बिजली के निजीकरण के ख़िलाफ़ आंदोलन की चेतावनी

लखनऊ 25 जुलाई. विधुत कर्मचारी सँयुक्त संघर्ष समिति , उप्र ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव रद्द किया जाये और ऊर्जा निगमों के बिजली कर्मचारियों , जूनियर इंजीनियरों व् अभियंताओं को विश्वास में लेकर बिजली उत्पादन , पारेषण और वितरण में चल रहे सुधार के कार्यक्रम सार्वजनिक क्षेत्र में ही जारी रखे जाये जिससे आम जनता को सस्ती और गुणवत्ता परक बिजली मिल सके |

संघर्ष समिति ने कहा कि 05 अप्रैल 2018 को ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा की उपस्थिति में पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ने संघर्ष समिति से लिखित समझौता किया है कि प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा ऐसे में अब निजीकरण की बात करना समझौते का खुला उल्लंघन है | संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि ऊर्जा निगमों में कही भी निजीकरण करने की कोशिश हुई तो इसका प्रबल विरोध होगा और बिजली कर्मी आंदोलन करने को बाध्य होंगे |

विद्युत् कर्मचारी सँयुक्त संघर्ष समिति , उप्र के प्रमुख पदाधिकारियों शैलेन्द्र दुबे , प्रभात सिंह , जी वी पटेल ,जय प्रकाश, गिरीश पांडेय , सदरुद्दीन राना , सुहेल आबिद , राजेन्द्र घिल्डियाल ,विनय शुक्ल ,डी के मिश्र , महेंद्र राय ,वी सी उपाध्याय ,शशिकांत श्रीवास्तव ,विपिन वर्मा ,कुलेन्द्र सिंह चौहान ,परशुराम ,भगवान मिश्र ,पूसे लाल ,सुनील प्रकाश पाल , शम्भू रत्न दीक्षित ,ए के श्रीवास्तव ,पी एस बाजपेई , वी के सिंह कलहंस ,जी पी सिंह ने आज यहाँ जारी बयान में कहा कि मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ और ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा द्वारा महामारी के दौर में बिजली कर्मियों द्वारा निर्बाध बिजली आपूर्ति बनाये रखने की बार बार प्रशंसा किये जाने के बाद भी 23 जुलाई को केंद्रीय विद्युत् मंत्री के साथ हुई वार्ता में पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव के समाचारों से बिजली कर्मियों को भारी निराशा हुई है और उनमे आक्रोश व्याप्त है | उन्होंने कहा कि बिजली कर्मी ऊर्जा निगमों के सबसे प्रमुख स्टेक होल्डर हैं ऐसे में बिजली कर्मियों को विस्वास में लिए बिना नौकरशाहों के प्रस्ताव पर निजीकरण करना सर्वथा गलत और टकराव बढ़ाने वाला कदम होगा |

संघर्ष समिति ने मुख्य मंत्री से अपील की है कि प्रबंधन द्वारा रखे गए निजीकरण के ऐसे किसी भी प्रस्ताव को वे व्यापक जनहित में पूरी तरह खारिज कर दें | संघर्ष समिति ने कहा है कि नौकरशाही के दबाव में किया गया बिजली बोर्ड का विघटन और निगमीकरण पूरी तरह विफल रहा है | वर्ष 2000 में बिजली बोर्ड के विघटन के समय मात्र 77 करोड़ रु का सालाना घाटा था जो अब 95000 करोड़ रु से अधिक हो गया है इसके बावजूद निगमीकरण पर पुनर्विचार करने के बजाये प्रबन्धन निजीकरण का प्रस्ताव देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना चाहता है जिससे बिजली कर्मियों में भारी रोष है |

संघर्ष समिति ने यह भी मांग की कि निजीकरण का एक और प्रयोग करने के पहले 27 साल के ग्रेटर नोएडा के निजीकरण और 10 साल के आगरा के फ्रेंचाइजीकरण की समीक्षा किया जाना जरूरी है | ध्यान रहे नोएडा पॉवर कंपनी और टोरेन्ट कंपनी करार का लगातार उल्लंघन कर रही है जिससे पॉवर कार्पोरेशन को अरबों रु की चपत लग चुकी है ऐसे में इन करारों को रद्द करने के बजाये निजीकरण के नए प्रयोग करना बड़ा घोटाला है और आम जनता के साथ धोखा है |

बिजली कर्मचारियों के नेता शैलेंद्र दुबे को पता चला है कि 23 जुलाई को केंद्रीय विद्युत् मंत्री आर के सिंह और केंद्रीय विद्युत् मंत्रालय के आला अधिकारियों की टीम के सामने प्रदेश के ऊर्जा विभाग द्वारा पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण का प्रेजेन्टेशन किया गया है |

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