कोरोना के कारण वर्ष 2020 – इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जायेगा

वर्ष 2020 – एक ऐतिहासिक वर्ष रहा है. विशेषकर कोरोना वायरस की बीमारी के कारण वर्ष बीस – बीस मानवीय इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जायेगा। पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी अपनी समीक्षा में कहते हैं कि मानवीय इतिहास में वर्ष 2020 काले अक्षरों में लिखा जाएगा.

वर्ष आते हैं और चले जाते हैं – काल के गाल में सदैव के लिये समा जाने के लिये। उनमें से कुछ मानव के जीवन को ऐसा प्रभावित कर जाते हैं कि मानवीय इतिहास में अमिट स्थान बना लेते हैं। 

इक्कीसवीं सदी का वर्ष बीस बीस भी कुछ ऐसा ही रहा है – वैश्विक, आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक समस्त मापदंडों में अमिट इतिहास का जनक।

वैश्विकपरिदृश्य– 

वर्ष 2019 अपनी सामान्य गति से समाप्त हो रहा था और जनजीवन पूर्णतः समान्य था कि नवम्बर माह में चीन में वूहान नगर स्थित प्रयोगशाला से कोविड-19 नामक दुर्धर्ष वाइरस निकल भागा। परिणामस्वरूप वर्ष बीस- बीस का प्रारम्भ चीन से निकले इस कोरोना नामक दैत्य द्वारा लगभग सम्पूर्ण विश्व को अपने पंजे में जकड़ लेने से हुआ। 

इस महामारी का प्रसार इतना तीव्र था कि अधिकांश देश हतप्रभ एवं भयाक्रांत हो गये और जब तक वे इसे समझ कर सम्हल पाते, लाखों लोग कोरोनाग्रस्त हो गये और सहस्रों काल-कवलित हो गये। 

कहते हैं कि वर्ष 1918 की फ़्लू की महामारी के बाद इतनी तेज़ी से फैलने वाली यह पहली महामारी थी। 

अधिकांश लोगों के विश्वास के अनुसार इस महामारी के उद्भव का कारण चीन में नये-नये वाइरस बनाना और उन्हें प्रयोगशाला में बंद रखने में समुचित सावधानी न बरतना था, परंतु कुछ लोगों के अनुसार चीन में बिना समुचित जांच के सभी प्रकार के जानवरों के मांस का भक्षण किया जाना इस वाइरस के प्रसार का कारण था। 

अमेरिकन राष्ट्रपति ने तो चीन पर अन्य देशों को क्षति पहुंचाने हेतु जानबूझकर उनमें कोरोना वाइरस को फैलाने का आरोप लगाया, जिससे विश्व में तनाव बढ़ा और विश्वयुद्ध की आशंका उत्पन्न हुई। 

दूसरी ओर अनेक देशों ने कोरोना के विरुद्ध युद्ध में एकजुट होकर श्लाघनीय कदम उठाये, जिससे एक वर्ष के पश्चात ही इस पर नियंत्रण हो जाने की सम्भावना दृष्टिगोचर हो रही है। 

मानवीय सोच का एक शोचनीय पहलू यह भी है कि इतनी बड़ी आफ़त के दौरान भी मज़हबी कट्टरपंथियों के आतंकी हमले नहीं रुके और अनेक देशों में अनगिनत जाने गईं, घर बरबाद हुए तथा विधवायें व बच्चे अनाथ हुए।

 अज़रबैजान और आरमीनिया के बीच युद्ध भी हुआ, जिसमें लगभग एक लाख व्यक्तियों ने प्राण गंवाये और अगणित घर बरबाद हुए।

 कोरोना की रोकथाम हेतु अधिकांश देशों ने लौकडाउन, मास्क लगाने और आवागमन के साधन बंद कर देने जैसे उपाय किये। इससे सामान्य जनजीवन ठप सा हो गया। जन्मोत्सव, विवाहोत्सव, पर्वोत्सव, मधु-चंद्र यात्रा जैसे कार्यक्रम नगण्य हो गये। 

ऐसे में कतिपय साहसिक एवं रोचक घटनायें भी घटीं। कानपुर जनपद की एक लड़की का विवाह कन्नौज जनाद के एक लड़के से निश्चित हुआ था, जिसे कोरोना के प्रतिबंध के कारण स्थगित कर दिया गया था। 

लड़की को इतनी उतावली थी कि वह निश्चित तिथि की ब्राह्मवेला में घर से निकल पड़ी और पैदल चलकर अपनी होने वाली ससुराल पहुंच गई और उसी दिन विवाह कर देने की ज़िद करने लगी। ससुराल वाले भौचक रह गये, परंतु लड़की के साहस के आगे झुक गये और उसी दिन मंदिर में विवाह करा दिया।

 आवागमन सीमित हो जाने के कतिपय लाभ भी हुए- सड़क, रेल एवं वायुयान यात्राओं में घटित होने वाली दुर्घटनायें काफ़ी कम हो गईं. 

वायुमंडलीय प्रदूषण इतना कम हो गया कि अनेक व्यक्तियों ने जीवन में पहली बार रात्रिकालीन नक्षत्रों एवं ग्रहों को साफ साफ देखा और ओज़ोन लेयर के छिद्र में भी कुछ कमी आई।   

आर्थिकपरिदृश्य–  

लम्बी अवधि तक लौकडाउन एवं सोशल डिस्टेंसिंग अपनाये जाने के कारण अधिकांश फ़ैक्ट्रियां, होटल, दूकानें एवं आवागमन के साधन बंद हो गये, जिसका गम्भीर दुष्प्रभाव औद्योगिक उत्पादन एवं व्यापारिक गतिविधियों पर पड़ा तथा रोज़गार समाप्त हो जाने के कारण मज़दूरों, कारीगरों एवं यात्रा तथा आतिथ्य से जुड़े कर्मियों को जीने के लाले पड़ गये| भुखमरी की दशा में उनके द्वारा अपने प्रवास के नगर से अपने पैतृक गांव पहुंचने के लिये सामान लादकर सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा की गई। 

इन यात्राओं में रोंगटे खड़े कर देने वाले हृदयविदारक दृश्य प्रस्तुत हुये एवं कुछ जानें भी गईं। इन यात्राओं ने आपातकाल में मानव द्वारा असीम शारीरिक क्षमताओं के उत्पन्न कर लेने का प्रदर्शन भी किया। 

अनेक विस्थापितों तथा बेरोज़गारों को राज्य द्वारा अथवा अशासकीय संस्थाओं द्वारा स्रजित रसोईघरों का भोजन खाने को मजबूर होना पड़ा। अल्प अवधि में लाखों लोगों हेतु भोजन का प्रबंध कर देने और उन्हें आर्थिक सहायता पहुंचा देने की राज्यों की क्षमता की परीक्षा भी हुई। 

कल कारखाने एवं वैश्विक व्यापार बंद हो जाने से लगभग समस्त देशों की आर्थिक गतिविधियां रुक सी गईं और शेयर बाज़ार धड़ाम से गिर पड़े।

 पेट्रोल व डीज़ल की खपत काफ़ी कम हो गई, जिससे निर्धन देशों द्वारा उससे बचा धन कोरोना के विरुद्ध लड़े जाने वाले युद्ध में लगाया जा सका। औद्योगिक एवं व्यापारिक गतिविधियों की कमी से शासन को टैक्स की कमाई काफ़ी कम हो गई और अधिकांश राज्यों ने मद्य बिक्री को खूब बढ़ावा देकर उसकी भरपाई की।

शारीरिकपरिदृश्य–  

इस महामारी ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों को अचानक जकड़ लिया कि अधिकांश देशों के अधिकतर स्वास्थ्य संसाधन कोरोना सम्बंधी स्वास्थ्य सेवाओं में लग गये। पूरे पूरे अस्पताल कोरोना अस्पताल घोषित कर दिये गये और दूसरे रोगों से ग्रसित रोगियों को स्वास्थ्य सेवायें मिलने में बड़ी कठिनाई आई।

 इसका एक लाभ अवश्य हुआ कि सामान्य जन में स्वस्थ रहने एवं बीमारी से बचाव करने के प्रति जानकारी और रुचि बढ़ी। घर में रहकर व्यायाम करने, योग करने और स्वास्थ्य कारक भोजन खाने की आदत पड़ी।

बीमारी से बचाव एवं स्वास्थ्य के प्रति सजगता बढ़ने के फलस्वरूप वर्ष 2020 में कोरोना के अतिरिक्त अन्य गम्भीर रोगों में कमी आई- उदाहरणार्थ विभिन्न प्रकार के फ़्लू, मलेरिया, एंसेफलाईटिस आदि का प्रकोप कम रहा। ऐसा अनुमान है कि स्वास्थ्य के प्रति सजगता के कारण भविष्य में हृदय, जिगर आदि के रोगों में भी कमी दृष्टिगोचर हो सकती है।    

मानसिकपरिदृश्य– 

हमारे मानस एवं हमारी दैनिक कार्य पद्धति दोनो पर कोरोना के प्रतिबंधों ने गहरा एवं दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ा है। पहले तो घबराहट में अधिकांश कार्यालय एवं विद्यालय बंद कर दिये गये, परंतु फिर घर पर रहकर ही औनलाइन काम प्रारम्भ हो गये और औनलाइन पढ़ाई भी प्रारम्भ हो गई। 

यह प्रयोग समस्त कार्यों को निपटाने में तो सफल नहीं हुआ, परंतु इससे अनेक कार्यालयों व विद्यालयों का बिजली-पानी का व कर्मचारियों के आवागमन का खर्चा कम हो गया। कर्मचारियों के समय की बचत भी हुई। 

ऐसा प्रतीत होता है कि कोरोना काल के अनुभव का लाभ उठकर भविष्य में अनेक कम्पनियां एवं प्रशासकीय विभाग घर से काम कराने की प्रथा को कायम रख सकते हैं। 

डिजिटल भुगतान, डिजिटल व्यापार एवं डिजिटल मनोरंजन का उपयोग द्रुतगति से बढ़ा। सामान्य आवागमन पर प्रतिबंध होने के कारण दुर्घटनायें कम हुईं .

 लोगों के घर में रहने के कारण सम्पत्ति की चोरी, डकैती सम्बंधी अपराध कम हुए। 

कतिपय समाज शास्त्रियों का अनुमान है कि कुछ लोगों ने लौकडाउन को एक लम्बे हनीमून के रूप में लिया है और यह सम्भावना है कि इसका फल वर्ष 2021 में घर घर में बच्चों की किलकारी के रूप में दिखाई पड़े।  

वर्ष बीस-बीस अपने अवसान पर है और वैक्सीन बन जाने के कारण कोरोना का अवसान भी निकट है। आशा है कि वर्ष 2021 ज्यों-ज्यों आगे बढ़ेगा, वैश्विक गतिविधियां उसी प्रकार सामान्य हो जायेंगीं, जैसी कोरोना के उद्भव से पूर्व थीं। 

इस वर्ष का जीवन के प्रति मानवीय सोच एवं हमारी दिनचर्या पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, परंतु महामारी की भयावहता के कारण वर्ष बीस बीस मानवीय इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जायेगा।  

Mahesh Chandra dwivedi writer
महेश चंद्र द्विवेदी

महेश चंद्र द्विवेदी, रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश                   

Leave a Reply

Your email address will not be published.

19 − six =

Related Articles

Back to top button