अंधेरी खंदकों में सत्ताओं के खुले आकाश की तलाश !

श्रवण गर्ग, वरिष्ठ पत्रकार

अमेरिका में इस वक्त ख़ंदकों की लड़ाई सड़कों पर लड़ी जा रही है।दुनिया भर की नज़रें भी अमेरिका पर ही टिकी हुईं हैं।कोरोना के कारण सबसे ज़्यादा मौतें अमेरिकी अस्पतालों में हुईं हैं , पर देश के एक शहर में पुलिस के हाथों हुई एक अश्वेत नागरिक की मौत ने सभी पश्चिमी राष्ट्रों की सत्ताओं के होश उड़ा रखे हैं।जिस गोरे पुलिस अफ़सर ने अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ़्लॉयड की गर्दन को उसका दम घुटने तक अपने घुटने के नीचे आठ मिनट से ज़्यादा समय तक दबाकर रखा होगा, उसे तब अन्दाज़ नहीं रहा होगा कि वह पाँच दशकों के बाद अपने देश में किस नए इतिहास की नींव डाल रहा है।दुनिया की जो सर्वोच्च ताक़त मुँह पर मास्क पहनने को कमजोरी का प्रतीक मानती हो उसे अपना मुँह छुपाने के लिए घर के बंकर में कोई एक घंटे से ज़्यादा का समय बिताना पड़ा।

इतिहास में कुछ क्षण ऐसे आते हैं जब पूर्व में लिखे गए सारे शब्द ध्वस्त हो जाते हैं।जो क्षण अमेरिकी आकाश को इस समय सड़कों से उड़ते हुए धुएँ से काला और अशांत कर रहा है वह तब भी इतनी तीक्ष्णता से हाज़िर नहीं हुआ था जब कोई पचास साल पहले अश्वेतों के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले नेता मार्टिन लूथर किंग की हत्या कर दी गई थी।किंग राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अहिंसक क्रांति के एक सच्चे अनुयायी थे ।गांधी जी की तीस जनवरी 1948 को हत्या किए जाने के बाद देश में हिंसा नहीं हुई थी पर वर्ष 1984 में तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद क्या कुछ हुआ था वह उन लोगों की स्मृतियों में अभी भी जीवित है जिन्होंने उस क्षण को जिया और देखा है।

दुनिया बदल रही है पर दुनिया के शासक नहीं बदलना चाहते हैं।दुनिया अपने पंखों का विस्तार किए हुए घने बादलों के बीच उड़ रही है और शासक अंधेरी ख़ंदकों में अपनी सत्ताओं के खुले आकाश तलाश रहे हैं।कोरोना के कारण अमेरिका में अब तक एक लाख से अधिक लोग अपनी जानें गंवा चुके हैं और इनमें एक बड़ी संख्या अश्वेत नागरिकों और ‘केयर होम्स’ में रहने वाले बुजुर्गों की है।ये अश्वेत नागरिक कोई दो सौ से अधिक सालों से जिस दासता के ख़िलाफ़ और सामान अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं वही ग़ुस्सा इस समय सड़कों पर फूटा पड़ रहा है।जॉर्ज फ़्लॉयड तो केवल एक नाम है।दुनिया भर की जासूसी में लगा देश इस बात का भी पहले से पता नहीं लगा सका कि नागरिक विरोध की आग का धुआँ ठीक व्हाइट हाउस के सामने से भी उठ सकता है और कि तब राष्ट्रपति की सीक्रेट सर्विस के लोग इतने घबरा जाएँगे कि श्वेत भवन की भव्य इमारत की बत्तियाँ ही कुछ क्षणों के लिए गुल करना पड़ जाएगी।

अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ़्लॉयड की गर्दन को जब गोरे पुलिस अफ़सर डेरिक चेविन ने अपने घुटने के नीचे दबा रखा था तब वह गिड़गिड़ा रहा था कि ‘मैं साँस नहीं ले पा रहा हूँ’( I can’t breathe),आज समूचे अमेरिका का दम घुट रहा है और कई स्थानों पर संवेदनशील पुलिसकर्मी आक्रोशित अश्वेत-श्वेत नागरिकों से अपने ही कुछ साथियों के कृत्य के लिए क्षमा माँग रहे हैं।अदभुत दृश्य हैं कि जॉर्ज फ़्लॉयड हादसे से उतने ही दुखी गोरे नागरिक अपने अश्वेत पड़ौसियों के सामने एक घुटने के बल बैठकर अपनी समूची जमात की ओर से सदियों से चले आ रहे नस्लवाद के लिए माफ़ी की माँग कर रहे हैं और जो लोग सामने खड़े हैं उनकी आँखों से आंसू बह रहे हैं।

वाशिंगटन और न्यूयॉर्क सहित अमेरिका के अन्य चकाचौंध वाले राज्यों में इस समय जो कुछ भी चल रहा है उसने दुनिया के सबसे सम्पन्न राष्ट्र की विपन्नता को उजागर कर दिया है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, विश्व भर की नज़रें इस समय अमेरिका की ओर हैं कि राष्ट्रपति पद के चुनावों (नवम्बर) के ठीक पहले आए इस अभूतपूर्व संकट से ट्रम्प कैसे बाहर आते हैं।इन देशों में वे हुकूमतें भी शामिल हैं जो आहिस्ता-आहिस्ता ‘एकतंत्रीय’ शासन व्यवस्था की ओर बढ़ रही हैं और जिन्हें पूरा यक़ीन है कि विजय अंततः उसी की होती है जो सत्ता में होता है।जो पिछले दो सौ सालों में सफल नहीं हुए वे इस बार कैसे हो सकते हैं ?

 इन हुकूमतों की चिंता केवल इतनी भर है कि मौजूदा विरोध कितने दिनों तक चलता है।ट्रम्प ने विरोध से निपटने के लिए सेना के प्रयोग और ख़ूँख़ार कुत्तों के इस्तेमाल तक की अगर चेतावनी दी है तो मानकर चला जाना चाहिए कि अपने देश की बहुसंख्यक सवर्ण (गोरी) आबादी का समर्थन उन्हें प्राप्त है जो चुनावों तक जारी रहेगा।अगर इसमें सच्चाई है तो भी कोई आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए क्योंकि सबको समान अधिकारों की गारंटी देने वाला संविधान तो हमारे यहाँ की तरह ही अमेरिका में भी है।

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Shravan Garg is a Senior Journalist of the print media.His journalistic footprints — over more than four decades, with leading Hindi, Gujarati and English newspapers have afforded him a ringside view of India in action.An alumnus of Thomson Foundation, London, UK and Salzburg Seminar, Salzburg, Austria — he has made forays into TV debates, mass media education, consulting, and teaching journalism at the university levels.

His time-line includes the who’s who of print media ranging from The Indian Express Group to Dainik Bhaskar Group to Dainik Jagran Group (NaiDunia) to Free Press Journal Group to Prestige Institute of Management and Research, Indore, amongst others.He has been an editorial head for the better part of his career and has served as a member of the National Integration Council, Press Council of India, Editors Guild of India, Indian Institute of Mass Communication Society, etc.

His passion for excellence and his unstinted drive for creative journalism are well known hallmarks in the industry. His personal integrity and loyalty to journalism have afforded him a well earned stature as a national media person.His website shravangarg.com has his writings, poetry and detailed CV.

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