नयी सदी का नया रास्ता – वर्क फ्राम होम

दिनेश कुमार गर्ग 
दिनेश कुमार गर्ग
दिनेश कुमार गर्ग
 
क्या मोदी कोरोना काल के अनुभवों को अवसर में बदल पाएंगे? नौकरों के देश भारत में नौकरी करने को उमड़ पड़ रहे लोगों की भीड़ से सड़कों को मुक्त कर पाएंगे और आफिस,बिजली, मेन्टेनेंस के खर्चों से उद्यमियों को मुक्त कर पाएंगे ?
कोविड 19 यानी चीन के वायरस  के कारण सम्पूर्ण विश्व के  देशों में लॉकडाउन होने के कारण उत्पादन के समस्त केन्द्र बन्द हुए और औद्योगीकरण के बाद के विश्व ने ऐसी अभूतपूर्व परिस्थिति में जीना शुरू किया, जिसकी कभी किसी रूप में, कवियों ने भी कल्पना नहीं की थी। 
भारत का आईटी उद्योग  विश्व के बडे़ आईटी उद्योगों में शामिल है और सरकारी क्षेत्रों में 1990 के दशकोत्तर काल में सरकारी नौकरियों में कमी के बाद साइंस से इंटर पास करने वाले युवकों को बीटेक कम्प्यूटर साइंस या आईटी की डिग्री रोजगार का सबसे बडा़ स्रोत बन गयी। बच्चे कालेज में ही होते , थर्ड फोर्थ इयर में कि तभी एक दिन पता चलता कि उसका प्लेसमेंट हो गया है। इन खबरों से भारतीय सुस्त ग्रोथ व आतंक , भ्रष्टाचार व राजनैतिक अस्थिरता वाले  माहौल में एक नई आशा का संचार होता रहा। भारत ने ऐसे करते-करते विश्व की टॉप आईटी इण्डस्ट्री का स्थान सन् 2000 आते-आते हासिल कर लिया , भारत ने अमरीका की सिलिकॉन वैली के काउण्टर मैग्नेट  के रूप में भी उभरना शुरू किया। 20 साल तक इस क्षेत्र ने भारत को आगे बढ़ाया।  पर अब 2020 में , जब विश्व की अर्थव्यवस्था की मंद गति के दुष्प्रभावों से भारत अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने की जुगत सोच ही रहा था , पूरे विश्व की लगभग सभी अर्थव्यवस्थाएं स्टैण्ड स्टिल मोड में आ गईं। भारत की अर्थव्यवस्था की प्रगति घट कर 4.3 पर अनुमानित की जा रही थी तो वह अब लॉकडाउन के पूर्व के अनुमानों में निगेटिव ग्रोथ के नजदीक पहुंच गई। 
 
भारत सरकार ने 20 लाख करोड़ के पैकेज दिये कोरोना से निपटने, अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए पर वे इकोनॉमिक स्टिमुलस हैं, जिनका असर आते-आते समय लगेगा। आर्थिक के अलावा कानूनी परिवर्तन करते हुए श्रम कानूनों की उन धाराओं को प्ले डाउन किया गया जो पूंजी निवेश के प्रवाह को बढ़ाने में भारत को नाकामयाब बना रहे थे। 
 
ऐसे में कुछ व्यावहारिक परिवर्तन भी करने की आहट स्वयं कैप्टेन्स आफ आईटी इण्डस्ट्रीज द्वारा की जा सकती है जिससे न केवल उनके पूंजी व्यय में कमी आ सकती है बल्कि वे भारत को एक नये माहौल में ले जा सकते हैं। ऐसा हो रहा है कि कोरोना काल में आई टी कंपनियों ने अपने एक्जीक्यूटिव्स और एनालिस्ट्स से घर बैठे काम कराया , कुछ सरकारी दफ्तरों के अफसरों व बाबुओं पर भी वर्क फ्रॉम होम को सफलतापूर्वक आजमाया गया है।
 
वर्क फ्रॉम होम 21 वीं सदी के नये कार्यालय का माहौल है। पहले जिस समय बच्चे घर से ऑफिस निकलते थे अब उसी समय में लोग घर में ही ऑनलाइन ऑफिस से ज्वाइन हो रहे हैं और रात में सोने के समय बिस्तरों पर लेटे-लेटे कार्यालयीय काम निपटा रहे हैं। उन्हें इसमें कार्य का बन्धन और घर की स्वतंत्रता दोनों एक साथ मिलती है।
 
भारत के वैज्ञानिक राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे कलाम के सलाहकार रहे सृजन पाल सिंह का कथन है कि लॉकडाउन के चलते भारत के आयात बिल में कटौती और रोड, रेल व हवाई परिवहन स्थगित होने से सन् 2020 में ऑयल इम्पोर्ट बिल में 3.5 लाख करोड़ रुपये की बचत होगी। यह बचत भारत की इकॉनमी साइज से भी ज्यादा है। उनका सुझाव है कि नरेन्द्र मोदी जैसा कहते हैं कि कठिनाई या संकट को अवसर में बदल देने का काम करते हैं , उन्हें अपने कथन को चरितार्थ करते हुए इस भारी बचत का उपयोग नव उद्यमियों पर करना चाहिए। ऐसे नव उद्यमियों पर निवेश करें जिन्होंने कोरोनाकाल में खडे़ रहने का माद्दा प्रदर्शित किया है। ऐसे उद्यमी सरकारी निवेश सपोर्ट का प्रयोग ऑनलाइन आफिस सेवा , स्वच्‍छ ऊर्जा के प्रसार और नई ऊर्जा या ईंधन के निर्माण में कर सकते हैं। 
 
सब जानते हैं कि भारत के बडे़ शहरों में अधिकांश आबादी सरकारी दफ्तरों के कर्मचारी , कंपनियों , फैक्ट्रियों के कर्मचारी , व्यवसायी , उनके सहयोगी और लोक सेवाएं प्रदान करने वाले लोगों की होती है। ऐसे शहरों में सुबह 6 बजे से छात्रों का भारी ट्रैफिक स्कूलों के लिए और फिर 9 बजे से सरकारी व निजी दफ्तरों के लिए होती है। हमारे शहर अपूर्ण और अनियोजित पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए कुख्यात हैं और ऐसे में लोगों को निजी ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करना मजबूरी होती है। यही कारण है कि ट्रैफिक जाम की स्थिति बनती है , सड़कों पर श्रमिकों के उत्पादक श्रम, समय की बर्बादी और प्रदूषण बढ़ने का खतरा बना रहता है। 
 
अब अगर नरेन्द्र मोदी सरकार और राज्य सरकारें एक नीति के तहत वर्क फ्राम होम की व्यवस्था करती हैं तो इससे देश की कई समस्याओं का हल हो सकेगा , उत्पादक श्रम समय की ट्रैफिक में बर्बादी होने से बचेगी और प्रदूषण पर लगाम लगेगी । ट्रेफिक में कमी से ऑड एवं ईवन जैसी मूर्खताओं से देश बच सकेगा।
 
इस का कारण यह है कि यदि किसी संस्थान में पिरामिडिकल ब्यूरोक्रेसी के तहत मान लीजिए 1000 लोग कार्यरत होने हैं तो उनके लिए एक विशाल कार्यालय स्थान की आवश्यकता होगी , कर्मचारियों को अपने आवास से कार्यालय तक आने जाने के लिए बडे़-छोटे मिलाकर 1000 वाहन का बोझ ट्रैफिक पर डालना होगा , विशाल पार्किंग स्थल चाहिये होगा, परंतु वर्क फ्राम होम व्यवस्था में पिरामिड के शीर्ष पर के ब्यूरोक्रेट्स के अलावा फाइनेन्स और इस्टैब्लिशमेण्ट को ही दफ्तर देने की आवश्यकता होगी।
 
छोटे से कार्यालय भवन से पूरा काम चलेगा और ऊर्जा बचत भी हो सकेगी। आठ नौ सौ से अधिक कर्मचारियों को रोजाना 2 से 3 घंटे प्रदूषित हवा में ट्रैफिक का संघर्ष नहीं झेलना पडे़गा बल्कि वे घर के सुकून भरे माहौल में कार्यालय का काम कर रहे होंगे। उनकी बचत कार एक्सपेन्सेज की भी होगी और वे ज्यादा से ज्यादा समय अपनी  फैमिली को देने में समर्थ होंगे। वहीं सरकार को ट्रैफिक व्यवस्था का दर्द भी कम होगा ।
 
सरकार को अपने भारत संचार निगम (बीएसएनएल )सहित सभी संचार कंपनियों को इफीशियंट बनाना होगा, रिहायशी इलाकों में पावर सप्लाई की गुणवत्ता में सुधार लाना होगा यानी पावर सप्लाई व्यवस्था से सरकार को आऊट कर प्राइवेटाइजेशन लाना होगा। 
 
(लेखक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उत्‍तर प्रदेश से सेवानिवृत्‍त उपनिदेशक हैं) 
 

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