योगी के दिल्ली दौरे का उत्तर प्रदेश की राजनीति पर क्या असर होगा ?

योगी हिंदुत्व के नए ब्रांड एम्बेसडर , इसलिए उनको किनारे करना मुश्किल

राम दत्त त्रिपाठी
राम दत्त त्रिपाठी

उत्तर प्रदेश में अचानक बढ़े राजनीतिक तापमान और भारतीय जनता पार्टी में गहराते आंतरिक कलह के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा से मुलाक़ात कर क्या “मार्गदर्शन “ प्राप्त किया , इसको लेकर तरह – तरह के क़यास लगाये जा रहे हैं .

चर्चा इस बात की भी है कि वह उत्तर प्रदेश के बड़े नेता और रक्षामंत्री से नहीं मिले . यह भी कि राष्ट्रपति से मिलने की ज़रूरत क्यों पड़ी ? क्या योगी की सेवाएँ दिल्ली अथवा कहीं और लेने पर भी विचार हो रहा है ?

प्रेक्षकों की निगाहें योगी के दिल्ली दौरे के परिणाम पर लगी हैं. समझा जाता है कि मुख्यमंत्री योगी के इस दिल्ली दौरे में प्रदेश में विधान सभा चुनाव से पहले प्रदेश सरकार,  भाजपा संगठन और चुनावी गठबंधन का खाका तैयार हो जाएगा. 

प्रेक्षकों का कहना है उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी की आंतरिक कलह अब निर्णायक मोड़ पर है. जल्दी ही तय हो जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश का अगला विधान सभा किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी. यह भी कि अगर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो उनके मंत्रिमंडल और पार्टी संगठन में क्या फेरबदल होगा. 

योगी नवरात्र पूजा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के नए ब्रांड एम्बेसडर

बहरहाल पिछले चार सालों में योगी हिंदुत्व के नए ब्रांड एम्बेसडर बनकर उभरे हैं, इसलिए उनको किनारे करना मुश्किल माना जा रहा है.

https://twitter.com/myogiadityanath/status/1402982193740218373?s=21

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कल अचानक दिल्ली पहुँचकर गृहमंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की थी . श्री योगी आज  शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष  जे पी नड्डा से मिलें . याद दिला दें कि राष्ट्रीय स्वयं संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेता पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश में सरकार और संगठन का कामकाज दुरुस्त करने में लगे हैं. 

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सरकार में मंत्री, विधायक, संसद और ज़िला सतर के कार्यकर्ताओं में मुख्यमंत्री योगी के कामकाज की शैली को लेकर असंतोष और शिकायतें हैं. यह शिकायतें हाल में कोरोना महामारी के दौरान और बढ़ गयीं जब उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र चरमरा गया. बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई. इलाज के लिए बेड, इंजेक्शन और दवाइयाँ मिलने में तो परेशानी हुई ही, शवों के अंतिम संस्कार के लिए भी लम्बी क़तारें लग गयीं. ढेर सारी लाशें गंगा नदी में उतराती मिलीं. बहुत से लोगों ने नदी किनारे बालू में शव दफ़न कर दिए. 

समझा जाता है कि योगी सरकार के कामकाज के तरीक़ों को लेकर पहले से दिल्ली चिंतित थी. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भरोसेमंद नौकरशाह अरविंद कुमार शर्मा को दिल्ली से लखनऊ भेजा, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने उन्हें महत्व नहीं दिया. कहा जाता है कि उन्होंने शर्मा मंत्रिमंडल को मंत्रिमंडल में लेने से मना कर दिया. 

कहा जाता है कि दिल्ली को शक है योगी आदित्यनाथ आगे चलकर प्रधानमंत्री मोदी का विकल्प बनने का सपना देख रहे हैं. यद्यपि श्री योगी ने इससे इनकार किया है. श्री योगी और अमित शाह के बीच संवादहीनता की खबरें भी थीं. 

जितिन प्रसाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ

एक दिन पहले जब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेता जितिन प्रसाद ने दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की उस समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अथवा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव की अनुपस्थिति भी गौर तलब है. पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव योगी आदित्यनाथ के समर्थक माने जाते हैं. 

चर्चा है कि फेरबदल में जितिन प्रसाद और प्रधानमंत्री के भरोसेमंद पूर्व अफ़सर अरविंद कुमार शर्मा को महत्वपूर्ण दायित्व मिला सकता है.

मंत्रिमंडल विस्तार में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नेताओं को भी जगह मिल सकती है . किसान ऑंदोलन के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की अलोकप्रियता पार्टी नेतृत्व की चिंता का बड़ा कारण है .

कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव की कमान एक बार फिर से अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी अमित शाह को सौंप दी है. जगज़ाहिर है कि योगी और शाह के संबंध अच्छे नहीं हैं .

प्रेक्षकों का कहना है उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी की आंतरिक कलह अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच गयी है. अब जल्दी ही तय हो जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश का अगला विधान सभा किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी. यह भी कि अगर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने रहते हैं तो उनके मंत्रिमंडल और पार्टी संगठन में क्या फेरबदल होगा. 

याद दिला दें कि राष्ट्रीय स्वयं संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेता पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश में सरकार और संगठन का कामकाज दुरुस्त करने में लगे हैं. 

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सरकार में मंत्री, विधायक, संसद और ज़िला सतर के कार्यकर्ताओं में मुख्यमंत्री योगी के कामकाज की शैली को लेकर असंतोष और शिकायतें हैं. 

यह शिकायतें हाल में कोरोना महामारी के दौरान और बढ़ गयीं जब उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र चरमरा गया. बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई. इलाज के लिए बेड, इंजेक्शन और दवाइयाँ मिलने में तो परेशानी हुई ही, शवों के अंतिम संस्कार के लिए भी लम्बी क़तारें लग गयीं. ढेर सारी लाशें गंगा नदी में उतराती मिलीं. बहुत से लोगों ने नदी किनारे बालू में शव दफ़न कर दिए. 

समझा जाता है कि योगी सरकार के कामकाज के तरीक़ों को लेकर पहले से दिल्ली चिंतित थी. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भरोसेमंद नौकरशाह अरविंद कुमार शाह को दिल्ली से लखनऊ भेजा, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने उन्हें महत्व नहीं दिया. कहा जाता है कि उन्होंने शर्मा मंत्रिमंडल को मंत्रिमंडल में लेने से मना कर दिया. 

कहा जाता है कि दिल्ली को शक है योगी आदित्यनाथ आगे चलकर प्रधानमंत्री मोदी का विकल्प बनने का सपना देख रहे हैं. यद्यपि श्री योगी ने इससे इनकार किया है. 

श्री योगी और अमित शाह के बीच संवादहीनता की खबरें भी थीं. लेकिन श्री योगी कल अचानक दिल्ली पहुँचकर अमित शाह के घर पर क़रीब डेढ़ घंटे रहे. उम्मीद है श्री शाह ने उन्हें दिल्ली की मंशा बता दी है. 

कहा जाता है कि मुख्यमंत्री योगी को भी पार्टी हाईकमान से अनेक शिकायतें हैं . सबसे बड़ी शिकायत यह कि उत्तर प्रदेश के बारे में राजनीतिक निर्णय लेने से पहले उनसे सलाह नहीं ली जाती. दूसरे यह कि उनके मंत्रिमंडल के कई सदस्य हाइकमान की शह पर उनसे सहयोग नहीं करते.

एक दिन पहले जब उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेता जितिन प्रसाद ने दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की उस समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अथवा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव की अनुपस्थिति भी गौर तलब है. पार्टी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव योगी आदित्यनाथ के समर्थक माने जाते हैं. 

कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव की कमान एक बार फिर से अपने सबसे विश्वस्त सहयोगी अमित शाह को सौंप दी है. 

इसी सिलसिले में शाह कल अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल से भी मिले. खबरें हैं अपना दल मंत्रिमंडल में जगह चाहता है. 

उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़े वर्गों का विशेष महत्व है. जातीय संतुलन साधने के लिए शाह निषाद समुदाय के नेताओं से मिले. 

प्रेक्षकों का कहना है कि अब उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के बीजेपी की रणनीति जल्दी ही अंतिम रूप ले लेगी. 

इसी सिलसिले में शाह कल अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल से भी मिले. खबरें हैं अपना दल मंत्रिमंडल में जगह चाहता है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में पिछड़े वर्गों का विशेष महत्व है. जातीय संतुलन साधने के लिए शाह निषाद समुदाय के नेताओं से मिले. 

प्रेक्षकों का कहना है कि अब उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के बीजेपी की रणनीति जल्दी ही अंतिम रूप ले लेगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

19 − 1 =

Related Articles

Back to top button