गांवों को अपना उद्धार स्वयं करना होगा : श्री गौतम भाई

विज्ञान युग और ग्रामस्वराज्य एक-दूसरे के पूरक हैं , गॉंवों को अपना उद्धार स्वयं करना होगा . देश के स्वतंत्र होने के बाद शहर तो आजाद हुए लेकिन गांव आज भी गुलाम हैं। उनकी योजनाएं राजधानियों में बनती हैं। इससे ग्रामीणों के हाथ में पहल नहीं रह गई है।
उक्त विचार ब्रह्मविद्या मंदिर के श्री गौतम भाई ने विनोबाजी की 126वीं जयंती पर आयोजित विनोबा विचार प्रवाह संगीति में व्यक्त किए। श्री गौतम भाई ने कहा कि ग्रामराज्य और रामराज्य में कोई अंतर नहीं है। गांव में पांच ‘ब’ को सम्हालने की जरूरत है : बीमार, बच्चे, बूढ़े, बहनें और बेकार। आज गांवों में बीमार उपेक्षा के शिकार हैं। उन्हें समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है। इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सा का शिक्षण अच्छी तरह से होना चाहिए।

गांवों के बच्चे अंग्रेजी शिक्षा के मोह में फंस गए हैं। उन्हें मातृभाषा में शिक्षा के साथ संस्कार मिलें तो गांव सुखी होगा। उन्होंने कहा कि आधुनिक दौर में अच्छे परिवार के लोग भी अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेज देते हैं। इससे बच्चों को पुरानी पीढ़ी के अनुभव का लाभ नहीं मिलता है। गांवों में शराब के कारण बहनों की स्थिति दयनीय है। यदि स्त्रीशक्ति को बढ़ाना है तो शराबबंदी करना होगी।

श्री गौतम भाई ने कहा कि आज बेकारों को सरकार मुफ्त में अनाज देती है। साथ में कुछ राशि भी दे रही है। इससे गांवों में खेती के लिए मजदूर मिलना कठिन हो गया है। सरकार की अनेक योजनाएं लोगों को निकम्मा बना रही हैं। इसलिए बिना काम के मुफ्त अनाज योजना बंद होना चाहिए।

श्री गौतम भाई ने ग्रामस्वराज्य और रामराज्य के विविध आधारों को स्पष्ट करते हुए कहा कि व्यवहार और अध्यात्म को समग्रता में देखने की जरूरत है। प्रारंभ में श्री रमेश भैया ने परिचय दिया।

संगीति का संचालन डॉ.पुष्पेंद्र दुबे ने किया। आभार श्री संजय राय ने माना। 

डॉ.पुष्पेंद्र दुबे, इंदौर

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