लोकेंद्र सिंह बिष्ट ने उत्तरकाशी में भमोर यानि हिमालयन स्ट्राबेरी की फसल उगायी
तै दिवारी डांडा बमोर खै औला,,,
इस गढ़वाली गीत की इन लाइनों के साथ आज बात करते हैं बमोर (भमोर)के फूलों व फलों की।।जी हां अब आपको भमोर खाने तै दिवारी का डांडा ( जंगल ) नहीं जाना पड़ेगा।।वजह भी साफ है। उत्तरकाशी में गंगा विचार मंच के प्रदेश संयोजक व पर्यावरण की समझ रखने वाले लोकेन्द्र सिंह बिष्ट ने उत्तरकाशी शहर के बीचों बीच मुख्य डाकघर के समीप केदार मार्ग पर अपनी एक छोटी सी बगिया में आप सब दोस्तों के लिए दुर्लभ बमोर के पौधे का सफल रोपण कर आज 8 बरस बाद इस पेड़ पर भमोर के फूल ही नहीं अपितु फल भी आ चुके हैं।।
लोकेन्द्र सिंह बिष्ट ने समुद्रतल से 1100 मीटर की ऊंचाई पर इस छोटी सी बगिया में 3000 मीटर से ऊपर उगने वाले दुर्लभ देवदार व बाँझ के पेड़ों का भी सफल रोपण किया है। आज उत्तरकाशी शहर के बीचों बीच देवदार व बाँझ के 8 से 10 वर्ष के पेड़ों का जंगल उगाया है। इस जंगल मे आंवला, तेजपत्ता, अमरूद व दूसरे फल फूलों का एक खूबसूरत जंगल लहलहा रहा है।।
उत्तरकाशी के अधिकाँश जंगल आजकल बमोर के पेड़ बमोर के फूलों से लदे हैं, ये अलग बात है कि बहुतायत में बुराँस के अपेक्षाकृत बमोर के जंगल महज 2 से 3 फीसदी ही होंगे। हिमालय तथा संपूर्ण हिमालय क्षेत्र अपनी नैसर्गिक जैव विविधता के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण हिमालयी राज्यों में असंख्य औषधीय जंगल पेड़ पौधे पाये जाते है।
हिमालय क्षेत्रों में पाये जाने वाले 8000 पुष्पीय पौधों की प्रजातियों में से लगभग 4000 प्रजातियां केवल गढ़वाल हिमालय क्षेत्रों में उगति हैं जिनमें एक पेड़ है बमोर। भमोर का वैज्ञानिक/वानस्पतिक नाम Cornus Capitata है। काफल और बुराँस की अपेक्षाकृत बमोर का फल कम ही उपलब्ध हो पाता है। ग्रामीण लोग आज भी जंगलों से इसके फल को एकत्रित कर खाने के लिए ले आते हैं। इसे हिमालयन स्ट्राबेरी भी नाम दिया गया है। बमोर संपूर्ण हिमालय क्षेत्रों भारत, चीन, नेपाल, आस्ट्रेलिया आदि में पाया जाता है। सामान्यतः बमोर के जंगल 2000 से 3000 मी0 ऊंचाई तक उगते हैं।
लेकिन उत्तरकाशी में लोकेन्द्र सिंह बिष्ट ने 1000 मीटर की ऊंचाई में अपने छोटी सी बगिया में देवदार, बाँझ, भमोर, आंवला व तेजपत्ता का सफल रोपण किया। आज इन दुर्लभ पेड़ों की उम्र 8 से 10 वर्ष हो चुकी है। बिष्ट कहते हैं कि वे लंबे समय से में भमोर के पेड़ में फूल व फल आने की प्रतीक्षा कर रहे थे,लेकिन कई बर्षों बाद भमोर के पेड़ में फूल व फल न आने से उन्हें लगा की शायद अकेला पेड़ होने की वजह से परागण यानी pollination के अभाव में ये दिक्कत आ रही होगी।।लेकिन इस वर्ष इस भमोर के पेड़ में जमकर फूल भी आ चुके हैं और फल भी लग चुके हैं।।
उत्तराखंड व उत्तरकाशी के जंगलों में बमोरा के पेड़ आजकल फूलों से लकदक हैं औऱ इन्हीं खूबसूरत फूलों के मध्य बमोर का फल निकल आया है जिसे आप संलग्न फोटोज में देख सकते हैं। बमोर सितम्बर से नवम्बर के मध्य पकता है तथा पकने के बाद बमोर लाल हो जाता है। बमोर के फल पौष्टिक तथा औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं व अति स्वादिष्ट भी।। बमोर के बारे में ‘अन्तर्राष्ट्रीय जनरल ऑफ फार्मटेक रिसर्च’ में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि बमोर में मधुनाशी गुण भी पाये जाते है।