अगस्त क्रांति -42 के नायक जेपी का दलगत राजनीति से मोहभंग क्यों हुआ?

डॉ. चन्द्रविजय चतुर्वेदी

अगस्त क्रान्ति -42 के भारत छोड़ो आंदोलन की आग को प्रज्वलित रखने में जयप्रकाश और डॉ. लोहिया की महती भूमिका रही।

कांग्रेस कार्यसमिति में गांधीजी के साथ भारत विभाजन के प्रस्ताव का विरोध करने वाले जेपी ने संविधान सभा का बहिष्कार किया था।

आजादी के बाद कांग्रेस से अलग होकर प्रजा समाजवादी दल का गठन कर जेपी सक्रिय राजनीति में समाजवादी चेतना को जागृत करते रहे।

भारतीय लोकतंत्र के प्रथम आमचुनाव 1952 के पश्चात् ही जेपी कई प्रश्नों के मंथन में उलझ गए।

एक ओर नेहरू उनका आवाहन कर रहे थे की वे सरकार तथा जनता के स्तर पर कांग्रेस तथा प्रजा समाजवादी दल के बीच सहयोग के उपाय और साधन खोजें, वहीं दूसरी ओर भारतीय समाजवादी आंदोलन वर्गगत अविकसित अर्थव्यस्था और राजनैतिक विकल्प में प्रभावी योगदान नहीं दे पा रहा था।

इसी बीच जेपी की मुलाकात आचार्य विनोबा भावे से हो जाती है, जेपी का मंथन तेज हो जाता है।

आदमी के पुनर्निर्माण में जेपी राज्य को असंगत समझ रहे थे, कोई भी राज्य नए आदमी का सृजन विधान से नहीं कर सकता। दलों की राजनीति आदमी के पुनर्निर्माण में बाधक है।

जेपी ने एक स्थल पर कहा की सम्पूर्ण भारतीय समाज विशेषकर ग्रामीण समाज की दशा आजादी के बाद उस टूटी टांग की भांति हो गई जिसका प्लास्टर अभी कटा ही है।

विदेशी दासता के विरुद्ध जिस समाज में चेतना का स्फुरण हुआ था, उसकी जीवंतता में आजादी के बाद कमी आने लगी, उसके आशावादिता के साथ छल होने लगा।

दलों का सोशलिज्म, पब्लिक सेक्टर या विदेश नीति पर झगड़ना गांवों की समस्या से कोई सम्बन्ध नहीं रखता।

गांव वालों को तो मतलब है कि अनाज की पैदावार बढे, सिंचाई का साधन हो, स्कूल खुलें आदि-आदि।

विचार मंथन की परिणति हुई दलगत राजनीती से जेपी की विरक्ति –सर्वोदय की ओर लोकशक्ति के लिए 19 अप्रैल 1954 को जेपी ने सर्वोदय आंदोलन को जीवन दान किया।

इस अवसर पर उन्होंने कहा –स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की वही पुरानी ज्योति जिसने मेरे जीवन का रास्ता प्रशस्त किया था और जो मुझे लोकतान्त्रिक समाजवाद की ओर लायी थी, सड़क के इस मोड़ पर मुझे आगे बढ़ा लायी।

मुझे यही खेद है की मैं अपनी जीवन यात्रा में, जब गाँधी हमारे बीच थे, इस स्थल तक नहीं पहुंच सका।

फिर भी कुछ वर्ष से मुझे विश्वास हो गया की हमारा आज का समाजवाद मानव जाति को स्वतंत्रता, बंधुत्व, समानता और शांति के उत्कृष्ट लक्ष्य तक नहीं ले जा सकता।

इसमें संदेह नहीं कि समाजवाद किसी भी प्रतिस्पर्धी सामाजिक तत्वज्ञान की अपेक्षा मानवजाति को उन लक्ष्यों के निकट ले जाने का आश्वासन देता है।

किन्तु मुझे विश्वास हो गया है की जब तक समाजवाद सर्वोदय में रूपांतरित नहीं हो जाता, वे लक्ष्य इसकी पहुँच से बाहर रहेंगे जिस प्रकार हम आजादी के आनंद से वंचित रह गए, वैसे ही आने वाली पीढ़ी को समाजवाद से वंचित रहना पड़ सकता है।

जेपी का दृढ विश्वास था की सर्वोदय सात्विक समाजवाद है जिसके माध्यम से ही जातिविहीन वर्गविहीन समाज का ढांचा खड़ा हो सकता है जिसमें सबको समान अवसर मिल सकेगा।

सर्वोदय की उपलब्धि से समाज स्वयं ही राज्यविहीन हो जाएगा।

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