हमने तस्दीक कर लिये हैं वो लोग जो हमें गले लगने से रोकते हैं

बस एक बार नफ़रत की दीवार गिरा कर तो देखो

इतनी नफ़रत है फ़िज़ाओं में भी अब यहां कि मुर्दों पर भी तंज कसे जाते हैं,

लेकिन हमने तस्दीक कर लिये हैं वो लोग जो हमें गले लगने से रोकते हैं।

वो दिलीप था या युसुफ अब ये सवाल उठाते हैं,
अरे अहमक़ वो सिर्फ़ भारत था।

वो भारत जो तुमने-हमने नही बांटा, जिसे तोड़ा गया था।

गांधी के बाद वो पहला था जो रिश्तों की डोर बांधे हुआ था,
क्योंकि वो निशान-ए-इम्तियाज भी था वो पद्म विभूषण भी था।

पता है तुम्हें अब हमें कौन जोड़ेगा, क्या वापस लौटेगा वो जिसे कभी ट्रेनों में लाशों के साथ लाद अटारी के आर-पार भेजा गया था।

क्या ये देश है उन वीर जवानों का, अलबेलों का मस्तानों का जो उनकी बनाई नफ़रत की दीवार तोड़ेंगे।
क्या हम कभी सचिन, शोएब, तमीम को नीली जर्सी में एकसाथ खेलते देखेंगे।

मुझे तो अब ये सम्भव नज़र नही आता क्योंकि इतनी नफ़रत है फ़िज़ाओं में भी अब यहां कि मुर्दों पर भी तंज कसे जाते हैं,
लेकिन हमने तस्दीक कर लिये हैं वो लोग जो हमें गले लगने से रोकते हैं

हिमांशु।

ख़त्म नही हुआ अभी यहां कुछ क्योंकि वो हमारे बीच हमेशा जिंदा हैं वही यूसुफ है वही दिलीप है,
वही भारत है वही पाकिस्तान है, कश्मीर, ढाका, इस्लामाबाद एक हैं।

बस एक बार नफ़रत की दीवार गिरा कर तो देखो।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

13 − eleven =

Related Articles

Back to top button