डॉ0 भीमराव अम्बेडकर : एक उत्कृष्ट समाजसुधारक

डॉ0 भीमराव अम्बेडकर एक उत्कृष्ट समाज सुधारक और दबे कुचले समाज के पथ प्रदर्शक थे . उनके जन्म दिन के उपलक्ष्य पर सुप्रसिद्ध गांधीवादी और मेरठ विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ0 रवीन्द्र कुमार ड़ा अम्बेडकर के व्यक्तित्व पर नयी रोशनी डाल रहे हैं.

Dr Ravindra Kumar former vice chancellor
ड़ा रवींद्र कुमार

बाबासाहेब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर (1891-1956 ईसवीं) भारत के करोड़ों जन के हृदयों में बसा एक वह नाम है, जो उनकी आवाज था। डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का सम्पूर्ण जीवन जन्म-जन्मान्तर से विभिन्न रूपों में सजातीयों के ही शोषण के शिकार –स्वाभाविक मानवीय सुविधाओं से भी विभिन्न रूपों में वंचितों के उद्धार के लिए समर्पित रहा। अम्बेडकर एक उत्कृष्ट विधिवेत्ता और अर्थशास्त्री थे; वे शिक्षाविद तथा राजनीतिज्ञ भी थे। लेकिन, इस सबसे अधिक वे एक उत्कृष्ट समाजसुधारक थे I डॉ0 अम्बेडकर ने मानव-समानता के कार्य किया। परिश्रम और ज्ञान के बल पर अधिकारों की प्राप्ति और उन्नति का उनका जनाह्वान था। इसी की लिए, जैसा कि कहा है, उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया I वे करोड़ों दबे-कुचलों, वंचितों, शोषितों तथा पिछड़ों के पथप्रदर्शक बने।

सैकड़ों वर्षों से अस्तित्व में रहने वाली तथा सजातीयों के मध्य उच्च-निम्न का कृत्रिम भेदभाव उत्पन्न कर अत्याचारों और शोषण का माध्यम रहने वाली पाप-समान सामाजिक-धार्मिक कुरीतियाँ, कुपरम्पराएँ व कुप्रथाएँ भारत की एक विडम्बना थी। यह स्थिति हिन्दुस्तान के अधःपतन –अवनति अथवा दुर्दशा का एक प्रमुख कारण थी। इसी स्थिति के कारण देश के करोड़ों जन, मनुष्य के रूप में प्राप्त अपने स्वाभाविक अधिकारों से वंचित रहे। समाज के एक बहुत बड़े वर्ग का जीवन अति कष्टमय, दुखमय और लगभग हर प्रकार से अधिकारशून्य स्थिति में रहा। यह, वास्तव में, भारतीय समाज और राष्ट्र के लिए भारी लज्जा, एवं कलंक के समान स्थिति थी।

मानसिकता में गहरी जड़ें जमाए बैठा उच्च-निम्न का भेदभाव –सजातीय असमानता की भावना और परिणामस्वरूप लाखों-करोड़ों जन के साथ अमानवीय व्यवहार, कभी-कभी तो अति भयावह, समाज के जातियों और उपजातियों में दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन का कारण था। समुचित विकास के मार्ग की बाधा थी। तथागत गौतम बुद्ध से लेकर स्वयं डॉ0 अम्बेडकर तक के समकालीन अनेक महापुरुषों ने इस अति दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के विरुद्ध समय-समय पर आवाज उठाई। समाज को  इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए कार्य किए। इस सम्बन्ध में तथागत गौतम बुद्ध के निरन्तर ठोस प्रयास –सामाजिक परिवर्तन और मानव-समानता को केन्द्र में रखकर किए गए कार्य अलंघनीय रहे। गौतम बुद्ध ने अपने समय में धर्म तथा समाज का नेतृत्व करने वाले –कथित कुलीन अथवा उच्च वर्ग के लोगों का अपनी मानसिकता परिवर्तित करने का आह्वान किया। शाक्यमुनि ने उनके समक्ष मानव-समानता की सत्यता राखी। प्रत्येक जन के अपने उत्थान के अधिकार की वास्तविकता प्रकट की। इस दिशा में अपने क्रमबद्ध विचारों, निरन्तर प्रयासों और अभूतपूर्व कार्यों के बल पर तथागत गौतम बुद्ध सामाजिक-धार्मिक परिवर्तन के महानायक बने। वे एक युगप्रवर्तक, एक महानतम भारतीय तथा एशिया के महाप्रकाश बनकर उभरे। वे भारत के साथ ही विश्वभर के करोड़ों लोगों के समानता-आधारित आदर्शमय जीवन के पथप्रदर्शक व निर्देशक बने। तथागत गौतम बुद्ध आज भी विश्व के करोड़ों जन के जीवन के आदर्श हैं।

गौतम बुद्ध एक राजपरिवार से आए थे। वे क्षत्रिय थे। शासक वर्ग के साथ ही क्षत्रियों में उनका बहुत सम्मान और प्रभाव था। वैश्य भी उनका आदर करते थे। उनके प्रति शासक वर्ग के सम्मान, तथा क्षत्रियों में उनके स्वयं के प्रभाव ने शाक्यमुनि के सामाजिक-धार्मिक परिवर्तन मिशन में अतिमहत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। विशेष रूप से शासक वर्ग ने उनके मिशन को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान दिया।

डॉ0 भीमराव अम्बेडकर अपने बाल्यकाल, किशोर और युवावस्था में जातिगत भेदभाव –छुआछूत सहित कई सामाजिक बुराइयों का शिकार हुए थे। उन्हें अनेक बार अति दुखद –कष्टदायी स्थितियों से गुजरना पड़ा था। लेकिन, परिस्थितियों का वीरतापूर्वक सामना करते हुए डॉ0 अम्बेडकर ने यह वास्तविकता जान ली कि जीवन में उत्कृष्टता का मार्ग सही दिशा में किया गया परिश्रम है I वे, तदनुसार, कठिन परिश्रम, लगन और संघर्ष के साथ शिक्षा के उच्चतम स्तर तक पहुँचे और उन्होंने देश के सामाजिक-राजनीतिक पटल पर अपना योग्य स्थान बनाया। अपनी योग्यता और दक्षता से समाज और देश के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया। अपने जीवन और कार्यों से उन्होंने इस सत्यता को प्रमाणित किया कि प्रत्येक मानव में समान रूप से गुण होते हैं I हर एक में योग्यता होती है। समान रूप से समुचित अवसरों की प्राप्ति की स्थिति में प्रत्येक जन, स्त्री और पुरुष, अपना चहुँमुखी विकास करने और वृहद् जनकल्याण के लिए, निश्चित रूप से, योगदान करने में सक्षम है।    

डॉ0 अम्बेडकर भारतीय समाज की वास्तविकता से भली-भाँति परिचित होकर तथा अपना स्पष्ट और विकासवादी दृष्टिकोण बनाकर कि “मनुष्य मरणाधीन है; प्रत्येक को किसी-न-किसी दिन मरना ही है, लेकिन जीवन में (हर एक को) आत्म सम्मान के उदात्त विचार और अच्छे मानव-जीवन का संकल्प करना ही चाहिए”, इस दिशा में, आमजन में जागृति को केन्द्र में रखकर, जीवनभर कार्य किया।      

वर्ष 1920 से 1940 ईसवीं के मध्य की अवधि की में दलितों, पिछड़ों और वंचितों की जागृति के लिए प्रारम्भ किए गए कार्य, विशेष रूप से वर्ष 1924 ईसवीं में “बहिष्कृत हितकारिणी सभा “ का गठन, वर्ष 1925 ईसवीं में शोलापुर में दलित वर्ग के हाई स्कूल तक के इच्छुक छात्रों के लिए छात्रावास का प्रारम्भ और उन्हें अन्य सुविधाएँ प्रदान कराना, वर्ष 1920 ईसवीं में “मूकनायक” तथा वर्ष 1927 ईसवीं में “बहिष्कृत भारत पाक्षिक” का प्रकाशन, व वर्ष 1928 ईसवीं में “शोषित वर्ग शिक्षा सोसाइटी” की स्थापना जैसे डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के कार्य उनके “आत्म-सहायता, आत्मोद्धार और आत्म-सम्मान” विचार का व्यावहारिक रूप थे। वर्ष 1927 ईसवीं का चवदार तालाब सत्याग्रह (महाड़ सत्याग्रह) वर्ष 1930, 1931 ईसवीं और बाद के मन्दिर प्रवेश जैसे कार्यक्रम मानव-समानता की अनुभूति और स्थापना की दिशा में बाबासाहेब के ठोस और अनुकरणीय कार्य थे; वे संघर्ष रूपी कार्य आजतक भी प्रेरणास्रोत हैं।

डॉ0 भीमराव अम्बेडकर का बम्बई विधान परिषद और विधान सभा, संविधान सभा और अन्तरिम संसद तथा राज्य सभा के सदस्य, नेता विपक्ष (बम्बई विधान सभा के सन्दर्भ में), प्रारूप समिति के अध्यक्ष (संविधान सभा के सम्बन्ध में), तथा केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री (भारत सरकार) के रूप वर्ष 1926 से 1956 ईसवीं तक का जीवनकाल मानव-समानता, जिसमें हर रूप में महिलाओं की समानता के अधिकार और सशक्तिकरण के लिए उनकी प्रतिबद्धता विशेष रूप से सम्मिलित है, प्रगतिशील कार्यों और लोकतान्त्रिक मूल्यों की समृद्धि को समर्पित उनके जीवन की सजीव कहानी है। करोड़ों देशवासियों, स्त्रियों और पुरुषों, के मस्तिष्क और हृदयों में बसे एक पथप्रदर्शक और स्वयं महानतम भारतीय का वृतान्त है। 

अपनी अद्वितीय विद्वत्ता से डॉ0 अम्बेडकर ने भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया। संविधान पर उन्होंने अपने विचारों की छाप भी छोड़ी। भारतीय संविधान विश्व का सबसे लम्बा संविधान है। यह संविधान भारत को एक लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित करता है, जिसमें राजनीतिक के साथ ही सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र का मार्ग प्रशस्त होता है। बिना किसी भेदभाव के समस्त नागरिकों, महिलाओं और पुरुषों, की समानता और विकास के द्वार खुलते हैं, जो, वास्तव में, स्वयं बाबासाहेब अम्बेडकर के जीवन का मिशन था। उनके कार्यों और संघर्षों का वास्तविक उद्देश्य था। वे मानव समानता के लिए कटिबद्ध थे और समानता-आधारित देशवासियों की एकता के बल पर हिन्दुस्तान की अखण्डता और समृद्धि को सुनिश्चित करना चाहते थे। हम सभी भारतीयों को इस सत्यता से परिचय करने और इसी के माध्यम से डॉ0 अम्बेडकर को समझने की आज नितान्त आवश्यकता है।    

डॉ0 अम्बेडकर अपने मिशन के लिए कटिबद्ध थे; वे साथ ही वे सच्चे भारतीय और एक उत्कृष्ट राष्ट्रवादी भी थे। वर्ष 1942 ईसवीं में उन्होंने कहा था, “मेरा जातिवादी हिन्दुओं से कुछ बिन्दुओं को लेकर विवाद है, लेकिन मैं…अपने देश की रक्षा के लिए अपने जीवन को (भी) न्योछावर कर दूँगा।” वर्ष 1948 ईसवीं में सरदार पटेल के हैदराबाद में कार्यवाही के समय बाबासाहेब ने, नीजाम को राष्ट्रविरोधी घोषित करते हुए, वल्लभभाई को हर रूप में सहयोग देने का प्रत्येक भारतीय का आह्वान किया था। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में पण्डित नेहरू की नीतियों की आलोचना की थी और भारत की एकता व अखण्डता के लिए तनिक भी ढील न देने की आशा रखी थी। नागरिक समानता के साथ ही, राष्ट्र की एकता और अखण्डता के दृष्टिकोण से बाबासाहेब अम्बेडकर भारत में “समान नागरिक संहिता”  के पक्षधर थे। आज की पीढ़ी को बाबासाहेब के मिशन के साथ ही उनकी देशभक्ति और राष्ट्रवाद से भी एकाकार करना चाहिए। ऐसा करने से ही महानतम भारतीयों में से एक डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के उत्कृष्ट विचारों और आमजन को समर्पित उनके कार्यों के प्रति न्याय हो सकेगा।  

कृपया इसे भी देखें

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं मेरठ विश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं I

Leave a Reply

Your email address will not be published.

20 + 2 =

Related Articles

Back to top button