गांधीवादी इलाबेन नहीं चाहतीं कि साबरमती आश्रम कोई तड़क-भड़क वाला पर्यटक स्थल बन जाये

मैग्सेसे पुरस्कार विजेता 89 वर्षीय गांधीवादी इलाबेन भट्ट और SAPMT के अन्य सदस्यों को तो अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी तक नहीं है. जिसके तहत 104 साल पुराने गांधीजी के साबरमती आश्रम को पुनर्विकसित कर उसे विश्वस्तरीय पर्यटक स्थल के तौर पर तैयार करने के लिए कुल 1200 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है.

मीडिया स्वराज डेस्क

मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अस्सी साल की गांधीवादी इलाबेन भट्ट चाहती हैं कि गांधीजी के साबरमती आश्रम का खोया हुआ प्रकाश एक ​बार फिर लौट आये. एक बार फिर आज की उपभोक्तावादी संस्कृति के विपरीत यह पवित्र जगह पूरी दुनिया को प्रेरित करने का केंद्र बिंदु बन सके.

Sabarmati Ashram Preservation and Memorial Trust (SAPMT) की चेयरपर्सन इलाबेन भट्ट चाहती हैं कि 1917 में महात्मा गांधी ने खुद जिस सत्याग्रह आश्रम की नींव रखी थी, एक बार फिर वह जगह सत्य के प्रयोगों की प्रयोगशाला बन सके. और यह लोकतांत्रिक और आत्मनिर्भर ग्राम गणराज्यों के संघ ‘हिंद स्वराज’ का संदेश पूरी दुनिया तक पहुंचाये.

Self-Employed Women’s Association (SEWA) की 89 वर्षीय संस्थापक इलाबेन भट्ट और SAPMT के अन्य सदस्यों को तो अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी तक नहीं है. जिसके तहत 104 साल पुराने गांधीजी के साबरमती आश्रम को पुनर्विकसित करके उसे विश्वस्तरीय पर्यटक स्थल के तौर पर तैयार करने के लिए कुल 1200 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है.

1917 से 1930 तक बा और बापू जिस ‘हृदय कुंज’ में रहे, उसके संरक्षक, मीराबेन व बिनोबा के क्वाटर्स में रहने वाले और महादेब देसाई, काकासाहेब कालेलकर व किशोरलाल मशरूवाला के करीबियों तक ने केवल यह सुना है कि पीएम मोदी साबरमती आश्रम को विश्वस्तीय पर्यटक स्थल के तौर पर तैयार कराना चाहते हैं.

गुजरात सरकार पर इस बात का जोर डाला गया था कि पीएम के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में वे साबरमती आश्रम मेमोरियल प्रीजर्वेशन ट्रस्ट के अन्य सदस्यों समेत इलाबेन भट्ट को जरूर बताएं. इसके अलावा भी गांधीजी के करीबी 150 लोगों को भी इस बाबत जानकारी देने की बात कही गई थी, जिसमें गांधी जी के पौत्र गोपाल ​कृष्ण गांधी, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, पंडित जवाहर लाल नेहरू की भांजी और लेखिका नयनतारा सहगल, फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन, जिन्होंने सिग्नेचर कैंपेन के जरिये महात्मा गांधी के इस बेहद विश्वसनीय स्मारक के बारे में यह बात स्पष्ट तौर पर कह दिया था कि इस व्यावसायिकीकरण करते ही इस पवित्र जगह की खासियत चली जायेगी.

बता दें कि सरकार ने इस क्रम में साबरमती आश्रम के आसपास मौजूद जगहों को खाली करवाने का काम शुरू भी कर दिया है और कुछ स्थानीय लोगों को बदले में चार बेडरूम का अपार्टमेंट भी नुकसान की भरपाई के तौर पर दे दिया है.

सरकार ने उन सभी के मकान सील कर दिये हैं, जिन्हें बदले में मुआवजा या फिर नये मकान अलॉट किये जा चुके हैं. हालांकि पांचों में से एक भी ट्रस्ट को इस बारे में किसी भी तरह की कोई जानकारी नहीं दी गई है.

इलाबेन कहती हैं, ‘सरकार की ओर पहली बार जब हमारे पास यह बात आयी थी तब उन्होंने एक पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन बनाकर इसे हमारे पास ​साबरमती आश्रम के पुनर्विकास की योजना के तौर पर अनुरोध स्वरूप प्रस्तुत किया था.

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नेशनल हेराल्ड को दिये इंटरव्यू में इलाबेन कहती हैं, ‘अगर सरकार किसी को मुआवजा देकर या नये घर बनाकर देती है और वे अपनी खुशी से यह जगह खाली कर देते हैं तो मुझे इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता. सरकार की ओर से मुझे यह भी कहा गया था कि आप इन सब पर अपनी नजर रख सकती हैं और मुझे इसमें कोई बुराई नजर भी नहीं आई. लेकिन केवल बिल्डिंग्स को नया करके आप गांधी जी के विचार और जीवन जीने के उनके तरीकों का पुनर्विकास नहीं कर सकते. मुझे उसे उसी तरीके से भी पुनर्विकसित करना होगा, जो खुद गांधीजी का तरीका होता.’

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