उत्तरकाशी :मायके में सुरंगों में बहने को मजबूर माँ गंगा 

लोकेंद्र सिंह बिष्ट

लोकेन्द्र सिंह बिष्ट, उत्तरकाशी से 

माँ गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर जनकल्याण के लिए ही अवतरित हुई थी और आज अपने ही मायके उत्तरकाशी में माँ गंगा जनकल्याण के लिए ही अपने प्राकृतिक बहाव के बजाय 35 किलोमीटर घुप्प अंधेरी सुरंग से होकर बहती है।।ये इंसान की फितरत ही है या उसका अटूट विश्वास व उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति और हिम्मत की उसने अपने पुरुषार्थ से लगन और हिम्मत व घोर साहस व तपस्या से स्वर्ग में बहने वाली गंगा को पृथ्वी पर अवतरित होने के लिए विवश किया।। जनकल्याण के लिए ही राजा भागीरथ की चार पीढ़ियों ने अपने पूर्वजों के कल्याण व उनके उद्धार के लिए माँ गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण के लिए अथक तपस्या की। राजा सगर, उनके बाद अंशुमान और फिर महाराज दिलीप तीनों ने मृतात्माओं की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की ताकि वह गंगा को धरती पर ला सकें और गंगाजल से अपने पूर्वजों को मुक्ति दिला सके। किन्तु इनमें से कोई भी सफल नहीं हो पाया और अपने प्राण त्याग दिए।

बाद में महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने  गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर एक दिन ब्रह्मा जी प्रकट हुए और भगीरथ को वर मांगने के लिए कहा। तब भगीरथ ने गंगा जी को अपने साथ धरती पर ले जाने की बात कही और कहा कि वह गंगाजल से अपने साठ हजार पूर्वजों की मुक्ति करना चाहता है। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं गंगा को तुम्हारे साथ भेज तो दूंगा लेकिन उसके अति तीव्र वेग को सहन कौन करेगा? इसके लिए तुम्हें भगवान शिव की शरण लेनी चाहिए वही तुम्हे रास्ता दिखाएंगे।

गोमुख में गुफा के सामने बीबीसी के पूर्व संवाददाता राम दत्त त्रिपाठी

ब्रह्माजी के आदेश मानकर भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या एक टांग पर खड़े होकर की। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर महादेव गंगाजी को अपनी जटाओं में रोकने को तैयार हो जाते हैं और गंगा को अपनी जटाओं में रोककर एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड देते हैं। इस प्रकार से भगीरथ को गंगा के पानी से अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल हो सके।जनकल्याण व लोक कल्याण के लिए स्वर्ग में  स्वच्छंद विचरण करने वाली, ब्रह्मा जी के कमण्डल में वास  करने वाली, भगवान विष्णु के कदमों में विचरण करने वाली और उसके बाद पृथ्वी पर खुले आसमान के नीचे हिमालय से होकर पर्वतों, घाटियों और विशाल मैदानों से गुजरने वाली माँ गंगा ने कभी कल्पना भी नहीं कि होगी कि उसकी अविरलता को कभी पृथ्वी पर बाँधा जाएगा और उसका सफर घुप्प अंधेरी सुरँगों से होकर गुजरेगा।।

मनेरी बांध पहला चरण

जनकल्याण व लोककल्याण के लिए ही माँ गंगा अपने ही मायके में सुरंगों में बहने को मजबूर हुई।। अपने उदगम गोमुख से मात्र 100 किलोमीटर अविरल बहने के बाद उत्तरकाशी के मनेरी में माँ गंगा की अविरल धारा को इंसान ने लोककल्याण व जनकल्याण के लिए रोक दिया।। इस जगह से माँ गंगा लगभग 15 किलोमीटर का सफर घुप्प अंधेरी सुरँगों के माध्यम से होकर पूरा करती है और मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना के प्रथम चरण से 

तिलोथ पावर हाउस

90 मेघावाट विद्युत उत्पादन के बाद उत्तरकाशी शहर में तिलोथ के पास तिलोथ पवार हाउस से अपने मूल में लौटतीं हैँ,,,, उत्तरकाशी में ही मात्र 1 किलोमीटर बहने के बाद फिर से शुरू हो जाता है माँ गंगा का घुप्प अंधेरी सुरँगों में बहने का एक और दर्दनाक सफर।।

गंगा जी सुरंग में

 

जोशियाड़ा में एक बार फिर से माँ गंगा की अविरल धारा को बाँधा गया और सम्पूर्ण गंगाजी को फिर से लगभग 20  किलोमीटर घुप्प अंधेरी सुरंग में धकेल दिया गया।। मनेरी से उत्तरकाशी तक के 15 किलोमीटर अपने प्राकृतिक बहाव वाले क्षेत्र में सम्पूर्ण गंगा जी अदृश्य हो जाती हैं,,इस बीच पहाड़ियों से आने वाले गाड़ गदेरों का जल ही गंगा जी को जीवित रखे हुए आगे बढ़ते हैं।। इस बीच के 15 किलोमीटर के क्षेत्र की आबादी को अपनी आस्था विश्वास के साथ गंगा जी में अपने सभी तरह के कर्मों से महरूम बंचित रहना पड़ता है।।ठीक इसी तरह उत्तरकाशी से धरासू तक 25 किलोमीटर के हिस्से में गंगा जी लगभग मृतप्रायः हो जाती है। 

गंग भक्तों की व्यथा कथा https://soundcloud.com/ramdutt/ganga-effects-of-dams-on-bhagirathi

इस 25 किलोमीटर के हिस्से में वरुणा, रानू की गाड़, नाकुरी गाड़, धनारी गाड़ व भण्डारसयू गाड़ का पानी गंगा जी को जीवन देते रहते हैं। इस 25 किलोमीटर क्षेत्र की जनता गंगा जी मे अपने सभी तरह के पूजा पाठ, पवित्र स्नान व दूसरे कर्म भी गाड़ गदेरों के इसी जल को सम्पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ  गंगाजल समझ कर पूरा करते हैं।।

धरासू में घुप्प अंधेरी सुरंग से 20 किलोमीटर का सफर तय करने के बादमनेरी भाली जल विद्युत परियोजना के द्वितीय चरण से धरासू नामक जगह में धरासू पवार हाउस से  304 मेघावाट विद्युत उत्पादन करने के साथ ही माँ गंगा अपने मूल में लौट आती हैं। 

उत्तर काशी में गंगा जी पर बांध एवं जलाशय दोनो ओर बांध

लेकिन फिर से मात्र 1 किलोमीटर बहने के बाद फिर से तबदील हो जाती है एक मानव निर्मित विशाल कृत्रिम 42 वर्ग किलोमीटर विशाल झील में।। विद्युत उत्पादन के लालच में बांध परियोजना वाले गंगा के सम्पूर्ण जल को सुरँगों में धकेल देते हैं  जो कि ग़ैरकानूनी भी है।।।

लेखक –  गंगा विचार मंच उत्तराखंड के संयोजक लोकेन्द्र सिंह बिष्ट जलशक्ति मंत्रालय भारत सरकार व राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन से जुड़े हैं. 

नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं. 

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