बिहार में तेजस्वी यादव ‘बेरोजगार रैला’ क्यों करेंगे!

बिहार में तेजस्वी करेंगे बेरोज़गार रैला

सुषमाश्री

बिहार में तेजस्वी यादव ‘बेरोजगार रैला’ क्यों आयोजित करेंगे ? समझा जाता है कि राष्ट्रीय जनता दल नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरने के लिए यह ऐलान किया है. जिन लोगों ने लालू यादव के राजनीतिक सफर को करीब से देखा, समझा और जाना है, उन्होंने यह भी अच्छी तरह से समझ लिया होगा कि लालू के ‘गरीब रैला’ की तर्ज पर उनके बेटे तेजस्वी यादव के बेरोजगार रैला शुरू करने के मायने क्या हैं?

प्रेक्षकों का कहना है कि यकीनन लालू की राजनीतिक सोच और चालों के तो उनके विरोधी भी कायल हैं. राजनीतिक जोड़तोड़ के माहिर लालू यादव के दिमाग में अपने बेटे तेजस्वी के राजनीतिक करियर के सही ढंग से आगाज के लिए इससे अच्छी और कोई तरकीब शायद कोई भी नहीं सूझ सकती थी.

बिहार में तेजस्वी का बेरोजगार रैला

आज से 26 साल पहले ‘गरीब रैला’ करके लालू ने खुद को जिन गरीबों के इतने करीब कर लिया था कि वे उनके ‘मसीहा’ ही बन बैठे, आज उसी ‘गरीब रैला’ की तर्ज पर देश की नब्ज टटोलकर ‘बेरोजगार रैला’ करवा कर वे बेरोजगार नवयुवकों को तेजस्वी यादव के करीब ले आना चाहते हैं.

बता दें कि 26 साल पहले देश में गरीबों की तादाद ज्यादा थी और आज बेरोजगारों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है. ऐसे में लालू ने तब ज्यादा से ज्यादा गरीबों को अपने साथ जोड़ने के लिए रैली के बजाय इसे रैला शब्द देकर गरीबों के और भी करीब पहुंचा दिया था, जिसने असर दिखाया और बड़ी संख्या में गरीब उनके साथ जुड़ते चले गए.

उसके बाद उनके बिहार की सत्ता से जुड़ने और फिर 15 वर्षों तक उससे जुड़े रहने की कहानी तो जगजाहिर है ही. बस, आज के बेरोजगार रैला करने के पीछे लालू यादव की वही मंशा साफ झलक रही है. वे चाहते हैं कि इस बेरोजगार रैला का असर भी उनकी गरीब रैला की भांति देखने को मिले और तेजस्वी के साथ ज्यादा से ज्यादा बेरोजगार और नवयुवक जुड़ते चले जाएं.

आज के बेरोजगार रैला करने के पीछे लालू यादव की वही मंशा साफ झलक रही है. वे चाहते हैं कि इस बेरोजगार रैला का असर भी उनकी गरीब रैला की भांति देखने को मिले और तेजस्वी के साथ ज्यादा से ज्यादा बेरोजगार और नवयुवक जुड़ते चले जाएं.

बहरहाल, बताने की जरूरत नहीं कि नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा के उपचुनाव को लेकर इन दिनों बिहार में सियासी पारा गर्म है. इसकी गर्मी का असर तो आए दिन हो रहे नीतीश कुमार और लालू यादव की बयानबाजी में साफ झलकता रहता है. इसी क्रम में राजद नेता तेजस्वी यादव ने राज्य में पहले ही ये ऐलान कर दिया था कि वो जल्द ही बिहार में देश का सबसे बड़ा ‘बेरोजगार रैला’ करने जा रहे हैं.

दो सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तैयारियों को लेकर बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने अपने ट्विटर अकाउंट पर खुद इस बेरोजगार रैला के बारे में ऐलान कर दिया था. उन्होंने लिखा, “जल्दी ही बिहार में करेंगे देश का सबसे बड़ा “बेरोजगार रैला”

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यकीनन, तेजस्वी के नेतृत्व में यह पहली बड़ी रैली होगी. तेजस्वी बेरोजगारी का मुद्दा उठाकर सर्वसमाज के युवाओं के बीच अपनी पैठ गहरी करना चाहते हैं. इसके साथ ही वो इस मुद्दे के जरिए राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दोनों पर एक तीर से एकसाथ निशाना साधना चाहते हैं.

पीएम मोदी ने 2014 के चुनाव में ही हर साल दो करोड़ लोगों को नौकरी देने का वादा किया था जबकि नीतीश ने पिछले विधानसभा चुनाव में 19 लाख नौकरियों का वादा किया था, जो अब तक सच नहीं हो सका है.

1990 के दशक से ही लालू यादव ऐसी रैलियां और रैला करते आ रहे हैं. 1995 में अपनी सरकार के पांच साल पूरे होने पर लालू यादव ने सबसे पहले गरीब रैली की थी और समाज के गरीब तबके तक अपनी पहुंच बनाई थी. लालू ने रैली को गरीब नाम देकर समाज के गरीब तबके को यह संदेश देने की कोशिश की थी कि वही उनके हितैषी हैं.

इसके अगले ही साल 1996 में उन्होंने रैली की जगह रैला शब्द का इस्तेमाल करते हुए ‘गरीब रैला’ का आयोजन किया था. लालू ने तभी सबसे पहले रैला शब्द का इस्तेमाल अपने कोर वोटरों को जोड़ने के लिए और अधिक से अधिक संख्या में उनके पटना पहुंचने के लिए किया था. इसके बाद लालू ने 1997 में ‘महागरीब रैला’, 2003 में ‘लाठी रैली’, 2007 में ‘चेतावनी रैली’, 2012 में ‘परिवर्तन रैली’ और 2017 में ‘भाजपा भगाओ, देश बचाओ रैली’ की थी.

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1995 में लालू यादव ने जो पहली रैली की थी, उसमें किस्म-किस्म के नारे लगाए गए थे ताकि समाज के वंचित वर्ग तक उनका संवाद हो और उनके बीच पैठ बनाई जा सके. उनमें से कुछ इस तरह हैं-

‘लालू यादव फकीर है, गरीबों की तकदीर है’
‘लालू की है ये ललकार, दिल्ली में हो गरीबों की सरकार’
‘हंस कर लिया है पटना को, लड़कर लेंगे दिल्ली को’
‘दिल्ली की गद्दी पर बिहार की शान, सभी पिछड़ों और दलितों का यही अरमान’

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