योगी सरकार की बहुप्रचारित जन्नत की हकीकत

उत्तर प्रदेश नंबर 1, जैसा लघु वाक्य  चुनाव आचार संहिता लागू होने से पूर्व विज्ञापन की ताकत के बूते  पर प्रदेश में जन्नत के हर दरवाजे खोलने का दंभ भर रहा था। खबरिया चैनलों की नीली स्क्रीन पर हर पन्द्रह मिनट के अंतराल पर, अखबारों के पूरे पृष्ठ पर यह विज्ञापन सूबे  को अव्वल घोषित कर रहा था ,तो  प्रदेश की सरहदों के उस पार दूसरे सूबों में भी लगे होर्डिग(उत्तर प्रदेश नंo1) योगीराज में जन्नत बन चुके उत्तर प्रदेश कि मूक गवाही दे रहे थे।

लेकिन जैसे ही नौकरशाहों की दिमागी कसरत से निर्मित एवं  बहुप्रचारित काल्पनिक जन्नत के आंकड़ों को राज्य सरकार,भारत सरकार तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्ट, सर्वे एवं तथ्य के आईने में देखा गया तो यह तथाकथित जन्नत एक मायाजाल साबित हुई। विज्ञापन की कोख से पैदा यह मायाजाल प्रदेश को एक अंधेरी सुरंग में ले जानेवाली सिद्ध हुआ।

बुनियादी तौर पर यहां साझी संस्कृति एवं साझी विरासत  वाले समरस समाज की मौजूदगी है।लेकिन इसके विपरीत यहां योगी सरकार नफरत ,विरोध  एवं विभाजित आग्रह से संचालित  रही। आधुनिक वैज्ञानिक, मानवतावादी एवं लोकतांत्रिक विचार-दृष्टि से वंचित यह सरकार आर्थिक विकास, मानव विकास सूचकांक, कानून व्यवस्था एवं सामाजिक सौहार्द के परिवेश सृजन के प्रत्येक प्रतिमान पर तारीखी  विफलता हासिल करती है।

इस हकीकत को स्वीकार करते हुए माफीनामा जारी करने के बजाय सरकार हकीकत पर पर्दा डालने में लगी रही। कोरोना की दूसरी वेब में किसी की भी नागरिक की ऑक्सीजन सिलेंडर या वेंटीलेटर की किल्लत से मौत नहीं हुई।इस सरकारी कथन में सच्चाई पर परदादारी की ही कोशिश थी।आंख मूंद लेने से सच्चाई ओझल नहीं होती है, वह सर उठाती है ।आज यह सच्चाई ही योगी राज को कठघरे में खड़ा कर रही है। तथाकथित इस जन्नत की हकीकत  से रूबरू होना अत्यंत रोचक है।

             आर्थिक स्तर पर भी यह बहु प्रचारित नंबर वन की स्थिति सच्चाई के सामने खारिज हो जाती है।अखिलेश सरकार ने राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी,) की दर 2016-17 मे  11.4% की विरासत छोड़ी थी, जो 2017- 18 में 4.6% ,2018-19मे 6.3%,2019-20 में 3.8% 2020-21मे -6.4% हो गयी। प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है। वहीं 2017-18से 2020-21 की अवधि में प्रति व्यक्ति आय के स्तर पर 1.9% गिरावट दर्ज हुई है। मार्च 2021 तक राज्य का कुल कर्ज  6,62,891 करोड़ रु पहुंच गया जो जीएसडीपी का 34%है।

सूबे में बढ़ती हुई गरीबी और चिंताजनक है। नीति आयोग की बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट 2021 के अनुसार राज्य में 37.9% लोग गरीब है। 12 जिलों में 50% तीन जिलों में गरीबों की संख्या 75% तक पहुंच जाती है। उत्तर प्रदेश में 1,77,00000 किसान परिवार है, जिनकी औसत आय ₹8061 प्रति माह जो पंजाब के किसान परिवारों के औसत आय के 1/ 3 से भी कम है।

उत्तर प्रदेश  में औसतन हर किसान  दैनिक आय 37 रु है।सरकार की अदूरदर्शी आर्थिक नीतियों के कारण देश आजादी के छह दशकों बाद एक बार फिर से सामूहिक गरीबी की ओर बढ़ रहा है। 2005 से 2015 के दशक में उच्च विकास दर के कारण 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठकर मध्य वर्ग में शामिल हो गए थे।

यूएनडीपी, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय एवं प्राइस नामक संस्था के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारत में 23करोड़ से अधिक लोग मध्यवर्ग से एक बार फिर गरीबी रेखा मे धकेल दिए गए।विश्व में मध्यवर्ग संख्या में कुल गिरावट का 60% अकेले भारत में हुई है। एक तरफ 97% आबादी की आमदनी घट रही है ,रोजगार छीन रहा है ।वहीं दूसरी ओर 2021 में ही अरबपतियों की संख्या 102 से 142 हो गई तो इसी वर्ष में अडानी की संपत्ति में आठ गुना  इजाफा हुआ। सौ अरबपतियों की संपत्ति देश के 57 करोड लोगों की आर्थिक हैसियत के बराबर है।

सूबे की निर्धनता यहां के कुपोषण के आंकड़ों से भी बयां होती है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सदन में बताया कि छःमाह से छःवर्ष के शिशुओं में गंभीर रूप से कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या पूरे देश में 9,27,000 है, जिनमें 400000 अकेले उत्तर प्रदेश में है ।अर्थात शिशुओं के कुपोषण के स्तर पर उत्तर प्रदेश नंबर वन की स्थिति में है।

            बेरोजगारी उत्तर प्रदेश की ध्रुव सचाई है। पांच वर्षों में सत्तर लाख रोजगार देने का वादा करके सत्ता में आई ,बमुश्किल चार लाख रोजगार दे पाई है।  रिक्त पड़े सरकारी पदों की भर्ती के प्रति योगी सरकार ने आपराधिक उदासीनता प्रदर्शित की है।

ध्यातव्य है 2,10,000 शिक्षकों के पद खाली हैं। शिशुओं के कुपोषण में नंबर वन के प्रदेश में 50,670 पद आंगनबाड़ी के रिक्त हैं। अप्रैल 2018 से 15 से29 आयु वर्ग की श्रेणी में बेरोजगारी दर दो अंकों में पहुंच गई है, जो देश में सर्वाधिक है। ग्रामीण क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी इसे और त्रासद बनाती है।

निर्धनता एवं बेरोजगारी के कारण रोटी की तलाश में उत्तर प्रदेश के गांव से युवाओं का पलायन एक जमीनी सच्चाई है। ग्रामीण युवाओं की दशा प्रवासी पक्षियों की तरह हो गई है जो बिना प्रवास के जिन्दा नहीं  रह सकते। योगी सरकार इस गंभीर समस्या को भी सांप्रदायिक चश्मे से देख कर  सतही प्रचार करती है।जबकि ‘जनरल ऑफ माइग्रेशन अफेयर 2020’ के अनुसार उत्तर प्रदेश से एक करोड़ तेईस लाख लोग पलायन कर दूसरे सूबो में पहुंचे।अर्थात हर सोलहवां व्यक्ति यहां पलायन के लिए अभिशप्त है।वहीं आवर्ती श्रमबल सर्वे (अप्रैल 2018 से मार्च 2021) से पता चलता है कि शहरी क्षेत्र में हर चार में से एक युवा बेरोजगार है।

शिक्षा एवं स्वास्थ्य के हालात भी हताश करते हैं। शिक्षा पर प्रति व्यक्ति खर्च पूरे देश में सबसे कम है ।छात्र : शिक्षक अनुपात भी देश में सबसे खराब है। हर आठवां छात्र कक्षा आठवीं तक पहुंचते-पहुंचते पढ़ाई छोड़ देता है। एनुअल स्टेटस एजुकेशन रिपोर्ट 2021 के अनुसार पंजीकृत छात्रों में 38.7%  ट्यूशन ले रहे है जो स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को स्वत: स्पष्ट करता है। जाहिर है ₹37 प्रतिदिन आमदनी वाला किसान  पुरखों की जमीन बेच कर अपने बच्चों के  सुनहरे भविष्य की आशा में कोचिंग के कत्लगाह में कत्ल हो रहा है। चिकित्सा के स्तर पर भी 0-5 आयु वर्ग में शिशुओं की मृत्यु दर 59.8% है। जिला अस्पतालों में प्रति एक लाख की आबादी पर सिर्फ तेरह बिस्तर हैं।यह अकारण नहीं है कि नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2019- 20 में यूपी सबसे निचले पायदान पर मौजूद है।

                सूबे के एक्सप्रेसवे, राष्ट्रीय राजमार्ग एवं स्टेट हाईवे की बहु प्रचारित तस्वीरों के संदर्भ में भी विचारणीय है कि देश के कुल सड़क नेटवर्क का 2.13% राष्ट्रीय राजमार्ग तथा 3% स्टेट हाईवे का हिस्सा है ।83% सड़क नेटवर्क जिला सड़कों की श्रेणी में आता है। प्रदेश में जिला सड़कें खस्ताहाल हैं। फिर गांव की सड़कों की सुध लेने वाला कौन है? दलितों, महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचार कानून व्यवस्था के बड़े-बड़े दावों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।

वर्ष 2020 में दलितों के खिलाफ देश के सर्वाधिक अपराध 12714  मामले यूपी में दर्ज हुए। राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध वृद्धि के आधे मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए हैं। वर्ष 2021 में 15828 मामले रिकार्ड हुए। पिछले तीन सालों में हिरासत में हुई मौत में देश का 23% हिस्सा तो मानवाधिकार उल्लंघन में 40% मामले भी उत्तर प्रदेश से संबंधित थे। पैसों की ताकत के खेल से फर्जी सोशल मीडिया और कारपोरेट नियंत्रित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भले ही सूबे में तथाकथित नए अवतारी राजनीतिक मसीहा का कसीदा पढ़ रहे हो, पर हकीकत यह है कि लोग मुश्किल जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं । प्रदेश की साझी संस्कृति से बने समरस समाज को सरकार के सांप्रदायिक नजरिए ने रसातल में पहुंचा दिया है ।पूरा प्रदेश गहरे मोहभंग से गुजर रहा है जो चुनाव परिणाम मे साफ दिखेगा।

जय प्रकाश पांडेय

7007189758

jayprakashp2003@abhim

नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं।

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