अमेरिका की युवा राष्ट्रकवि अमांडा गोर्मन की महत्वाकांक्षा
जिस पहाड़ी पर चढ़े हम--- अमांडा गोर्मन
अमेरिका की पहली युवा राष्ट्रकवि अमांडा गोर्मन ,जो बाइडेन के शपथ ग्रहण समारोह में, द हिल वी क्लाइंब कविता का पाठ , सबसे कम उम्र की कवि जिसे राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में कविता पाठ करने को मिला.
सन 1998 में वेस्टचेस्टर में जन्मी अमांडा गोर्मन का परिवार अत्यंत गरीब था ।उनकी माँ ने अकेले ही उन्हें और उनकी बहनों को पाला जिनमें उनकी जुड़वां बहन भी थी। उनकी मां वाट्स में अंग्रेज़ी की शिक्षिका थीं । उनके घर में टेलीविज़न भी नहीं था।
अपनी प्रतिभा के बल पर अमांडा गोर्मन ने उच्च शिक्षा प्राप्त की और सन् 2017 में अमेरिका की पहली युवा राष्ट्रकवि यानी पोएट लौरिएट चुनी गईं ।उन्होंने सन् 2016 में एक स्वयंसेवी संस्था बनाई जिसका नाम था वन पेन वन पेज जिसके तहत वे नारी अधिकार, शोषण , अश्वेत लोगों की हालत में सुधार लाने और हाशिये पर पड़े लोगों के लिए मुहिम चलाने लगीं।
उनकी प्रतिष्ठा और लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद उन्हें ही अपनी इस कविता का पाठ करने को निमंत्रित किया गया । यह एक जबर्दस्त उपलब्धि है..और इस तरह वे रोबर्ट फ्रॉस्ट , माया एंजेलू और एलिज़ाबेथ एलेग्जेंडर जैसे सम्मानित महाकवियों के समकक्ष आ गईं। उन्हें बाइडेन की पत्नी डॉ जिल बाइडेन ने निमंत्रित किया था।उन्हें अपनी कविता का पाठ करने के लिए सिर्फ पांच मिनट का समय मिला था।
उस कविता में बाइबिल के साथ जॉन कैनेडी और रेवरेंड मार्टिन लूथर किंग की भाषण कला की झलक तो मिलती ही है लोकतंत्र के प्रति उनके अटूट विश्वास की गाथा भी है। वह एक राजनीतिक कविता है जिसमें हाल ही में हुए ट्रंप समर्थक बलवाइयों की भी परोक्ष रूप से चर्चा है। सन् 2017में गोर्मन ने घोषणा की थी कि 2036 में वे राष्ट्रपति का चुनाव लड़ेंगीं।हिलरी क्लिंटन ने उनकी इस कविता को सुनने के बाद ट्वीट किया कि वे उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करती हैं।
हम अपने पाठकों के लिए उनकी उसी कविता का पहली बार हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं ।
कवियत्री श्रीमती सावित्री शुक्ल ‘निशा के जीवन पर एक दृष्टि:(Opens in a new browser tab)
जिस पहाड़ी पर चढ़े हम— अमांडा गोर्मन
वो दिन जब आता है हम खुद से पूछते हैं
कहां पा सकते हैं हम उस रौशनी को
इस असमाप्त लगती छाँव में?
नुकसान जिसे हम ढोते हैं
समुद्र का एक भार जिसे हमें उतारना ही है
हम भूखे जानवर का कर चुके हैं सामना बहादुरी से
हमने सीखी है
खामोशी हमेशा
नहीं होती है पुरसुकून
जब दिन आता है हम पूछते हैं खुद से
और वह मानक और धारणा
कि वह जो सही लगता है
हमेशा न्यायपूर्ण नहीं होता
फिर भी सवेरा है हमारा
हमारे जानने से पहले
हम पूरा करते उसे
जैसे तैसे हमने किया है उसे पूरा
हम बर्बादी के हैं वे गवाह
उस देश के जो टूटा नहीं
है महज अधूरा
हम वंशज हैं उस देश के
उस वक्त के
जहां एक दुबली पतली अश्वेत लड़की
गुलामों की वंशज
जिसे एक अकेली मां ने पाला
वह भी देख सकती है
राष्ट्रपति बनने का सपना
और खुद को पाती है दुहराती और याद करती
और हां,हम बहुत दूर हैं चमक दमक से
और प्राचीन से
पर उसका यह मतलब नहीं कि
हम कोशिश कर रहे एक संघ बनाने की
जो मजबूत हो
हम बनाना चाहते एक संघ ऐसा
जिसमें रहें लोग
हर तरह,हर नस्ल और हर तरीके के
ताकि हम उठा सकें नज़रें अपनी
उसकी ओर जो नहीं खड़ा हमारे बीच
पर वो जो हमारे आगे खड़ा है
उस विभाजन को हम कर देते हैं बंद
जानते हो क्यों
अपने मुस्तकबिल को रख के अपने आगे
रख देंगे हम अलग अपने मतभेदों को
रख देंगे हम अपने हथियारों को
ताकि पहुंच सकें हमारी बांहें एक दूसरे तक
किसी को भी नहीं हम चाहते देनी तकलीफ़
हम चाहते सभी के लिए सद्भाव
कोई और नहीं
तो इस धरती को ही कहने दो यह सच है
कि तकलीफ़ में भी हम बढ़ते गये
कि जब हमें दुःख हो रहा था
हमने नहीं छोड़ी उम्मीद
थके हुए थे फिर भी हमने साथ मिल कर कोशिश की
कि हम हमेशा साथ रहेंगे ,जीतेंगे
इसलिए नहीं कि हम जानेंगे हार कभी फिर
इसलिए कि हममें कभी नहीं पड़ेगी फूट
धर्म ग्रन्थ कहते हैं हमसे यह सोचो
कि हर कोई बैठेगा
अपनी ख़ास लता और अंजीर के पेड़ के नीचे
और डरा सकेगा उन्हें न कोई
अगर हम जीना चाहते अपने समय को ठीक से
तो हमारी जीत होगी नहीं हथियार से
वह होगी उन पुलों से जिन्हें हमने बनाया था
दरख़्तों से ख़ाली जगह का यही वादा है
जिस पहाड़ी पर चढ़े हम
क्योंकि अमेरिकन होना ही गर्व है
जो हमें मिली है विरासत में
वह बीता हुआ कल है
और हम कर सकते जिसकी मरम्मत कैसे
हमने देखी है वह ताकत
हमारे देश को बिखरा देगी जो
साझा करने की जगह
कर देगी बर्बाद हमारे अपने देश को
अगर उसका मकसद था
लोकतंत्र को विलम्बित कर देना
उनकी यह मंशा हो गयी थी करीब करीब पूरी
गोकि लोकतंत्र को किया जा सकता है
विलम्बित समय समय पर
उसे कभी भी नहीं हराया जा सकता है हमेशा के लिए
उस सच में
उस यकीन में हमारी आस्था है
जब तक हमारी ऑंखें देखतीं भविष्य को
इतिहास गडाये हुए है अपनी निगाहें हम पर
यह युग है महज प्रतिदान का
उसकी स्थापना के वक्त से ही हमें डर था
हम ज़रा भी नहीं थे तैयार वैसे डरावने घंटे के उत्तराधिकारी बनने के लिए
पर उसीमें हमने पाई वह ताक़त
नया अध्याय लिखने के लिए
खुद पर उम्मीद और हंसी देने के लिए
तो जब हमने एक बार पूछा–
कि कैसे हम पर आ सकता है महाविनाश ?
हम पीछे नहीं हटेंगे
और आगे बढ़ जायेंगे जैसा होना था
चोटों से भरा एक देश
उदार पर मजबूत
भयंकर और आज़ाद
हमें पीछे नहीं घुमाया जा सकता
धमका कर रोका नहीं जा सकता
हमें पता है हमारी निष्क्रियता और जड़ता
हमारी अगली पीढ़ी को मिल जायेगी विरासत में
हमारी ग़लतियाँ बन जायेंगी उनका बोझ
पर इतना तो तय है
अगर मिला दें हम दयालुता को अपनी ताकत से
और ताकत को अधिकार से
तो प्यार बन जायेगा हमारी विरासत
जो बदल देगी हमारे बच्चों का
जन्मसिद्ध अधिकार
तो क्यों नहीं हम छोड़ जायें अपने पीछे एक देश
जैसा हमें मिला था उससे काफ़ी बेहतर
तांबे जैसी पकी हमारी छाती से हर सांस निकलती
बना देगी उसे बेहतरीन
हम पश्चिम की सुनहरी पहाड़ियों से उठेंगे
हम उत्तर पश्चिम की तेज़ हवाओं से उटठेंगे
जहां हमारे पूर्वजों ने पहले महसूस किया था क्रान्ति को
हम उठेंगे मध्य पश्चिम राज्यों के झील घिरे शहरों से
हम उठेंगे सूरज की गर्मी से तपते दक्षिण से
हम करेंगे पुनर्निर्माण, समाधान और बरामद
देश के हर मालूम नुक्कड़ और कोने से।
हमारे लोग तरह तरह के और सुन्दर
उभरेंगे सुंदर और चकनाचूर
जब दिन आयेगा
छाये से हम निकल पड़ेंगे
जलते हुए और निडर
तब नया सवेरा खिल उठेगा
जैसे ही हम उसे आज़ाद करेंगे
क्योंकि वहां हमेशा है प्रकाश
सिर्फ हम उतने बहादुर हों कि उसे देख पायें
अगर बहादुर बन जाये हम उसके जैसा बन जाने को
आलेख और अनुवाद — पंकज प्रसून