क्या हस्तिनापुर पर आज भी है द्रौपदी के श्राप का असर!

हस्तिनापुर विधानसभा सीट

  • UP में बनती है उसी पार्टी की सरकार, जिसके विधायक को मिलती है हस्तिनापुर की सीट
  • UP को सरकार देने वाली हस्तिनापुर विधानसभा सीट आज भी विकास को मोहताज

उत्तर प्रदेश के बारे में एक कहावत पुरातन काल से ही सच साबित होती रही है। कहा जाता है कि यूपी में सरकार उसी पार्टी की बनती है, जो हस्तिनापुर विधानसभा सीट अपनी झोली में डालने में कामयाब होता है। अजीब सही पर आज नहीं, 1957 से ही यह कहावत यहां हर बार सच साबित होती रही है। हालांकि, हस्तिनापुर निवासी मानते हैं कि प्रदेश में सरकार बनाने में हमारा अहम योगदान होते हुये भी विकास हमसे कोसों दूर है। महाभारत काल में द्रौपदी ने हमें जो श्राप दिया था, यह उसका ही असर है।

हस्तिनापुर, जो महाभारत काल में कुरु साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी और यहां कौरवों का शासन था, आज मेरठ जिले का एक हिस्सा है। यहां के एक बड़े हिस्से में आज मु​सलमान बहुलता में हैं जबकि​ कुछ अन्य हिस्सों में जाट, गुर्जर और ठाकुर रहते हैं। फिलहाल हस्तिनापुर विधानसभा सीट बीजेपी के पास है, जहां से विधायक हैं दिनेश खतिक। सितंबर 2021 में किये गये कैबिनेट विस्तार के दौरान खतिक को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है।

2012 में जब प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी, तब हस्तिनापुर सीट से प्रभुदयाल वाल्मीकि सपा विधायक थे। 2007 में बसपा विधायक योगेश वर्मा हस्तिनापुर सीट अपने नाम करने में कामयाब हुये तो उत्तर प्रदेश में बसपा प्रमुख मायावती की सरकार बनी। इससे पहले जब मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब हस्तिनापुर सीट सपा के विधायक प्रभुदयाल वा​ल्मीकि के पास थी।

जब कांग्रेस के विशंभर सिंह ने यह सीट अपने नाम करने में कामयाबी हासिल की थी तो प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की ही सरकार बनी थी, तब संपूर्णानंद को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया था। यही वजह है कि ​हस्तिनापुर सीट हर पार्टी के लिये प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है। 1962 और 1967 में हस्तिनापुर सीट, जो कि अनुसूचित जाति के लिये आरक्षित है, कांग्रेस ने जीती थी। इस दौरान प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी।

1969 में हस्तिनापुर सीट भारतीय क्रांति दल की आशाराम इंदू ने जीती थी। भारतीय क्रांति दल की स्थापना चौधरी चरण सिंह ने की थी। हालांकि, तब राज्य में पहले कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी थी, लेकिन कुछ समय बाद 1970 में चौधरी चरण सिंह को यूपी की मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई थी।

1974 में कांग्रेस पार्टी की रेवती शरण मौर्य ने हस्तिनापुर सीट जीती तो प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुईं हेमवती नंदन बहुगुणा। 1977 में मौर्या ने जनता पार्टी ज्वाइन कर लिया और फिर से इसी सीट से जीत करने में सफलता पाई। उस साल जनता पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की और मुख्यमंत्री बने एक के बाद एक करके राम नरेश यादव और बाबू बनारसी दास।

1980 से 1989 तक हस्तिनापुर विधानसभा सीट कांग्रेस के पास थी। 1980 में झग्गर सिंह और 1985 में हरशरण सिंह इस सीट को जीतने में कामयाब हुये तो प्रदेश में क्रमश: विश्वनाथ प्रताप सिंह और एनडी तिवारी, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। 1989 में जनता दल में रहते हुये झग्गर सिंह हस्तिनापुर विधायक बने तो उस वक्त जनता दल से मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

इसे भी पढ़ें:

यूपी में 60 साल के किसान ने मंच पर जाकर BJP विधायक को थप्पड़ जड़ दिया, MLA ने चाचा बताया

हस्तिनापुर निवासी दिनेश कुमार कहते हैं, याद कीजिये, 1996 में जब निर्दलीय सीट से विधायक अतुल खतिक ने हस्तिनापुर विधानसभा सीट अपने नाम कर ली थी तो प्रदेश में मायावती, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और राम प्रकाश गुप्ता एक एक करके सीएम की कुर्सी पर बैठते रहे और अंत में प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया।

इसके बावजूद कि हस्तिनापुर विधानसभा का प्रदेश में सरकार बनाने में योगदान इतना बड़ा है, यहां की जनता के लिये आज भी किसी भी विधायक ने बहुत कुछ नहीं किया है। कुमार कहते हैं कि हस्तिनापुर से जीते हुये विधायक की ही पार्टी प्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब होती है, इसके बावजूद हस्तिनापुर का विकास नहीं हो पाता। इसके पीछे यहां के लोग मानते हैं कि यह हस्तिनापुर को द्रौपदी का श्राप है कि वह कभी विकास नहीं कर पायेगा। यही वजह है कि हमेशा रूलींग पार्टी का विधायक होने के बावजूद विकास हमसे कोसों दूर है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

2 × 5 =

Related Articles

Back to top button