क्या योगी मंत्रिमंडल के पुनर्गठन और सत्ता में साझेदारी के लिए तैयार हैं ?
संकेत हैं कि भारतीय जनता पार्टी हाईकमान उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले प्रशासन दुरुस्त करने और सामाजिक राजनीतिक संतुलन बनाने के लिए योगी मंत्रिमंडल का पुनर्गठन और विस्तार चाहता है . समझा जाता है कि संघ भी इस रणनीति पर सहमत है .
पार्टी हाई कमान के बीच यह राय लंबे मंथन और खींचतान के बाद बनी है . सूत्रों के अनुसार पार्टी हाईकमान योगी को खोना नहीं चाहता, इसलिए यह बीच का रास्ता सोचा गया है .
भारतीय जनता पार्टी केंद्रीय नेतृत्व में उत्तर प्रदेश केप्रभारी राधा मोहन सिंह ने रविवार को सुबह राज्यपाल आनंदी बेन से मुलाक़ात के बाद कहा , “सरकार-संगठनमिलकर अच्छा काम कर रहे हैं . मंत्रीमंडल में जो पद खाली हैं, वो भरे जाएंगे. जो पद खाली हैं उनपर मुख्यमंत्रीनिर्णय लेंगे .”
मंत्रिमंडल में आधा दर्जन और लोगों को लेने की गुंजाइश है.
लेकिन राधा मोहन सिंह ने गवर्नर से मुलाक़ात में में उन्हें जो बंद लिफ़ाफ़ा दिया उसको लेकर राजनीतिक हलकों में तरह – तरह की अटकलें हैं . एक अनुमान यह है कि इन पत्रों में ज़रूरत पड़ने पर पेशबंदी का इंतज़ाम हो सकता है .
मुख्यमंत्री के रुख़ का इंतज़ार
बहरहाल, अभी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से यह संकेत आना बाक़ी है कि हाईकमान की योजना उन्हें स्वीकार है. सत्ता का बँटवारा और साझेदारी ही दिल्ली और लखनऊ के बीच खींचतान का मुख्य मुद्दा रहा है .
विधानसभा चुनाव की तैयारी
उत्तर प्रदेश में अगले साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है। राज्य अब चुनावी मोड में भी आतादिख भी रहा है। चुनाव से ठीक पहले होने वाली सियासी उठापटक भी अब उत्तर प्रदेश में तेज हो गई है। सबसेअधिक बैचेनी सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा में दिखाई दे रही है। मानों ऐसा लग रहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा मेंसियासी घमासान सा चल रहा है। योगी सरकार और पार्टी संगठन को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है।
क्या योगी – मोदी में पट नहीं रही
चुनाव से ठीक पहले सरकार और संगठन में बेचैनी साफ नजर आ रही है। सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिगलियारों में भाजपा के बड़े नेताओं में छिड़े द्धंद को लेकर जमीनी स्तर का कार्यकर्ता नाराज दिखाई दे रहा है।चर्चाएं तो मुख्यमंत्री को भी बदले जाने की चल रही है। ऐसे में कयासबाजी भी तेज हो गई है कि क्या योगीऔर मोदी में ही क्या अब ठन गई है। इन कयासों को और हवा अब और इस लिए मिल गई है कि मुख्यमंत्रीयोगी आदित्यनाथ के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह समेत पार्टी के राष्ट्रीयअध्यक्ष जेपी नड्डा ने उन्हें सार्वजनिक तौर पर बधाई नहीं दी।
दरअसल शनिवार को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्मदिन था और भाजपा के सभी बड़ेनेताओं ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (ट्वीटर) से उनको बधाई दी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी,गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने किसी भी आधिकारिक अकाउंट सेयोगी आदित्यनाथ को बधाई नहीं दी। इसके बाद सियासी गलियारों में यह सवाल उठने लगा है कि क्या योगीऔर मोदी के बीच सब ठीक है।
यहां आपको बता दें कि पिछले दो सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने योगीआदित्यनाथ को न केवल अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल से बधाई दी थी बल्कि योगी आदित्यनाथ ने पीएममोदी को रिप्लाई कर धन्यवाद भी दिया था। वहीं मीडिया की कुछ खबरों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेफोन कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जन्मदिन की बधाई दी है।
दरअसल उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से सरकार और संगठन में बड़े फेरबदल की अटकलें चल रही है।कहा जा रहा है कि चुनाव से किसान आंदोलन और कोरोना के चलते एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर को कम करने केलिए केंद्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में सत्ता और संगठन में बड़ी सर्जरी का मन बना चुका है। इसमें मंत्रिमंडल मेंशामिल चेहरों में बदलाव के साथ सरकार का चेहरा बदलने तक के कयास लगाए जा रहे है।
लखनऊ में रहकर उत्तर प्रदेश की सियासत को दशकों से करीबी से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठीकहते हैं कि लखनऊ से लेकर दिल्ली तक भाजपा के अंदर जो कुछ चल रहा है उसकी असली जड़ सत्ता कीपॉवर शेयरिंग से जुड़ी है। पॉवर शेयरिंग की यह लड़ाई इस साल जनवरी में उस वक्त ही शुरु हो गई थी जबगुजरात कैडर के IAS अफसर अरविंद कुमार शर्मा को एमएलसी बनाकर भेजा गया था। अरविंद कुमार शर्माकी गिनती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद और करीबी लोगों में से होती है और माना गया कि अरविंद कुमारशर्मा को यूपी भेजकर पीएम मोदी ने राज्य में अपना सीधा दखल दे दिया है।
अरविंद कुमार शर्मा को यूपी आए छह महीने हो गए है लेकिन अब तक उनकी भूमिका साफ नहीं हो पाई है।अरविंद कुमार शर्मा जिनके बारे में कहा गया था कि वह प्रशासन में सीधा दखल देंगे लेकिन ऐसा कुछ हो नहींसका। अब तक अरविंद कुमार शर्मा की कोई भूमिका नजर नहीं आ रही है और अगर माना भी जाए कि उनकोप्रशासन सुधारने के लिए भेजा भी गया था तो पहले से ही यह आरोप लग रहे है कि मुख्यमंत्री केवल ब्यूरोक्रेसीकी ही सुनते है तो ऐसे में एक और ब्यूरोक्रेट को भेजकर और क्या हासिल हो सकता है यह समझ से परे है।
ऐसे में अब चुनाव से ठीक पहले बीएल संतोष और राधामोहन सिंह का लखनऊ में डेरा डालना और मंत्रियों-विधायकों से वन-टू-वन चर्चा करने से सियारी पारा अचानक से गर्मा गया . केंद्रीय पर्यवेक्षक के आने से जिसतरह की खबरें निकल कर आ रही है कि उससे तो चुनाव से ठीक पहले ऐसा लग रहा है कि मानों भाजपा में हरपुर्जा (व्यक्ति) नाराज है।
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि उत्तप्रदेश भाजपा में इस समय में नेताओं की महत्वकांक्षा के चलते एक पर्सनालिटीक्लेश जैसा नजारा दिख रहा है। इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, भाजपाप्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और केंद्र से भेजे गए अरविंद कुमार शर्मा कहीं न कहीं आमने-सामने आ गए है।ऐसे में अब देखना होगा कि चुनाव से ठीक पहले भाजपा की इस अंदरूनी राजनिति का ऊंट किस करवटबैठेगा. क्या मंत्री मंड विस्तार से सब कुछ सामान्य हो जायेगा या आगे भी खटखट चलती रहेगी .