UP elections 2022: बीजेपी के लिये पश्चिमी यूपी में फतह तो समझो जीत पक्की!!

यूपी में महज 2% आबादी वाले जाट किसानों ने बदहाल कर दी बीजेपी की स्थिति

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के पहले चरण की शुरुआत पश्चिमी यूपी से हुई. कहते हैं कि आगाज़ अच्छा हो तो अंजाम भी अच्छा ही होता है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के लिये इस बार पश्चिम यूपी से यूपी चुनावों का आगाज़ कितना अच्छा रहा, कहना बड़े बड़े राजनीतिक विश्लेषकों के लिये भी असान नहीं रहा.

मीडिया स्वराज डेस्क

पश्चिमी यूपी में इस बार UP Assembly Election 2022 के दौरान ऐसा माना जा रहा है कि खासकर ग्रामीण इलाकों में किसान, युवा, जाट, पिछड़ी जाति, मुसलमान, दलित और गरीबों ने जहां एकजुट होकर बीजेपी के खिलाफ वोट किया है, हालांकि शहरी क्षेत्रों में मतदाता पिछले चुनावों की तुलना में कम ही बाहर निकले और मतदान के अपने अधिकार का निर्वाहन किया.

जानकारी के मुताबिक, इनमें से ज्यादातर वैसे मतदाता थे, जो बीजेपी से नाराज थे, लेकिन किसी और पार्टी को अपना वोट नहीं देना चाहते थे. वहीं, अगर 50 प्रतिशत आबादी यानी महिलाओं की बात करें तो माना जा रहा है कि उनका ज्यादातर वोट बीजेपी की ओर गया है. हालांकि, मुस्लिम महिलाओं ने मुश्किल से ही अपना वोट इस बार बीजेपी के खाते में डाला होगा.

ऐसे में बीजेपी के लिये जीत की राह आसान नहीं मानी जा रही. न ही ये माना जा रहा है कि पश्चिमी यूपी के साथ बीजेपी का आगाज़ इस बार अच्छा रहा. इसका सबसे बड़ा कारण केंद्र सरकार की कृषि कानूनों, कृषि नियमों और किसानों के साथ किये गये सलूकों को माना जा रहा है, जो कि इस इलाके के जाट किसानों ने इस बार किसान आंदोलन के दौरान देखा और समझा. आज ये हिंदू मुस्लिम जाट किसान बीजेपी से उनके उन्हीं सलूकों का बदला उनसे ले रहे हैं. बीजेपी को एक भी वोट नहीं दे रहे हैं.

आपको बता दें कि यूपी की कुल आबादी का 2 प्रतिशत है, वहां का जाट समुदाय. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 20 करोड़ है. इस हिसाब से जाट समुदाय की कुल जनसंख्या 40 लाख के करीब है. ऐसे में यूपी चुनाव में जाट समुदाय का साथ होना राजनीतिक दलों के लिए कितना जरूरी है, यह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे और डोर-टू-डोर कैंपेन, योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से उन्हें साथ लाने के हरसंभव प्रयास और बीजेपी ​के सभी नेताओं की कोशिशों से भी अंदाजा लगाया जा सकता है.

वहीं दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन (SP RLD) भी इसी समुदाय के भरोसे बड़ी जीत और यूपी का भविष्य बदलने तक की उम्मीद लगाये बैठे हैं. किसानों और किसानी से जुड़ी यह 2 प्रतिशत आबादी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सबसे प्रभावशाली समुदाय माना जाता है, यही वजह रही कि सभी राजनीतिक दलों ने उनके वोट पाने के लिए हरसंभव कोशिश की.

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इस समुदाय को साधने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने 31 जनवरी को 17वीं सदी के जाट योद्धा गोकुल सिंह का आह्वान किया था, जिन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब से लड़ाई लड़ी थी. वहीं पिछले साल पीएम नरेंद्र मोदी ने जाट स्वतंत्रता सेनानी राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर एक विश्वविद्यालय की नींव रखी थी. बीजेपी ऐसे ही कई मुद्दों के जरिये जाट वोट बैंक को अपनी तरफ करने में जुटी रही. हालांकि किसान आंदोलन का बीजेपी सरकार ने जो हश्र किया था, उसकी नाराजगी और आक्रोश का बदला इन जाट समुदायों की ओर से बीजेपी को वोट न देकर इस बार लिया गया.

अखिल भारतीय जाट महासभा के सदस्य चौधरी दिगंबर सिंह कहते हैं कि जाट एक भावुक और मेहनती समुदाय है. दुर्भाग्य से इसे राजनीतिक दलों द्वारा वोट बैंक में बदलने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने बीजेपी के उस प्रयास की आलोचना भी की, जिसमें जाटों को एकमात्र हिंदू पहचान देकर अल्पसंख्यक समुदाय से अलग करने की कोशिश की गयी. उनका कहना है कि वे सभी किसान हैं और किसानों के मुद्दे पर बीजेपी के खिलाफ गुस्सा बढ़ा है.

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बहरहाल, स्थितियां चाहे जो भी बन रही हों, लेकिन यूपी चुनाव में इस बार कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. ऐसे में हर किसी को इंतजार 10 मार्च का है, जब उन्हें यह मालूम चलेगा कि आखिर इस बार यूपी की सत्ता पर कौन काबिज होगा. बीजेपी मानती है कि किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम यूपी में बेशक उन्हें जाटों का साथ नहीं मिल रहा हो, फिर भी वे विपक्ष को कांटे की टक्कर दे रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के अन्य इलाकों में हमें यहां से कहीं बहुत ज्यादा बेहतर करने की उम्मीद है. और अगर ऐसा हुआ तो यकीनन वे विपक्ष को आसानी से मात देने में कामयाब होंगे. यानी कहना होगा कि बीजेपी को अगर पश्चिमी यूपी में फतह मिलती है तो समझो की एक बार फिर यूपी में सरकार बनाने से उन्हें कोई भी नहीं रोक सकता!!

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