जीवन की कला जानने वाला हिंसा की बात नहीं करता: महेंद्र भाई भट्ट
विनोबा विचार प्रवाह अंतरराष्ट्रीय संगीति
” जीवन की कला आती है तो वह व्यक्ति वह हिंसा की बात नहीं करता।”
विनोबा जी की 125वीं जयंती पर विनोबा विचार प्रवाह द्वारा फेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगीति में श्री महेंद्र भाई ने यह बात कही.।
सर्वोदय सेवक श्री महेंद्र भाई गुजरात के भरुच जिले में प्रयोग कर रहे ।
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महेंद्र भाई ने कहा कि आज मनुष्य जीवन की कला नहीं जानता , इसलिए मारने की बात होती है।
उन्होंने कहा कि वैदिक मंत्र में सात रत्न की बात है। ये सात रत्न अन्न, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, काम के औजार और स्वस्थ्य मनोरंजन हैं।
हरेक गांव की योजना इसी ढंग की होना चाहिए। इससे सभी को गुण विकास का अवसर भी मिलेगा।
शब्द की गहराई
श्री महेंद्र भाई ने बताया कि जब उन्होंने विनोबा जी से स्वराज्य शब्द का अर्थ जानना चाहा तब विनोबा जी इस शब्द को बीस हजार पहले ले गए।
उन्होंने बताया कि वेद में स्वराट शब्द है। जिसका आशय सूर्य होता है।
जैसे सूर्य स्वयं शासित है वैसे ही गांव में स्वराज्य होना चाहिए। तब भारत का असली रूप प्रकट होगा।
ग्रामदान डिफेंस मेजर
श्री महेंद्र भाई ने कहा कि विनोबा जी का ग्रामदान विचार डिफेंस मेजर है।
युद्ध, अकाल, अतिवृष्टि, अनावृष्टि के समय ग्रामीण स्वावलंबन देश की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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आज हमें उपयुक्त तकनीक की दिशा में तीव्रता से विचार करने की जरूरत है।
मानवीय तकनीक को सबसे ऊपर रखते हुए यंत्र विवेक से ग्रामीण और शहरी क्षेत्र को सभी प्रकार की अशांति से बचाया जा सकता है।
अन्न स्वावलंबन का प्रयोग
श्री महेंद्र भाई ने बताया कि भरुच जिले में उन्होंने स्वावलंबी खेती का प्रयोग किया।
दस गुंठे जमीन में पांच व्यक्तियों के अन्न स्वावलंबन को साधा जा सकता है। इस खेती में सभी प्रकार के अवशेषों का समुचित उपयोग किया गया।
प्राकृतिक खेती व्यक्ति को आरोग्यवान रखने में सहायक होती है। दवा के बिना भी जीवन जिया जा सकता है।
सब पर विश्वास
श्री महेंद्र भाई ने बताया कि उनके घर के दोनों दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। उन पर कभी ताला नहीं लगाया जाता।
सेवा कार्य करने से उनका लोगों पर और लोगों का उन पर अटूट विश्वास है।
उनकी धर्मपत्नी भारती बहन महिलाओं और बच्चों को शिक्षा देने का काम करती हैं।
प्रेम सत्र
प्रेम सत्र के वक्ता गुजरात के श्री कपिल भाई शाह ने कहा कि मनुष्य द्वारा सृष्टि के अत्यधिक उपभोग से धरती पर पर्यावरण संकट उपस्थित हो गया है।
विकास की अवधारणा में यह मान लिया गया कि सृष्टि मनुष्य की सेवा के लिए है।
मनुष्य ने पर्यावरण हितैषी जीव-जंतुओं, वृ़क्षों आदि को नष्ट कर दिया। इससे खेती पर विपरीत असर हो रहा है।
आज प्रकृति की अनेक चीजों को लौटाने में मनुष्य असमर्थ है।
मनुष्य प्राकृतिक संपदाओं का स्वामी नहीं बल्कि सेवक है।
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प्राकृतिक ढंग की खेती ही मनुष्य जीवन को बचाने में समर्थ है।
उन्होंने कहा कि आज किसान को बताया जाता है कि कीड़े दुश्मन हैं।
रासायनिक खाद बंद हो तो अरबों डॉलर की बचत
हाल ही में शोध से यह बात सामने आयी है कि एशिया पेसिफिक रीजन में यदि कीटनाशक और रासायनिक खाद का उपयोग बंद कर दिया जाए तो बीस अरब डाॅलर की बचत हो सकती है।
विनोबा जी का मानना कि धरती पर जुल्म नहीं होना चाहिए। उसे भी आराम की जरूरत होती है।
श्री कपिल भाई ने कहा कि जमीन को भी अपने रक्षण का अधिकार देने की आवश्यकता है।
आज से सत्तर साल पहले विनोबा जी ने कहा था कि फारमदारी व्यवस्था अनुचित है।
आज प्रतिदिन दो हजार किसान खेती छोड़ देते हैं। अस्सी प्रतिशत छोटे किसान अधिक अन्न का उत्पादन करते हैं। उन्हें विकास के नाम पर जमीन से बेदखल करना अनुचित है।
करुणा सत्र की वक्ता मुम्बई की गीता जैन ने योग के माध्यम से जीवन में आने वाले बदलावों की जानकारी प्रदान की।
उड़ीसा की सुश्री अरुंधती बहन ने विनोबा के विचारों पर प्रकाश डाला।
प्रारंभ में वक्ताओं का परिचय सुश्री ज्योत्सना बहन ने दिया।
संचालन श्री संजय राॅय ने किया। आभार श्री रमेश भैया ने माना।
डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे