिकी समस्त मनोरोगों और शारीरिक रोगों का शमन कर इंद्रियों को प्रसन्न करती है और बुद्धि एवं बल की वृद्धि करती है। यह शोध भारतीय मनीषियों ने 5000 वर्ष पूर्व कर लिया था। यह आयुवर्धक होने से वय: स्थापन (बढ़ती आयु के प्रभाव) को रोकती भी करती है। यह अलग अलग अनुपान से वात, पित्त कफ तीनों दोषों का अनुलोमन करती है। जब यह चबा कर ली जाती है तो अग्निवर्धक होने से शरीर के मेटाबोलिज़्म को ठीक करती है, जब पीस कर चूर्ण के रूप में सेवन करते हैं तो विरेचन कराती है, उबाल कर गरम गरम लेने से संग्राही गुण होने से मलबंधन करती है। जब इसे भून कर सेवन करते हैं तो वात, पित्त और कफ तीनों दोषों का शमन करती है। एरंड के साथ भून कर सेवन करने से वातानुलोमन करती है और अध्मान और गठिया जैसे रोगों में बहुत लाभकारी है। जब हरीतिकी को कच्ची अवस्था में तोड़ कर सुखा ली जाती है तो यह छोटी हरड़ कहलाती है तथा सूखकर स्वतः गिरने पर बडी हरड़ कहलाती है। एरंड भ्रष्ट हरीतिकी के लिए छोटी हरड़ का प्रयोग किया जाता है। हरड़ के करी भेद हैं, चेतकी हरड़ इतनी गुणकारी है कि हरड़ के वृक्ष के नीचे से गुजरने पर भी विरेचन करा देती है।

श्री रामदत्त त्रिपाठी: गोमूत्र हरीतिकी पर भी प्रकाश डालें। 

डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: हम गोमूत्र हरीतिकी का निर्माण दो प्रकार से करते हैं। एक विधि – हरड़ को गाय के मूत्र में भून कर सुखा लेते हैं। यह योग कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और उदर रोगों में बहुत लाभकारी है। हरड़ के टुकड़े कर मिट्टी या पत्थर के पात्र में डाल कर थोड़ा थोड़ा गोमूत्र डालकर लगातार धूप में रखते हैं। जब  गोमूत्र सूख जाता है तो फिर डालते हैं यह क्रिया एक सप्ताह भी करते हैं और एक माह तक भी धूप में सुखाते हैं।फिर उसे पीस कर रख लेते हैं। यह योग बवासीर, जलोदर, यकृत रोगों,कुष्ठ रोग में बहुत लाभकारी है। रक्त के जमाव में भी अद्भुत कार्य करती है। रक्तचाप को संतुलित रखता है।   

श्री रामदत्त त्रिपाठी: वैद्य तिवारी जी! क्या हरीतिकी घाव और त्वचा रोगों में भी लाभकारी है?

वैद्य अभय तिवारी: एक घाव जिसमें कई मुख बन जाते हैं या जो कई जगह फैल जाता है, उस घाव को हरड़ के क्वाथ से धोने पर ठीक करता है। मैं आदरणीय वाजपेयी जी की बात को ही आगे बढ़ाना चाहूँगा किएरंड में भुनी हुई हरीतिकी वातशामक तो है ही, कफ और एलर्जी की रामबाण दवा है। यदि एरंड में भुनी हुई तीन नग हरीतिकी प्रतिदिन चबा कर खाएं तो हर प्रकार की एलर्जी में यह बहुत लाभकारी है। मैंने कोरोना शुरू होने पर एकल दृव्य के रूप में हरीतिकी का चयन किया था और उसका बहुत लाभ मिला। कोई भी वायरस हो हमारे शरीर में नासिका या मुख से प्रवेश करता है। जब हम हरीतिकी का सेवन चबा कर करते हैं, तो कषाय रस होने से हमारे मुख की मांसपेशियों की रक्षा करती है। उसके बाद जब हम उसे अंदर लेते हैं तो यह पेट के गट माइक्रोवाइटा की रक्षा करती है और हमारे शरीर के लाभदायक बैक्टीरिया का भी बचाव करती है। 

श्री रामदत्त त्रिपाठी: वैद्य तिवारी जी! हरीतिकी माँ के समान रक्षा करती है तो क्या इसका सेवन करने के पूर्व रोगी के कोष्ठ का विचार नहीं करना चाहिए?

वैद्य अभय तिवारी: बिलकुल  कोष्ठ का विचार करना चाहिए। हरीतिकी उष्णवीर्य प्रधान औषधि है इसलिए पित्तज व्यक्ति को इसका अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए। शास्त्रों में यह भी लिखा है कि वैद्य को रोगी के बल, कोष्ठ, काल आदि पर विचार करके युक्तिपूर्वक औषधि का चयन करना चाहिए। मैं आदरणीय वाजपेयी जी के सामने एक प्रश्न रखना चाहता हूँ कि क्या हरीतिकी सूंघने से भी कार्य करती है? यदि हरड़ चूर्ण या अर्क को नाक में स्प्रे करने से लाभ करेगी?

डॉ. मदन गोपाल वाजपेयी: यह सुझाव बहुत अच्छा है। हरड़ को केवल शरीर के लिए ही विचार करना बहुत ही स्थूल बात होगी। नाक को मस्तिष्क का प्रवेश द्वार कहा गया है। चूंकि हरीतिकी तत्काल लाभ करने वाली औषधि है, स्मृति एवं बुद्धि में भी बहुत लाभकारी है। इसलिए अणुतेल की भांति ही हरड़ का अर्क ही क्यों तेल बनाकर यदि नस्य के रूप में प्रयोग किया जाए तो न केवल बैक्टीरिया से बचाव करेगी बल्कि अन्य बहुत से रोगों में भी लाभ करेगी। 

हर्रे अथवा हरीतिकी

श्री रामदत्त त्रिपाठी: सुना है कि हरीतिकी के पेड़ पहाड़ों पर होते हैं, यह पाई कहाँ जाती है। वैद्य अभय तिवारी: ऐसा नहीं है, हरीतिकी पहाड़ी और मैदानी दोनों ही स्थानों पर होती है। यह कोई दुर्लभ वनस्पति नहीं है। 

श्री रामदत्त त्रिपाठी: कहा जाता है कि कोई भी औषधि बिना चिकित्सक की सलाह के नहीं लेना चाहिए। क्या हरीतिकी गर्भवती स्त्रियाँ ले सकती हैं?

वैद्य अभय तिवारी: हरीतिकी एक उष्णवीर्य दृव्य है इसलिए प्रथम तिमाही में गर्भपात की संभावना होती है अतः गर्भवती स्त्रियॉं को प्रथम तिमाही में इसे नहीं लेना चाहिए। बहुत दुर्बल व्यक्ति, रुक्ष प्रकृति के व्यक्ति को भी नहीं लेना चाहिए। 

पूरी बातचीत यहाँ सुनें

आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयीबी0ए0 एम0 एस0पी0 जीइन पंचकर्मा,  विद्यावारिधि (आयुर्वेद)एन0डी0साहित्यायुर्वेदरत्नएम0ए0(संस्कृत) एम0ए0(दर्शन)एल-एल0बी0।

संपादक- चिकित्सा पल्लव

पूर्व उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ0 प्र0

संस्थापक आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम।

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