UPElection2022: चुनाव से पहले क्यों बदल गए नेताओं के सुर

ऐसी भाषा का प्रयोग गुंडे, मवाली या पुलिस की होती है, लेकिन योगी जी जैसे लोगों को ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिये, खासकर इ​सलिये कि इस वक्त वे मुख्यमंत्री हैं और कई बार उनके प्रधानमंत्री बनने की बात भी उठती रही है.

जैसे जैसे उत्तर प्रदेश का चुनाव करीब आ रहा है, चुनावी जनसभाओं में नेताओं की भाषा अभद्र होती जा रही है. समाजवादी पार्टी ने योगी आदित्यनाथ की बुलडोजर चलाने वाली भाषा को लेकर चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज की गयी है. सपा ने आरोप लगाया कि योगी आदित्यनाथ ने धमकी दी है कि 10 तारीख के बाद वे बुलडोजर चला देंगे. हालांकि, ये पहली बार नहीं हुआ है. पहले भी ऐसी भाषा का प्रयोग नेतागण करते रहे हैं, हालांकि पहले ऐसा नहीं था. नेताओं की ये भाषा इधर कुछ वर्षों में ज्यादा अभद्र हो चुकी है. आइये, इसी पर राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकारों की राय जानने की कोशिश करते हैं.

मीडिया स्वराज डेस्क

कुमार भवेश चंद्र

राजनीति में अभद्र भाषा का प्रयोग आज पहली बार नहीं हो रहा है. न ही ऐसा है कि केवल बीजेपी या योगी आदित्यनाथ ही ऐसी भाषा का प्रयोग कर रहे हों. हालांकि, इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है. चुनाव आयोग को भी इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिये और सख्त कार्रवाई करनी चाहिये.

ब्रजेश शुक्ला

चुनाव में नेताओं के बयानोें में जो तल्खी आ गयी है, यह वे लोग अपने अपने वोटों के लिये कर रहे हैं. आने वाले समय में ये तल्खी और ऐसी भाषा का प्रयोग आपको और भी ज्यादा देखने को मिलेगा.

चिंताएं दोनों ओर है. यदि बीजेपी हारती है तो ये माना जायेगा कि ये किसान आंदोलन का असर है और अगर बीजेपी जीतती है तो माना जायेगा कि किसान आंदोलन गुब्बारा था. लडाई करो या मरो की है. अभी नहीं तो कभी नहीं वाली. यदि किसान इस बार बीजेपी को हरा नहीं पायी तो ये माना जायेगा कि चौधरी चरण सिंह का परिवार खत्म हो चुका है और किसानों की बात फिर कभी भी नहीं मानी जायेगी.

नेताओं की ऐसी भाषा पर खुद जनता भी तालियां बजाती हैं. जब जनता का टेस्ट ही बदल गया है तो फिर नेताओं की भाषा बदले तो कैसे बदले?

रामदत्त त्रिपाठी

योगी जी की भाषा पहले भी बहुत सौम्या या विनम्र नहीं रही है. वह विधान सभा में भी विपक्ष के लिए तीखी भाषा का प्रयोग करते रहे हैं. लेकिन अब चुनाव में अब वह जिस तरह बोल रहे हैं, उससे कहीं न कहीं उनकी खिसियाहट या हताशा सी झलक रही है. पर बेहतर होगा विपक्ष उनका अनुसरण न करे.

ऐसी भाषा का प्रयोग गुंडे, मवाली या पुलिस की होती है, लेकिन योगी जी जैसे लोगों को ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिये, खासकर इसलिये कि इस वक्त वे मुख्यमंत्री हैं और कई बार उनके प्रधानमंत्री बनने की बात भी उठती रही है.

धनंजय कुमार

राजनीति में भाषा पर संयम रखना बेहद जरूरी है. लेकिन पिछले कुछ सालों में राजनीति में भाषा बहुत गिर चुकी है. योगी आदित्यनाथ एक बार खुद संसद में फूट फूटकर रोये थे और कहा था कि मुझे मार दिया जायेगा, तो जो लोग अपनी जान की इतनी फिक्र करते हों, उन्हें दूसरों की जान की कीमत को भी समझना चाहिये.

ऐसा नहीं है कि राजनीति में ऐसी भाषा का प्रयोग पहली बार हो रहा है. महाराष्ट्र में भी ऐसी भाषा का प्रयोग होता रहा है, लेकिन फिर भी हर पार्टी को समझना चाहिये कि देश के भावी नेताओं और मंत्रियों की भाषा सौम्य और सरल ही होनी चाहिये, न कि इतनी गंदी.

हालांकि, जनता जनार्दन जब तक जागरुक नहीं होगी और ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग करने पर नेताओं को आड़े हाथों नहीं लेगी, तब तक वे ऐसी भाषा का प्रयोग करते रहेंगे.

पूरी चर्चा सुनने के लिये क्लिक करें…

Leave a Reply

Your email address will not be published.

4 × three =

Related Articles

Back to top button