सोनिया गांधी के बिना कांग्रेस क्यों नहीं चल सकती?

सोनिया
पंकज प्रसून

अक्सर यह आरोप लगाया जाता है कि क्या सोनिया गांधी के बिना कांग्रेस नहीं चल सकती ? उनके अलावा इस देश की सबसे पुरानी पार्टी में क्या कोई दूसरा नेता नहीं है ? क्या यह पार्टी नेहरुगांधी परिवार की जागीर बन गयी है ? इस पार्टी में क्या आंतरिक लोकतंत्र  है ही नहीं ? क्या इस पार्टी में कोई टैलेंटेड नेता नहीं है ?

इन सवालों का जवाब ढूंढने  की कोशिश करे।आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के विजिटिंग फेलो रशीद किदवई कांग्रेस पर टोही निगाहें रखते हैं और उन्होंने उस पर दो पुस्तकें भी लिखीं हैं — 24 अकबर रोड और सोनिया बायोग्राफी। उन्होंने रीडिफ़.कॉम के सैय्यद फिरदौस अशरफ को एक इंटरव्यू में सोनिया के हालिया कदमों के बारे में विस्तार से बताया ।

उन्होंने बताया कि अगर ट्रेन से गोरखपुर से मुंबई तक आयें तो रास्ते में कांग्रेस के  एक संसद सदस्य का भी  संसदीय निर्वाचन क्षेत्र नहीं मिलेगा।

पुराने नेताओं में दिग्विजय सिंह का नाम सर्वोपरि है मगर वे पार्टी का सफल  नेतृत्व कैसे कर सकते हैं जबकि पिछले चुनाव में वे अपेक्षाकृत नौसिखिए उम्मीदवार प्रज्ञा सिंह से बुरी तरह से लोक सभा चुनाव में पराजित हुए थे।

तो फिलहाल पार्टी को तीन तरह के लोग चाहिए ;

जो चुनावों में जीत दिला सके

दिमागवाले  नेता जैसे डॉ मनमोहन सिंह या जयराम रमेश

मानव प्रबंध कौशल में विशेषज्ञ

कुल मिलाकर बात यह है कि पार्टी को कुशल प्रबंधक नेता की जरूरत है कार्यकर्ताओं  में भी लोकप्रिय हो और लोगों से सीधा संवाद करने में कुशल हो।

दिग्विजय सिंह इन मानकों पर खरे नहीं उतरते।

तारिक अनवर की दावेदारी में बाधा

अब रही बात तारिक़ अनवर की।

उन्होंने सोनिया गांधी  के विदेशी होने के मसले पर सन् 1999 में कांग्रेस को छोड़ कर शरद पवार के राष्ट्रवादी कांग्रेस का दामन थाम लिया था।

सन् 1999 में महाराष्ट्र विधानसभा के हुए चुनावों में किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला फिर भी चुनाव प्रचार के दौरान  हुई बहसबाजी के  बावजूद दोनों पार्टियों ने मिलकर सरकार बनायी।

तारिक़ अनवर एक माने हुए पार्टी प्रबंधक हैं  और ग़ुलाम नबी आज़ाद तथा अहमद पटेल के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश डाल सकते हैं।

जब सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष थे तो तारिक़ अनवर को वही रुतबा हासिल था जो इन दिनों अहमद पटेल का है।

राजनीति में हर किसी को जीने और सीखने का अधिकार है।

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला विधायक की सीट भी नहीं जीत सके फिर भी पार्टी में उन्हें काफी महत्व  मिला हुआ है जो  आश्चर्यजनक बात है।

दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में वे तीसरे स्थान पर रहे।

कमजोर नेताओं की जरूरत

हर राजनीतिक पार्टी को अपेक्षाकृत कमज़ोर नेताओं की जरूरत होती है।

भारतीय जनता पार्टी को ही लें। तो नरेंद्र मोदी और अमित शाह हेवीवेट हैं और जे.पी. नड्डा इन दोनों के मुकाबले लाइटवेट हैं । लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

जब सत्ता का केन्द्र अन्यत्र हो तो लाइटवेट व्यक्ति काफी उपयोगी साबित  होता है।

ऐसे लोग लचीले होते हैं और पार्टी आलाकमान  के इरादों को सफलतापूर्वक लागू करते हैं।

सुरजेवाला और केसी  वेणुगोपाल की तरक्की के पीछे यही मंशा प्रतीत होती है।

सोनिया गांधी की अनुपस्थिति में  पार्टी को चलानेवाले  छह सदस्यीय पैनल में मुकुल वासनिक का नाम होना थोड़ा चकित करता है ।

वे उन 23 असंतुष्टों में शामिल थे जिन्होंने पार्टी नेतृत्व की आलोचना करते हुए पत्र लिखा था।

उन्हें मध्य प्रदेश का प्रभारी बनाया गया है।

वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महामंत्री और कांग्रेस कार्यकारिणी समिति  के भी सदस्य हैं ।

ए.के .एंटनी, अहमद पटेल, अम्बिका सोनी तो उसमें हैं ही, राहुल गांधी की ओर से सुरजेवाला और वेणुगोपाल भी हैं।

अहमद पटेल जरूरी क्यों

बहुत लोग यह भी सवाल करते हैं कि अहमद पटेल इतने जरूरी हैं कि उन्हें पार्टी में हमेशा पावरफुल पद दिया जाता है।

तो इसका जवाब यह है कि हर कालखंड में कांग्रेस में ऐसे नेता रहे हैं।

ऐसे नेताओं की फ़ेहरिस्त भी लंबी है -माखनलाल फोतेदार, आरके धवन, विन्सेंट जॉर्ज, यशपाल कपूर।

वे नेतृत्व के प्रति समर्पित तो थे ही, उन्हें पैंतरेबाज़ी भी आती थी और पार्टी की रक्षा करने की कूवत भी उनमें थी।

ऐसे लोग पार्टी के लिए जरूरी होते हैं।

अहमद पटेल में ये तमाम गुण हैं। इसके अलावा वे पार्टी में निरंतरता के प्रतीक हैं।

उन्होंने इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ काम किया है।

उनमें यह सिफत है कि देश के किसी भी राज्य में हर स्तर के पार्टी कार्यकर्ता से सहजता और आत्मीयता से बातें कर सकते हैं।

वे राजीव गांधी द्वारा चुने गये तीन संसदीय सचिवों में से एक थे जिन्हें तब अमर, अकबर, एंथोनी कहा जाता था। अन्य दो थे ऑस्कर फर्नांडीस और अरुण सिंह।

शशि थरूर और मनीष तिवारी

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि शशि  थरूर और मनीष तिवारी को दरकिनार करना गलत हुआ है।

ये लोग जनता में लोकप्रिय तो हैं ही, संसद सदस्य भी हैं।

पार्टी के अंदर रहते हुए किसी मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठाना जायज़ बात है और उन्हें दंडित करना यह जताता है कि पार्टी के अंदर आंतरिक लोकतंत्र नहीं है।

लेकिन इन दोनों नेताओं का भी दोष है।

जब संसदीय दल के नेता का चुनाव  हो रहा था तो उस वक्त उन्होंने अधीर रंजन चौधरी का समर्थन किया था।

अब अधीर रंजन चौधरी को बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया गया है।

इन नेताओं को मौका है कि एक नेता, एक पद का मामला उठायें।

इतना तो स्पष्ट है कि सोनिया गांधी ने जता दिया है कि कांग्रेस में उनके कद का कोई दूसरा नेता नहीं है ।

दुनिया की ताकतवर महिलाओं में शुमार हैं सोनिया

संसार की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में सोनिया गांधी का नाम बराबर शामिल रहता है।

सन् 2007 में फोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें दुनिया की तीसरी सबसे ताकतवर महिला घोषित किया था।

उसी वर्ष टाइम पत्रिका ने विश्व के 100 सर्वाधिक प्रभावशाली लोगों की सूची में उनका नाम सम्मिलित किया था।

न्यू स्टेट्समैन ने सन् 2010 में विश्व के 50 ऐसे लोगों की फेहरिस्त में उन्हें 29 वें  नंबर पर रखा था ।

जबकि फोर्ब्स ने उस वर्ष नौवें नंबर पर और सन् 2012 में 12 वें नंबर पर रखा था।

सन् 2013 में विश्व के शक्तिशाली लोगों में उन्हें 21वें स्थान पर और प्रभावशाली महिलाओं में नौवें स्थान पर रखा था।

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