UP Assembly election 2022 चुनाव से पहले भाजपा में भूचाल , आलाकमान की खामोशी से कार्यकर्ता हतप्रभ,

ज़मीनी हक़ीक़त से बेख़बर नेता

राम दत्त त्रिपाठी

राम दत्त त्रिपाठी
राम दत्त त्रिपाठी

विधान सभा चुनाव की घोषणा होते ही उत्तर प्रदेश भाजपा में भगदड़ से चुनाव सियासी भूचाल आ गया है।भारतीय जनता पार्टी इसके बावजूद शीर्ष नेताओं की खामोशी से हतप्रभ हैं। लगातार तीन दिन में तीन मंत्रियों और क़रीब एक दर्जन विधायकों के इस्तीफे के लखनऊ से लेकर दिल्ली तक भाजपा में हड़कंप मच गया है।आयुष मंत्री धर्म सिंह सैनी ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाक़ात की है।

अब तक 3 मंत्री और 11 विधायक BJP छोड़ चुके हैं:

  1. बदायूं जिले के बिल्सी से विधायक राधा कृष्ण शर्मा।
  2. सीतापुर से विधायक राकेश राठौर।
  3. बहराइच के नानपारा से विधायक माधुरी वर्मा।
  4. संतकबीरनगर से भाजपा विधायक जय चौबे।
  5. स्वामी प्रसाद मौर्य, कैबिनेट मंत्री
  6. भगवती सागर, विधायक, बिल्हौर कानपुर
  7. बृजेश प्रजापति, विधायक
  8. रोशन लाल वर्मा, विधायक
  9. विनय शाक्य, विधायक
  10. अवतार सिंह भड़ाना, विधायक
  11. दारा सिंह चौहान, कैबिनेट मंत्री
  12. मुकेश वर्मा, विधायक
  13. धर्म सिंह सैनी, कैबिनेट मंत्री
  14. बाला प्रसाद अवस्थी, विधायक

सपा गठबंधन के एक नेता ओम् प्रकाश राजभर के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय के नेता चंद्रा शेखर आज़ाद से भी बातचीत चल रही है।

इससे पहले मंगलवार को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद मंत्री दारा सिंह चौहान ने भी अपना इस्तीफा दे दिया। दो दिन में दो मंत्रियों के इस्तीफे के बाद अभी कुछ और मंत्रियों और विधायकों के त्यागपत्र की अटकलें लगाई जा रही है।

दो दिन पहले सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ तस्वीरों में नजर आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का यह कहना है कि वह किसी पार्टी के साथ जाएंगे इस पर निर्णय 14 जनवरी के बाद करेंगे। उन्होंने 14 जनवरी को सुबह ग्यारह बजे अपने समर्थकों की मीटिंग बुलायी है। यह पूरे मामले में नया ट्विस्ट है।मौर्य ने कहा कि उनका जाना भाजपा के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा। 

ऐसे में जब प्रदेश में चुनाव आचार संहिता लग चुकी है और पार्टी पूरी तरह से चुनावी मोड में है तब पार्टी के बड़े नेताओं और विधायकों का पार्टी से बगावत करना एक नहीं कई सवालों को जन्म देता है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या उत्तर प्रदेश में भाजपा के पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में अंसतोष की आग जो लंबे समय से धधक रही है उसमें स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफा ने एक चिंगारी देने का काम किया है।   

उत्तर प्रदेश भाजपा में भगदड़

चुनाव से ठीक पहले इस्तीफा देने वाले उत्तर प्रदेश भाजपा के दोनों दिग्गज स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह पिछड़े वर्ग से आते है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि अचानक क्यों ओबीसी वर्ग के नेता भाजपा से छिटकने लगे हैं। 

इसके साथ कई अन्य भाजपा विधायकों के इस्तीफे के बाद पार्टी की कार्य प्रद्धति और कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है।खबरों के अनुसार पार्टी में मची इस भगदड़ को रोकने के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और संगठन महामंत्री सुनील बंसल को डैमेज कंट्रोल की जिम्मेदारी सौंपी है।

पर विडम्बना यह है कि स्वयं केशव प्रसाद मौर्य के सम्बंध मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अच्छे नहीं बताए जा रहे हैं। पिछले विधान सभा चुनाव के समय केशव प्रसाद मौर्य प्रदेश भजा अध्यक्ष थे और वह परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री का चेहरा थे। लेकिन पिछड़े वर्गों में बराबर यह मेसेज गया की योगी सरकार में उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य की चल नहीं रही है।

शीर्ष भाजपा नेता ग़लतफ़हमी में 

उत्तर प्रदेश भाजपा में भगदड़ का सबसे बड़ा कारण पार्टी के बड़े नेताओं का एक गलतफहमी में रहना है। 2014 se 2017 में जिस ओबीसी वर्ग पार्टी में जोड़ा  गया था और जिसने  एक मुश्त में भाजपा का साथ दिया था वह अब पार्टी से छिटक गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह सरकार चलाई उससे ओबीसी वर्ग में एक मैसेज यह गया है कि भाजपा एक बार फिर ऊँची जातियों – ब्राह्मण, बनिया और ठाकुर की पार्टी हो गई है। 

दारा सिंह चौहान योगी
वन मंत्री दारा सिंह चौहान ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को झटका दिया

भाजपा से जुड़े बड़े ओबीसी नेताओं पर वास्तव में अपने समुदाय ओबीसी कम्युनिटी का दबाव है। आरक्षण और जातीय जनगणना को लेकर पिछड़े  वर्ग में एक अंदरूनी बैचेनी है। इसके अलावा ग्रामीण अर्थव्यवस्था चौपट है। किसान आवारा जानवरों से परेशान हैं। नौजवान नौकरियों की भर्ती न होने से निराश हैं। छोटे व्यापारी भी खुश नहीं हैं।

भाजपा नेताओं का आकलन है कि हिंदुत्व के साथ किसान सम्मान राशि और फ़्री राशन, मकान आदि चुनाव जिताने के लिए काफ़ी है।

भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं 

लेकिन भाजपा नेताओं के इस्तीफे कहीं न कहीं इस बात को भी बता रहे है कि भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है। अगर इन नेताओं को लगता कि चुनाव में भाजपा  की स्थिति अच्छी है तो वह कभी भी पार्टी छोड़ने का निर्णय नहीं लेते। नेता पार्टी तभी छोड़ते है जब वह इस बात को अच्छी तरह जानते है कि पार्टी सत्ता में नहीं आ रही है। 

ज़मीनी हक़ीक़त से बेख़बर नेता 

भाजपा में चुनाव के समय भगदड़ का बड़ा कारण है कि पार्टी के नेताओं को जमीनी हकीकत (ग्रास रूट रियलिटी) का पता नहीं होना है। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व में इस गलतफहमी में जी रहा है कि सब कुछ अच्छा ही अच्छा है, जबकि धरातल पर पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता ही नाराज है। राजधानी लखनऊ से सिर्फ 110 किलोमीटर दूरी पर स्थिति बहराइच जिले के भाजपा के नेता कर्मठ कार्यकर्ता और पूर्व जिला पंचायत सदस्य अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि आज पार्टी का जमीन कार्यकर्ता निराश है। पार्टी में समर्पित कार्यकर्ताओं की जिस तरह से पांच साल उपेक्षा की गई वहीं दूसरे दलों से आए लोगों ने सत्ता की हनक दिखाकर मलाई काटी उससे अब चुनाव के वक्त पार्टी का कार्यकर्ता ख़ामोश हो गया है और जब अब कोरोना के चलते बड़ी रैलियां नहीं होकर डोर-टू-डोर चुनाव प्रचार हो रहा है तब कार्यकर्ताओं की खामोशी और मायूसी पार्टी के लिए काफी मुसीबत भी बन सकती है। 

योगी नवरात्र पूजा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के नए ब्रांड बन गए

जब मीडिया कंट्रोल्ड हो और लोगों में जेल जाने अथवा ठोंके जाने का ख़ौफ़ हो कि खुलकर बात न कह सके तब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अपने ही ‘एको  चैंबर’ में रहने लगता है , जैसे इमरजेंसी में इंदिरा गांधी के साथ हुआ था  तब उसे इस बात की गलतफहमी हो जाती है कि वह पॉपुलर है और ऐसे में उसकी जमीन खिसकने लगती है और उसे पता नहीं चलता।आज उत्तर प्रदेश भाजपा में यही हो रहा है।

ज़मीनी कार्यकर्ता नाराज़  

आज भारतीय जनता पार्टी का जमीनी कार्यकर्ता ही उससे नाराज है। जो भाजपा बूथ पर अपने कार्यकर्ता के बल पर जीत हासिल करती आई थी उससे पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ना सकता है। 

2014 में जबसे भाजपा केंद्र की सत्ता में आई थी तब से उसे दलित, ओबीसी के साथ-साथ क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व पता था लेकिन अब भाजपा को यह गलतफहमी आ गई है कि सब कुछ हम से ही है। आज भाजपा के दोनों प्रमुख चेहरे मोदी और योगी को इस बात की गलतफहमी हो गई कि चुनाव जीतने के लिए हम ही काफी है। ऐसे में हम का अंहकार अब चुनाव के समय भारी पड़ रहा है।

लखनऊ में दो महीने चर्चा चल रही थी कि स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के साथ दर्जन भर से ज़्यादा महत्वपूर्ण नेता भाजपा छोड़ देंगे, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने ज़रूरत नहीं समझी कि उन्हें रोका जाए।

आज भाजपा वहीं गलती कर रही है जो कांग्रेस कर चुकी है। कांग्रेस ने कभी इंदिरा इज इंडिया का नारा देकर लोकल नेताओं को दरकिनार कर दिया जिसके चलते कांग्रेस की रीढ़ ही टूट गई है। कुछ इस तरह की गलत आज भाजपा कर रही है।

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