वात दोष को संतुलित रख कर मिलता है सौ वर्ष से अधिक निरोगी जीवन

वात का कार्य पूरे शरीर में संचरण करना

(वात रोग पर चर्चा भाग – 2)

आयुर्वेद सम्पूर्ण शरीर को अलग – अलग अंगों के रूप में देखने के बजाय, इसे एक इकाई के रूप में देखता है। चूंकि आयुर्वेद का मूल दर्शन “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम आतुरस्य रोग प्रशमनम च” अर्थात, स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगग्रस्त होने पर रोगी के रोग का उपचार करना है और रोग की उत्पत्ति त्रिदोषों के प्रकुपित होती है और सामान्यतः प्रकुपित दोष का शमन होने से ही रोग की तीव्रता में उल्लेखनीय कमी आ जाती है। इसलिए, एक उत्तम वैद्य रोगी के रोग पर विचार करने के पूर्व उसके त्रिदोषों के असंतुलन का परीक्षण करता है।

मनुष्य के मनोशारीरिक रूप से पूर्णत: स्वस्थ रहने के लिए वात दोष का संतुलित होना अनिवार्य है क्योंकि वात का कार्य पूरे शरीर में संचरण करना है। इसलिए इसे प्राणवायु कहा गया है। यदि वात दोष संतुलित अवस्था में होता है तो सामान्यतः अन्य दोष भी संतुलित रहते हैं क्योंकि अपने संचरण गुण के कारण वात ही कफ एवं पित्त को भी उनके स्थान से शरीर के अन्य स्थानों पर ले जाता है। वात के प्रकुपित होने से कफ और पित्त भी शरीर में संचरण करते हैं। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो वात के साथ साथ अन्य दोष भी शरीर के दूसरे अवयवों में अपना स्थान बना लेते हैं जो अंततः विभिन्न रोगों का कारण बनते हैं।

हमारे देश के प्राचीन महर्षियों ने “जीवेम शरदम शतम” अर्थात, सौ वर्ष के जीवन की की परिकल्पना की है। हमारे प्राचीन ग्रन्थों में भी 100 वर्ष से अधिक का जीवन जीने के अनेकों उदाहरण मिलते हैं। वर्तमान में भी, यदा-कदा 100 वर्ष से अधिक की आयु के लोगों के बारे में जानकारी मिल जाती है। इस संबंध में प्राचीन आयुर्वेद ऋषियों ने बताया है कि वात को संतुलित रख कर 100 वर्ष से भी अधिक का स्वस्थ एवं निरोगी जीवन संभव है क्योंकि वात के संतुलित रहने पर अन्य दोष भी संतुलित बने रहते हैं इसलिए वात दोष का संतुलित रहना परमावश्यक है।  

चूंकि स्वस्थ नागरिकों से ही स्वस्थ समाज का निर्माण होता है, इसलिए, मीडिया स्वराज ने इस व्यापक विषय को आमजन तक सरल भाषा में पहुंचाने के लिए चर्चाओं की एक श्रंखला तैयार की है। इस श्रंखला के द्वितीय अंक में आज श्री रामदत्त त्रिपाठी के साथ आयुषग्राम चित्रकूट के संस्थापक, भारतीय चिकित्सा परिषद, उ.प्र. शासन में उपाध्यक्ष तथा कई पुस्तकों के लेखक, आयुर्वेद फार्मेसी एवं नर्सिंग कॉलेज के प्रधानाचार्य एवं प्रख्यात आयुर्वेदचार्य आचार्य वैद्य मदन गोपाल वाजपेयी, एवं बनारस विश्वविद्यालय के दृव्य गुण विभाग के (डॉ) जसमीत सिंह वात दोष के सैद्धांतिक पक्ष पर आगे विस्तार से चर्चा कर रहे हैं कि वात दोष को संतुलित रख कर कैसे सौ वर्ष का जीवन जिया जा सकता है: 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

5 + 1 =

Related Articles

Back to top button