तबलीक़ी जमात बनाम  प्रशासनिक जमात

क़ानून सब पर बराबर से लागू हो

टिप्पणी

नवीन चंद्र तिवारी 

जिस बात का डर था वही हुई । दो तीन हज़ार लोगों ने कोई गफ़लत की और सभी न्यूज़ चैनल अपनी आवाज़ बुलंद से बुलंदतर करने लगे । (  अब उर्दू में बुलंदतर कोई शब्द नहीं है लेकिन इन एंकरों की ऊँची होती हुई आवाज़ ने हमें इसे ईजाद करने को मजबूर किया है ) 

सवाल ये है कि इस पूरे हादसे का बड़ा दोषी कौन है ? तबलाकी जमात या दिल्ली के लिए ज़िम्मेदार दोनों सरकारें ? जिस शासन में इतना कन्फ्यूज़न है कि एक तरफ़ कहती हैं कि दिल्ली में ही रहिए और दूसरी तरफ़ हज़ारों बसों से लोगों को दूर दराज भेजने का कार्यक्रम बनाती है उसे क्या कहें ? एक प्रदेश से माइग्रेंट लेबर हज़ारों मील दूर अपने प्रदेश बिहार जाने के लिए भेज दिए जाते हैं , भारतीय रेल उन्हें ले चलता है और बिहार प्रदेश सरकार कहती हैं कि हम प्रदेश में घुसने नहीं देंगे उस गंभीर शासन तंत्र के ब्रेकडाऊन को क्या कहेंगे ? 

नवीन चंद्र तिवारी

लाखों लोग कंधे रगड़ते हुए सैकड़ों मील सफ़र करते रहे और सारे देश के लोग सोशल डिस्टेंसिंग का ये नया रूप देखता रहा उसे क्या कहेंगे ? निज़ामुद्दीन थाने के बग़ल में इतना बड़ा सेंटर हैं जहां ये लोग हफ़्तों से मौजूद रहे और दोनों सरकारें ग़ाफ़िल रहीं तो ये किसकी ज़िम्मेदारी है ? दो तीन अफ़सरों को निलंबित करने या ट्रांसफ़र करने से सरकार अपनी चूक पर पर्दा नहीं डाल सकती है । इस अभूतपूर्व विश्वस्तर की चुनौती के समय हमारे मुख्य मंत्री अगर अयोध्या जाने की फ़ुरसत पा सकते हैं और केन्द्र सरकार के मंत्री टी वी पर महाभारत देखने का आनंद उठा सकते हैं तो हम आम जनता के लोग उम्मीद भी क्या करें ?  

एक डी० एम० को डाँटकर वीडियो सोशल मीडिया पर रिलीज़ कर के ये भले ही कल्पना कर लें कि जनता तक अपने सख़्त प्रशासन और चाक चौबंद व्यवस्था का संदेश पहुँचा दिया है लेकिन यह ढोल जितना ज़ोर से बजता है वह उसके उतने बड़े पोल की ही खबर देता है । 

लखनऊ बाराबंकी की सीमा पर कई फैक्ट्रियॉं हैं . और लॉकडाउन के दिन से ही बंद हैं। चौकीदार बता रहे हैं कि आए दिन पुलिस की जीप सामने रुकती हैं और चौकीदार से सवाल पूछा जाता है – अंदर काम चल रहा है ? जब इतनी चौकसी बाराबंकी में लगभग अनजान फ़ैक्ट्रियों को लेकर है तो दिल्ली में केन्द्र और राज्य सरकार की नाक के नीचे हज़ारों लोग दस दिन से क़याम कर रहे थे और सरकारें सो रही थीं ! अब पूरे देश का मीडिया ढिंढोरा पीट कर ध्यान प्रशासन की ढिलाई से हटा रहा है !

लेकिन किसी भी संवैधानिक या नैसर्गिक न्याय पर आधारित क़ानून व्यवस्था में हम दोहरे मापदंड नहीं अपना सकते हैं । क़ानून सब पर बराबर से लागू होगा । हमें उम्मीद है कि तबलीक़ी जमात की ये लापरवाही और गलती हमारी सरकार को सजग करेगी और सरकार हिंदू मठाधीशों की विभिन्न जमातों द्वारा भीड़ इकट्ठा किए जाने पर कड़ाई से रोक लगाएगी ।

सोशल मीडिया पर अति सक्रिय हिंदू भाइयों से ये विनती है कि इस घटना को लेकर थोड़ी समान द्रष्टि रखते हुए विवेक और उदारता का परिचय दें और झट से पूरे मुस्लिम समाज को कटघरे में खड़ा करने का काम न करें । हमारे अपने मठाधीश न किसी कठमुल्ला से कम हैं न बेहतर हैं बल्कि अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच का प्रसार करने में दुनिया की हर जमात से आगे हैं । हम हिंदू भी तो अभी तक अज्ञान  में गोते लगा रहे हैं !

नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं। 

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