कौन भूल सकता है गंगा में उतराती लाशों का मंजर…

वहीं, एक दर्द हम सभी की शीतल पतितपावनी मां गंगे की दर्द भरी उस दास्तान को सुनकर उसे महसूस करने का भी है, जो इस पुस्तक के जरिये हम सभी तक पहुंच रहा है।

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा में उतराती लाशों की पोल खोलती पुस्तक

  • रिटायरमेंट से ठीक पहले कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा में उतराती लाशों की पोल खोलती ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट के प्रमुख राजीव रंजन मिश्रा की पुस्तक
  • उत्तर प्रदेश और बिहार के श्मशान घाटों पर जलती चिताओं के बीच, गंगा नदी शवों के लिए एक ‘आसान डंपिंग ग्राउंड’ बन गई

सुषमाश्री

कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों और ओमिक्रॉन के खतरे ने एक बार फिर देशवासियों में भय का माहौल तैयार कर दिया है। जिसे देखो, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान के हालात याद कर उसकी ही चर्चा करता दिख रहा है। यकीनन दूसरी लहर ने हमारे अंदर कोरोना की गंभीरता को लेकर जिस तरह का डर भर दिया है, उसके बाद तीसरी लहर की गंभीरता का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं रह जाता। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश में आज यानि 25 दिसंबर 2021 से योगी सरकार ने जब ‘नाईट कर्फ्यू’ लगाने का ऐलान किया, तो मामले की गंभीरता से कहीं ज्यादा यह यूपी चुनावों में बीजेपी के डगमगाते हालात का नतीजा अधिक महसूस होती दिखी। ऐसा प्रतीत होना लाजिमी भी है, क्योंकि पिछली बार जब कोरोना की दूसरी यानि डेल्टा लहर से पूरा प्रदेश त्रस्त था, तब बार-बार पंचायत चुनाव पर रोक लगाने की बातें उठ रही थीं, लेकिन प्रशासन इसके लिये कतई भी तैयार नहीं था और न ही उन्होंने यह चुनाव रोका। तब भी जबकि गंगा जी में धड़ाधड़ लाशें बहा दी जा रही थीं और मीडिया इस बात की तस्वीर पेश कर रहा था।

‘नमामि गंगे’ परियोजना के प्रमुख और ‘नेशनल मिशन फोर क्लीन गंगा’ (NMCG) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा और NMCG में इनके सहयोगी व IDAS अधिकारी पुष्कल उपाध्याय की पुस्तक ‘गंगा- रीइमेजिनिंग, रीजुवेनेटिंग, रीकनेक्टिंग” आई है

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में उतराती लाशों के कारण योगी सरकार की काफी आलोचना हुई थी, लेकिन तब सरकार इससे बार-बार इनकार करती रही। इन्हीं मुद्दों पर गुरुवार को ‘नमामि गंगे’ परियोजना के प्रमुख और ‘नेशनल मिशन फोर क्लीन गंगा’ (NMCG) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा और NMCG में इनके सहयोगी व IDAS अधिकारी पुष्कल उपाध्याय की पुस्तक ‘गंगा- रीइमेजिनिंग, रीजुवेनेटिंग, रीकनेक्टिंग” आई है, जिसका लोकार्पण गुरुवार को खुद प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने किया है।

इसी 31 दिसंबर को रिटायर होने वाले (1987 बैच) तेलंगाना-कैडर के आईएएस अधिकारी राजीव रंजन मिश्रा ने अपने दो कार्यकालों के दौरान पांच साल से अधिक समय तक NMCG में सेवाएं देने का रोंगटे खड़े कर देने वाला अनुभव इस पुस्तक में उड़ेल दिया है, जिसे पढ़कर हम यूपी चुनावों में बीजेपी की हार और सपा की जीत या फिर इसके उलट का भ्रम और मायाजाल भी भूल जाते हैं। अगर कुछ याद रह जाता है तो बस, कोरोना के डेल्टा वेरियेंट यानि दूसरी लहर के दौरान के वे भयावह हालात… जिससे तकरीबन हर घर किसी न किसी तरह से पीड़ित रह चुका है। कुछ सीधे तो कुछ दूर से।

नमामि गंगे परियोजना के प्रमुख और नेशनल मिशन फोर क्लीन गंगा (NMCG) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा

वहीं, एक दर्द हम सभी की शीतल पतितपावनी मां गंगे की दर्द भरी उस दास्तान को सुनकर उसे महसूस करने का भी है, जो इस पुस्तक के जरिये हम सभी तक पहुंच रहा है।

कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश में तबाही मचाई थी। यूपी में भी कोरोना महामारी की चपेट में आने से हजारों लोगों की मौत हुई थी। इस दौरान उत्तर प्रदेश में कई वीभत्स दृश्य दिखाई दिये। उन्हीं दिनों गंगा नदी ‘डंपिंग ग्राउंड’ यानि ‘लाशों को फेंकने की आसान जगह’ बन गई थी। गंगा नदी में अनगिनत लाशें उतराती नजर आईं। माना जा रहा था कि ये लाशें कोविड से मरने वालों की हैं, जिन्हें इस तरह नदी में बहा दिया गया है। हालांकि, सरकार इससे बार-बार इनकार करती रही।

इस किताब में कोरोना महामारी के दौरान गंगा की स्थिति के बारे में जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान मरने वालों की संख्या बढ़ने के साथ साथ अंतिम संस्कार करने को लेकर भी समस्यायें बढ़ रही थीं। उनके अंतिम संस्कार के लिए भी जगह और भुगतान का दायरा बढ़ने लगा था।

उत्तर प्रदेश ही नहीं, बिहार के श्मशान घाटों पर भी जलती चिताओं के बीच, गंगा नदी शवों के लिए एक ‘आसान डंपिंग ग्राउंड’ बन गई।

कोरोना महामारी के दौरान गंगा की स्थिति के बारे में जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान मरने वालों की संख्या बढ़ने के साथ साथ अंतिम संस्कार करने को लेकर भी समस्यायें बढ़ रही थीं। उनके अंतिम संस्कार के लिए भी जगह और भुगतान का दायरा बढ़ने लगा था।

पुस्तक में उन्होंने अफसोस जताते हुये इस बात का भी जिक्र किया कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान गंगा का जो हश्र हुआ, उसने पांच सालों से गंगा को स्वच्छ बनाने के हमारे प्रयासों पर पानी फेर दिया।

बता दें कि इस किताब में कोरोना महामारी के दौरान गंगा की स्थिति के बारे में जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया कि यूपी सरकार ने उन दिनों जो रिपोर्ट सार्वजनिक की, उसमें बताया गया कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 300 से ज्यादा लाशें गंगा में उतराती हुई नहीं पाई गईं, जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल जुदा थी। इस दौरान 1000 से भी ज्यादा कोविड लाशें गंगा में उतराती हुई पाई गई थीं।

पुस्तक के कुछ अंश यह स्पष्ट करते हैं कि वे मिश्रा द्वारा लिखे गए हैं। उदाहरण के लिए, पुस्तक में कहा गया है: “मई महीने के शुरुआत में मैं गुरुग्राम स्थित सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल, मेदांता में गंभीर हालात में कोविड-19 से जूझ रहा था, तब मैंने पवित्र गंगा में तैरती लावारिस, अधजली और सूजी हुई लाशों के बारे में सुना।

पुस्तक में लिखा गया है: “उन दिनों टेलीविज़न चैनल्स, पत्रिकाएं, समाचार पत्र और सोशल मीडिया साइट्स भयानक छवियों और शवों को नदी में फेंके जाने की कहानियों से भरे हुये थे। यह मेरे लिए एक दर्दनाक और दिल तोड़ने वाला अनुभव था। NMCG के महानिदेशक के रूप में, मेरा काम गंगा के स्वास्थ्य का संरक्षक बनना है, इसके प्रवाह को फिर से जीवंत करना है, इसकी प्राचीन शुद्धता की ओर इसे फिर से लौटाना सुनिश्चित करना है और वर्षों की उपेक्षा के बाद इसकी सहायक नदियों के लिए इसे फिर से जीवंत करना है।”

11 मई को, जब दूसरी लहर चरम पर थी, मिश्रा के नेतृत्व में NMCG ने सभी 59 जिला गंगा समितियों को गंगा में उतराते हुये शवों के मुद्दे पर जरूरी कार्रवाई करने के निर्देश दिये और इससे संबंधित रिपोर्ट उन्हें सौंपने के लिये भी कहा।

पुस्तक में लिखा गया है: “उन दिनों टेलीविज़न चैनल्स, पत्रिकाएं, समाचार पत्र और सोशल मीडिया साइट्स भयानक छवियों और शवों को नदी में फेंके जाने की कहानियों से भरे हुये थे। यह मेरे लिए एक दर्दनाक और दिल तोड़ने वाला अनुभव था।

कुछ दिनों बाद यूपी और बिहार को इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट जमा करने के लिये कहा गया, जिसके बाद यूपी ने गंगा और उसकी सहायक नदियों से “अज्ञात शवों या लावारिस लाशों” के जिलेवार आंकड़े इकट्ठे करना शुरू किया।

बाद में यूपी के एक ​वरिष्ठ अधिकारी ने केंद्रीय अधिकारियों को एक बैठक के दौरान इसका कारण यह बताया कि यूपी के मध्य और पूर्वी क्षेत्रों में नदियों में बहाकर ही शवों के संस्कार का प्रचलन था।

यह पुस्तक गंगा के किनारे सभी तटवर्ती राज्यों में खराब कोविड प्रबंधन को उजागर करती है।

पुस्तक बताती है कि अंतिम संस्कार संबंधी सेवाओं के दयनीय प्रबंधन की स्थिति का फायदा उठाकर उन शवों का अंतिम संस्कार करने के बजाय उन्हें नदी में फेंकने और मीडिया के प्रतिकूल प्रचार ने उन दिनों हमारी बेचैनी और लाचारी को और भी बढ़ा दिया था।

पुस्तक में आगे लिखा है, “संकट के उस दौर में भी NMCG के पास यह प्रत्यक्ष अधिकार नहीं था कि हम गंगा में इस कदर लाशें फेंकने या गंगा किनारे उन्हें दफन करने वालों को दंडित कर पाते।”

यूपी में कुछ समुदायों के बीच नदियों के किनारे मृतकों को दफनाने की परंपरा पर चर्चा करते हुये यह पुस्तक बताती है कि “गंगा में उतराती हुई लाशें या गंगा के तट पर लाशों को दफ़न करना नदी के आसपास रहने वालों के लिए कोई नई बात नहीं है। जबकि, लगातार बिगड़ते हालातों ने उस तस्वीर की भयावहता को और भी बढ़ा दिया था… और यह सब उसी वक्त हो रहा था, जब मैं अस्पताल में भर्ती ​था। उसी वक्त में मैंने हालात की गंभीरता को भांप लिया था।”

पुस्तक में आगे लिखा है, “संकट के उस दौर में भी NMCG के पास यह प्रत्यक्ष अधिकार नहीं था कि हम गंगा में इस कदर लाशें फेंकने या गंगा किनारे उन्हें दफन करने वालों को दंडित कर पाते।”

पुस्तक के एक अन्य भाग, जिस पर मिश्रा की मुहर लगी है, उसमें लिखा गया है: “विभिन्न जिलाधिकारियों और पंचायत समितियों की रिपोर्ट पढ़ने के बाद मैंने महसूस किया कि नदी में फेंके गए शवों की संख्या 300 से अधिक नहीं थी। (निश्चित रूप से मीडिया के एक वर्ग द्वारा जिस तरह की रिपोर्ट पेश की गई थी, और जिसके हिसाब से उन लाशों की संख्या 1,000 से भी कहीं अधिक थी, वो तो सही नहीं था)। इसके अलावा एक और खास बात यह थी कि यह समस्या केवल यूपी तक ही सीमित थी (कन्नौज और बलिया के बीच) और बिहार में मिले शव भी वे थे, जो यूपी की ओर से बहते हुये वहां पहुंच गये थे।”

किताब में यह भी बताया गया है कि अस्पताल से छुट्टी मिलने के केवल दो दिन बाद ही 11 मई को कैसे मिश्रा ने जिला प्रशासन को निर्देश जारी किए?

उन्होंने लिखा है, “मैंने यह भी महसूस किया कि कोविड-19 श्मशान और अंत्येष्टि प्रोटोकॉल के बारे में ग्रामीणों की अज्ञानता के कारण केवल बल प्रयोग से काम नहीं चलने वाला था। फिर, उनके पास तो ऑक्सीमीटर और कोविड परीक्षण सुविधाओं तक का अभाव था।”

पुस्तक में यह भी लिखा गया है कि इसके अलावा, गरीबी से त्रस्त वे लोग, जिन्होंने कोविड-19 से लड़ने के लिए अपना सारा पैसा डॉक्टर की फीस और दवाओं पर खर्च कर दिया था, वे भी इस स्थिति में नहीं थे कि लगभग तीन गुना बढ़ा दिये गये अंत्येष्टि व श्मशान शुल्क का भुगतान कर पाते।”

“मैंने जिला अधिकारियों को जिला गंगा समिति से प्राप्त धनराशि का उपयोग आवश्यकता पड़ने पर सम्मानजनक दाह संस्कार के लिए करने के लिए अधिकृत किया।” (क्रमश:)

(इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिये आपको नेशनल मिशन फोर क्लीन गंगा के डीजी राजीव रंजन मिश्रा की यह नई पुस्तक पढ़ें। पुस्तक का नाम है:- ‘गंगा: रीइमेजनिंग, रीजुविनेटिंग, रीकनेक्टिंग’)

(लेख इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर से अनुवाद करके और यूपी के ताजा हालातों को ध्यान में रखकर लिखा गया है)

इसे भी पढ़ें:

कोविड काल : गंगा में तैरती लाशें सरकार से जवाब चाहती हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published.

three × one =

Related Articles

Back to top button