एक बार फिर बोधगया में होगा संघर्ष वाहिनी का जमावड़ा

छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की स्थापना लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने की थी। जेपी को 1974 में ही महसूस हो गया था कि आंदोलन में शामिल सभी राजनीतिक दलों और उनके युवा संगठनों की प्राथमिकता सत्ता हासिल करना और अपने संगठन का आधार बढ़ाना है। जेपी जिस समग्र बदलाव की, संपूर्ण क्रांति का सपना देख रहे थे, उसमें उनकी खास रुचि नहीं थी। इसी कारण जेपी को संपूर्ण क्रांति के लिए प्रतिबद्ध एक युवा संगठन की जरूरत महसूस हुई।

स्थापना दिवस पर 13वां मित्र मिलन सम्मेलन

श्रीनिवास

लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित युवा संगठन छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी के नये-पुराने सदस्यों का जुटान इस बार बुद्ध की भूमि बोधगया (बिहार) में होने जा रहा है। यह समारोह 30, 31 दिसम्बर 2021 और 1 जनवरी 2022 को होगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1997 में ‘वाहिनी मित्र मिलन’ की शुरुआत बोधगया से ही हुई थी‌। ‌बोधगया में आयोजन का महत्व यह भी है कि संघर्ष वाहिनी ने बोधगया मठ की 1978 में बोधगया मठ के अवैध कब्जे में पड़ी हजारों एकड़ जमीन की मुक्ति के लिए शांतिपूर्ण भूमि आंदोलन शुरू किया था।

संघर्ष वाहिनी की स्थापना

जेपी को 1974 में ही महसूस हो गया था कि आंदोलन में शामिल सभी राजनीतिक दलों और उनके युवा संगठनों की प्राथमिकता सत्ता हासिल करना और अपने संगठन का आधार बढ़ाना है। जेपी जिस समग्र बदलाव की, संपूर्ण क्रांति का सपना देख रहे थे, उसमें उनकी खास रुचि नहीं थी। इसी कारण जेपी को संपूर्ण क्रांति के लिए प्रतिबद्ध एक युवा संगठन की जरूरत महसूस हुई। इस तरह एक जनवरी 1975 को छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी की स्थापना हुई थी। इसी कारण यह आयोजन एक जनवरी को किया जाता है।

इसमें चौदह से तीस वर्ष की उम्र सीमा थी। तीस वर्ष के बाद सदस्यता स्वत: समाप्त हो जाती है। सदस्यता की एक शर्त यह थी कि किसी राजनीतिक दल से जुड़े युवा सदस्य नहीं बन सकते थे। इसके अलावा वाहिनी के सदस्य पर किसी पद के लिए चुनाव लड़ने पर रोक थी। इन कठिन शर्तों के कारण दलों से जुड़े युवा इससे स्वत: दूर रह गये। तब के अनेक स्थापित छात्र नेताओं ने परोक्ष रूप से इसका विरोध भी किया।

जन्मगत जातीय पहचान से मुक्त होने, नाम में उपाधि न लगाने और स्त्री-पुरुष समानता की अपरिहार्य शर्त तब बहुतों के लिए कठिन शर्त थी। मगर तब आंदोलन के कारण बने माहौल में धीरे-धीरे संघर्ष वाहिनी आकार लेने लगी। लेकिन कुछ महीने बाद जून 1975 में इमरजेंसी लगने पर सब कुछ थम गया। बड़ी संख्या में गिरफ्तारी हुई। तब जेल ही संघर्ष वाहिनी के प्रशिक्षण केंद्र बन गये।

जनता पार्टी सरकार बनने के बाद जेपी ने उस सरकार को कम से कम एक वर्ष का मौका देने की बात की। वाहिनी को गांवों में जाकर जनता को जागरूक और संगठित कर सत्ता पर अंकुश रखने का निर्देश दिया। यह भी कहा कि जहां भी अन्याय होता है, लोगों को उसके खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करें।

इसी क्रम में 1978 में बोधगया मठ के अवैध कब्जे में पड़ी हजारों एकड़ जमीन की मुक्ति के लिए संघर्ष वाहिनी ने शांतिपूर्ण भूमि आंदोलन शुरू किया। बता दें कि छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की स्थापना लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने की थी।

‘जो जमीन को जोते बोये, वो जमीन का मालिक होवे’ इसका केंद्रीय नारा बना‌‌। वह आंदोलन अब देश के एक ऐतिहासिक और सफल भूमि आंदोलन के रूप में इतिहास में दर्ज है। सैकड़ों लोग/कार्यकर्ता झूठे मुकदमों में गिरफ्तार हुए‌। दो मजदूरों की शहादत हुई। मगर आंदोलन फैलता और मजबूत होता गया। महज तीन वर्ष के अंदर गया जिले के चार प्रखंडों में फैली बोधगया मठ की ‘जमींदारी’ ध्वस्त हो गयी। करीब दस हजार एकड़ जमीन पर मजदूरों का नियंत्रण हो गया। तब तक देश और बिहार में कांग्रेस की सरकर बन चुकी थी‌। लेकिन अंततः सरकार को मुक्त जमीन का वितरण भूमिहीनों के बीच करना पड़ा। इसमें भी एक खास और नयी बात यह हुई कि आंदोलन की मांग और दबाव में अनेक गांवों में जमीन का पट्टा महिलाओं के नाम पर बना‌।

बाद में बोधगया आंदोलन शिथिल हुआ। थम-सा गया। वाहिनी भी कमजोर पड़ गयी। हालांकि बाद में कुछ नये इलाकों में, खास कर मोहनपुर प्रखंड में, इसका विस्तार भी हुआ। वनाधिकार कानून के तहत वन क्षेत्र में बसे गांवों में भूमि स्वामित्व हासिल करने का यह संघर्ष अब भी जारी है।

आंदोलन की इस पृष्ठभूमि के कारण भी इस बार मित्र मिलन वहीं करने का निर्णय हुआ। इस मौके पर आंदोलन से जुड़े गांवों में भी इस आयोजन को लेकर उत्साह है।

मित्र मिलन की पृष्ठभूमि

संघर्ष वाहिनी में उम्र की सीमा के कारण वाहनी से अलग हुए अनेक सदस्य अलग अलग काम और पेशे से जुड़ते गये। अनेक साथी अलग नाम से संगठन बना कर सामाजिक काम में लगे रहे। मगर संघर्ष वाहिनी के समय की मित्रता और आत्मीयता के सूत्र में बंधे भी रहे। इसी सूत्र को और मजबूत करने के लिए ‘मित्र मिलन’ की शुरुआत हुई। अपेक्षा की जाती है कि वाहिनी के साथी अपने परिवार के साथ आयें, ताकि उनकी बाद की पीढ़ी भी देख समझ सके कि वाहिनी की परंपरा कैसी रही है‌। वाहिनी के साथियों के बीच कितना अपनापन रहा है। साथ ही हम वर्तमान चुनौतियों में अपनी भूमिका तलाश करने पर विचार करें, यह मकसद भी होता है। कुछ लोग घूमने-फिरने के दोहरे मकसद से भी आते हैं। जैसे भी हो, मित्र मिलन पुराने मित्रों, उनके परिवारों के मिलन का एक अनूठा आयोजन होता है। किसी अन्य युवा राजीनीतिक संगठन का ऐसा खुशनुमा और आत्मीयता से भरा आयोजन शायद ही होता है।

यह आयोजन अमूमन एक वर्ष के अंतराल पर देश के अलग अलग स्थानों पर होता है। किन्हीं कारणों से व्यवधान भी हुआ। अब तक जयपुर, चेन्नई, लखनऊ, गोवा आदि स्थानों पर कुल दस आयोजन हो चुके हैं। पिछला मित्र मिलन पुरी (उड़ीसा) में हुआ था, 2018 में। कोरोना संकट के कारण 2020 में नहीं हो पाया। इस बीच ‘वाहिनी मित्र मिलन’ नाम के वाट्सएप ग्रुप के जरिये संपर्क बना रहा। वहीं हुई चर्चा में इस बार का आयोजन तय हुआ।

इसी क्रम में बीते दिनों छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के वर्तमान और पूर्व सदस्यों की एक बैठक मधुपुर में हुई‌‌। बैठक में मित्र मिलन की तैयारी पर चर्चा हुई। सम्मेलन बोधगया में हो, इसका औपचारिक फैसला हुआ। इसमें देश भर के वाहिनी मित्रों के अलावा अनेक सहमना राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता भी हिस्सा लेंगे।

मधुपुर की बैठक में मित्र मिलन कार्यक्रम की तैयारी समिति का गठन हुआ। सतीश कुंदन (गिरिडीह) मित्र मिलन संचालन समिति के संयोजक बनाये गये‌।

बैठक में देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और शिक्षा आदि समस्याओं पर भी चर्चा हुई। देश में चल रहे किसान आन्दोलन (जो अब जीत के साथ खत्म समाप्त हो गया है) पर चर्चा हुई। इस पर आम राय थी कि किसानों के इस शांतिपूर्ण आन्दोलन और उनकी एकजुटता ने भविष्य में सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीदें जगायी हैं‌।

ऐसे में यह उम्मीद भी बनी है कि बोधगया मित्र मिलन भविष्य की नयी शुरुआत का एक आधार बन सकता है।

इसे भी पढ़ें:

जेपी को अंतिम विदाई

Leave a Reply

Your email address will not be published.

eleven − six =

Related Articles

Back to top button