भारत की आई टी राजधानी बंगलूरू की हिंसा का मतलब क्या है ? 

क्या कोई संगठन भारत की साफ्ट पावर केन्द्र को बरबाद करने का लक्ष्य रखता है ? 

दिनेश कुमार गर्ग

भारत की आईटी राजधानी बंगलूरू में हिंसा कराना, उन्मादियों का  रात  भर उपद्रव करते रहने की शक्ति भारत को चिंता में डाल रही है।  इस हिंसा को नियंत्रित करने में पुलिस को गोली चलानी पड़ी,  जिसमें 3 लोगों की मृत्यु हुई है और अनेक घायल हुए हैं । यह हिंसा एक राजनेता के पारिवारिक सदस्य के उत्तेजनात्मक ट्वीट के बाद हुई ।

उत्तेजनात्मक ट्वीट को बाद में संबंधित द्वारा हटा लिया गया पर मौके की तलाश में बैठे सांपों को फुफकारने और काटने का मौका मिल ही गया । सवाल यह है कि क्या कोई ताकत भारत के साफ्टपाॅवर के इस केन्द्र को उजाड़ देना चाहती है ? एक ट्वीट और पूरी रात हिंसा , आगजनी और गोलीबारी , आखिर क्या बारूद पहले से ही बिछाकर रखा गया था और इंतजार बस एक चिन्गारी का था?

बंगलूरू हिंसा का महत्व क्या है , यह सवाल आम भारतीय के जेहन में उठ रहा है। आजकल देश में कुछ ऐसे संगठनों की सक्रियता बरास्ता सोशल मीडिया  अत्यंत तेज हुई है   जो देश में बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के राजनीतिक विरोध के आवरण में उस तरह की गतिविधि चलाते हैं जिससे भारत को गहरी चोट लगे।

मसलन वे भारत के विभिन्न धार्मिक मतावलंबियों के बीच सांप्रदायिक खाईं बढ़ाने, आतंकवादियों को सम्मानित स्थान दिलाने और सरकार के प्रति अनास्था बढ़ाने का काम सोशल मीडिया के जरिये करते हुए उन शहरों में अपनी घेरेबन्दी मजबूत कर रहे हैं जहां आगजनी, दंगा आदि होने पर उसकी जलन का असर भारत सरकार के साथ अर्थव्यवस्था, भारत की वैदेशिक सेक्यूलर छवि को हो। 

भारत में बच्चा-बच्चा जानता है कि कश्मीर में आतंकवादी हिंसा के जरिये खूनखराबे  का खेल हिज्बुल्लाह नामक पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन करता है। फिर भी सोशल मीडिया में हफ्ते भर से शिया समुदाय के कतिपय विचारक हिजबुल्लाह को अल्लाह की आर्मी बताते हुए उसके संस्थापक लेबनान निवासी सैय्यद नसरुल्लाह की तारीफ करते हुए संगठन को आजाद हिन्द फौज और आजाद हिन्द सेना के समकक्ष बता रहे हैं । हिज्बुल्लाह के कसीदे पढ़ने वाले सज्जन हैं उस्ताद बेताब हल्लौरी ।

निश्चय ही उन्हें  पता होगा कि हिज्बुल्लाह भारत में क्या है ? पर दुर्भाग्य यह कि शिया समुदाय के अनेक विद्वानों ने हिज्बुल्लाह की शान बढ़ाने वाली पोस्ट को खूब शेयर कर वह काम कर दिया जो आतंकवादी संगठन चाहता रहा– कि भारत में लोग जानें वह सुभाष चन्द्र बोस वाला काम कर रहा है।

 कहीं भी दंगा होना और उसे नियंत्रण में लाना एक कानून व्यवस्था का विषय है जिस पर भारत की पुलिस खासा तजुर्बा रखती है। अंग्रेजों के जमाने से यह काम वह करती आयी है। दंगा से भारत को उतनी चोट नहीं लगती है जितनी चोट शहर के खुशनुमा माहौल , प्रसिद्धि को लगती है। हम सबको मालुम है कि बंगलूरू, हैदराबाद को भारत की सिलिकाॅन वैली का दर्जा हासिल है।

यह दर्जा उसे शहर के शांत और सहयोगी मिजाज , आन्ध्र, कर्नाटक राज्यों की पूर्ववर्ती सरकारों की बुद्धिमत्ता से निवेश अनुकूल वातावरण  के कारण आई टी कंपनियों के वहां जमाव से हासिल हुआ है। दक्षिण भारत में आई टी कंपनियों की दौड़ तब तेज हुई जब 90 के दशक से उत्तर भारत में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश में अराजकतावादी क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व आया।

एक्सटार्शन, किडनैपिंग, पालिटकल फेवर के बदले मोटी फीसें, और भारी असुरक्षा, करप्ट पांलिटीशियन, अनियंत्रित ब्यूरोक्रेसी और लालफीताशाही से ऊबकर आई टी फर्में दक्षिण गईं और जाने लगीं तो यह अब एक स्वाभाविक प्रक्रिया बन गयी ।

 अब उत्तर में माहौल बदला है, रिस्पांसिव व संवेदनशील सरकारें आयीं हैं , पूंजी निवेश के निमंत्रण बांटे जा रहे हैं तो भी आईटी फर्में यहां आने से कतरा रही हैं। यह बंगलूरू सहित चेन्नई, हैदराबाद, पुणे की सफलता है कि वहां के इन्फ्रास्ट्रक्चर , शांत माहौल, त्वरित निर्णय प्रक्रिया से खुश कंपनियां वहीं जमें और फलने फूलने का आकांक्षा रखती हैं। 

अब भारत की इस आईटी सफलता को,  जो अमरीका को टक्कर दे रहा है , यदि उसके माहौल को अशांत , असुरक्षित कर दिया जाय तो न केवल कंपनियां भागेंगी , भारत का आईटी पावर भी लड़खड़ा जायेगा । 

भागेंगी तो जायेंगीं कहां – दुबई  जहां आज भारत का आधा बाॅलीवुड जा चुका है। बाॅलीवुड दुबई क्यों गया ? क्योंकि वहां भाईजान का खौफ मुंबई जैसा नहीं। यूएई की सरकार दाऊद भाईजान को वहां बसने दे रही है पर इस बात से हमेशा सतर्क दिखती है कि वह वहां मुम्बई जैसा कारोबारी नेटवर्क न बना पाये। 

 आज के भारत में बंगलूरु का महत्व वही है जो 19 वीं सदी के ब्रिटिश भारत में कलकत्ता , बांम्बे या मद्रास का था । आप सभी देख ही चुके हैं कि बाम्बे यानी मुम्बई 1992 से अशांत और क्राइम माफिया रूल्ड शहर बन गया है।

नये-नये स्वतंत्र भारत में कलकत्ता , बंबई, कानपुर को उम्मीदों का शहर माना जाता था। नौकरियां , व्यापार , वाणिज्य , कला ,संस्कृति अपने उफान पर थीं , पर भारत गफलत में था । भारत के ये केन्द्र धीरे धीरे ऐसे संगठनों के मुख्यालय बन गये जो भारत के इन फलते फूलते शहरों पर विपत्ति पर विपत्ति बरसाने में समर्थ थे और भारत सरकार बेबसी से पूरी बरबादी देखती रही , कुछ कर न सकी।

परिणाम यह हुआ कि कलकत्ता को एक यूरोपियन लेखक ने मृतप्राय शहर की उपमा दे दी। कानपुर भी आज उत्तर प्रदेश का औद्योगिक नहीं ,मृतप्राय शहर है। मुम्बई भी वेन्टीलेटर पर जाता दिख रहा है। क्या बंगलूरू और हैदराबाद को भी दुश्मनों के हाथों में सरकारें बेबसी से जानें दे रही हैं ?

इस घटना से आहत बंगलूरू दक्षिण से सांसद तेजस्वी सूर्य ने मुख्यमंत्री बीएस येद्युरप्पा से अनुरोध किया है कि वे दंगाइयों की संपत्ति जब्त कर ले और नुकसान की भरपाई करें जैसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया ।
बंगलूरू का समाज शांतिपूर्ण और खुशनुमा माहौल के लिए प्रसिद्ध है । हमें अपने शहर की इस खासियत की रक्षा हर कीमत पर करनी होगी।

दिनेश कुमार गर्ग का चित्र
दिनेश कुमार गर्ग

ये लेखक के निजी विचार हैं. 

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