विनोबा के जयजगत के विचार से होगा संकुचित राष्ट्रवाद का शमन: रमेश भाई ओझा

विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति

विनोबा जी के जयजगत विचार की प्रासंगिकता संकुचित राष्ट्रवाद का शमन करने के लिए  बढ़ गयी है।

आज दुनिया में राष्ट्रवाद की नयी लहर उठ रही है। इससे कोई भी देश अछूता नहीं है।

विज्ञान युग में देशों की सीमाएं  टूट गयी हैं, परंतु देशों के बीच द्वंद्व बढ़ गया है।  
गुजरात के श्री रमेश भाई ओझा ने विनोबा जी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में विनोबा विचार प्रवाह द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में यह बात कही।

रमेश ओझा
रमेश ओझा

श्री रमेश भाई ओझा ने कहा कि विनोबा जी के जयजगत विचार का बीज महात्मा गांधी की हिंदस्वराज पुस्तक में है।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी वकालत की पढ़ाई के लिए तीन साल लंदन रहे, परंतु वे दुनिया में चलने वाली विभिन्न विचारधाराओं से अप्रभावित रहे।

भारत की गुलामी के दिनों में विदेश जाने वाले युवाओं को पश्चिम का विकास और राष्ट्रवाद आकर्षित करता था।

अनेक युवा भारत की प्राचीन गौरवगाथा में भारत का उत्थान देखते थे।

महात्मा गांधी इन दोनों से भिन्न दृष्टि रखते थे।

वे सभी सभ्यताओं और संस्कृतियों को अपूर्ण मानकर सभी के सत्यांश को ग्रहण करने के पक्षधर थे।

श्री ओझा ने बताया कि महात्मा गांधी ने स्वतंत्र के स्थान पर हमेशा स्वराज्य शब्द का उपयोग किया।

उनके स्वराज्य की व्याख्या काफी विस्तृत थी।

भारत की आजादी के बाद दिखायी देने वाला राष्ट्रवाद आयातित है।

गांधीजी को इस बात का स्पष्ट दर्शन था कि सत्ता उन्हीं लोगों की होगी जो, शासन में बैठे हुए हैं।

यह नागरिकों के स्वराज्य से बहुत दूर होगा। बहुसंख्यकों का सीमाबद्ध राष्ट्रवाद स्वराज्य के स्वप्न से दूर होगा।

श्री ओझा ने महात्मा गांधी और विनोबा जी के संबंधों को उजागर करते हुए बताया कि गांधीजी इस बात को समझ चुके थे कि विनोबा उनके विचारों को मूर्त रूप देने में समर्थ हैं।

इसलिए गांधीजी ने विनोबा को सीधे आजादी की लड़ाई में कभी आमंत्रित नहीं किया।

सन् 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए भी विनोबा का चुनाव उन्होंने अपने आध्यात्मिक विचारों के प्रतिनिधि के रूप में किया।

दोनों में गहरा संबंध होने के बाद भी गांधी-विनोबा की मुलाकात बहुत कम हुई है।

गांधीजी ने विनोबा को गोरखनाथ कहा है।

स्थितप्रज्ञ दर्श

ब्रह्मविद्या मंदिर की सदस्या सुश्री मीनू बहन ने विनोबा जी के स्थितप्रज्ञ दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा कि व्यावहारिक जीवन में
निर्णय शक्ति का बहुत महत्व है।

महात्मा गांधी ने गीता के अठारह श्लोकों अपनी प्रार्थना में शामिल कर उसे जनसाधारण तक पहुंचाया।

विनोबा जी ने स्थितप्रज्ञ को आदर्श पुरुष की संज्ञा दी है।

सुश्री मीनू बहन ने कहा कि मलीन बुद्धि अचूक निर्णय नहीं ले सकती।

विनोबा जी ने कहा है कि हर व्यक्ति राष्ट्रपति नहीं बन सकता है, लेकिन वह स्थितप्रज्ञ अवश्य बन सकता है।

उन्होंने ब्रह्मविद्या मंदिर से प्रकाशित होने वाली मैत्री पत्रिका की जानकारी दी। इस पत्रिका में अनिंदा व्रत का पालन किया जाता है।

पूर्वी पाकिस्तान में विनोबा

 

राहा नाभा कुमार
सर्वोदय राहा नाभा कुमार
तंद्रा बरुआ
तंद्रा बरुआ

प्रेम सत्र के वक्ता गांधी आश्रम नोआखली बंगलादेश के निदेशक श्री राहा नाभा कुमार और श्रीमती तंद्रा बरुआ ने कहा कि विनोबा विचार प्रवाह के माध्यम से पहली बार बंगलादेश में विनोबा विचार की चर्चा की जा रही है।

विनोबा जी ने भूदान आंदोलन के दौरान सोलह दिन पूर्वी पाकिस्तान में बिताए। जिसमें विनोबा जी को कई एकड़ जमीन दान में प्राप्त हुई।

उन्होंने बाढ़ग्रस्त इलाकों में भी पदयात्रा की। विनोबा जी ने इस यात्रा को प्रेमयात्रा नाम दिया था।

महात्मा गांधी द्वारा स्थापित आश्रम बंगलादेश के पांच जिलों में काम कर रहा है, जिससे एक लाख लोग लाभान्वित हो रहे हैं।

करुणा सत्र के वक्ता तमिलनाड में अखिल भारत रचनात्मक समाज के प्रतिनिधि और हरिजन सेवक संघ से जुड़े श्री पी.मारुति ने कहा कि हरेक व्यक्ति का अपना कुछ न कुछ समाज के अर्पण करना चाहिए।

पी मारुति
पी मारुति

विनोबा जी ने इसके लिए भूदान, ग्रामदान, संपत्तिदान, बुद्धिदान, श्रमदान का रास्ता बताया है।

समाज से हम प्रतिदिन कुछ न कुछ लेते हैं इसलिए समाज को लौटाने की जिम्मेदारी भी हमारी है।

कर्नाटक के वुडी पी.कृष्णा ने विनोबा जी के जीवन से जुड़ी घटनाओं का वर्णन किया।

डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे

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