मायावती का क्या है फ्यूचर प्लान?

आखिर क्यों नहीं दे पा रही हैं अपने प्रचार अभियान को धार

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में अब तक बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती चुनाव प्रचार करती नहीं देख रही थीं. वे बैठकें तो कर रही थीं लेकिन कोई चुनावी रैली या जनसंपर्क करती हुई नहीं देखी जा रही थीं, लेकिन बुधवार को आगरा में उनकी पहली जनसभा रखी गयी है. बुधवार को पहली जनसभा करने के उनके फैसले के बाद ये सवाल और भी प्रासंगिक हो गया है कि आखिर क्या है मायावती का फ्यूचर प्लान? आखिर क्यों नहीं दे पा रही हैं वे अपने प्रचार अभियान को धार? जानने की कोशिश करते हैं यूपी की राजनीति को गहराई से समझने वाले कुछ वरिष्ठ पत्रकारों और राजनीतिक विश्लेषकों से…

सुषमाश्री

मायावती के बारे में अब तक यही कहा जाता रहा कि वो घर में कैद हैं और चुनाव प्रचार नहीं कर रही हैं. मायावती लड़ाई में नहीं हैं, लेकिन क्या ये सच है? क्या मायावती वाकई में लड़ाई में नहीं हैं. क्या मायावती 2022 के चुनाव की रणनीति तैयार नहीं कर रही हैं? बता दें कि सोमवार को चुनाव आयोग ने 1000 लोगों के साथ चुनावी रैली संबोधित करने की छूट दे दी, उसके बाद पहली बार मायावती चुनाव प्रचार के लिये मैदान पर उतरने वाली हैं. मायावती की ये जनसभा आगरा के कोठी मीना बाजार में होने वाली है. ब्राह्मण और दलितों को मायावती का कोर वोटर माना जाता है. ऐसे में ये अनुमान लगाया जा रहा है कि बुधवार को मायावती पूरी तरह से उन्हें अपनी ओर करने की कोशिश करेंगी.

सबको पता है कि मायावती का वोट बैंक है दलित. जब भी उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होता है तो मायावती को कभी साढ़े 21 या साढ़े 22 प्रतिशत का वोट मिलता है और 2007 में जब उन्होंने सरकार बनायी थी, तब 206 सीटें मायावती ने जीती थीं और स्पष्ट बहुमत की सरकार बनायी थी. तब उन्हें 30 से साढ़े 30 प्रतिशत तक वोट मिला था. 2012 के चुनाव में वे 80 सीटों पर सिमट गयीं. तब मायावती को 25 प्रतिशत वोट मिला था. लेकिन जब 2017 का चुनाव हुआ, जिसमें मात्र 19 सीटें मायावती जीत पायीं, उस समय भी उन्हें साढ़े 22 प्रतिशत वोट मिला. समाजवादी पार्टी से ज्यादा वोट मायावती को मिला. फिर भी 2022 के चुनाव में कहा जा रहा है कि कहीं वो बीजेपी की बी टीम की तरह काम तो नहीं कर रही हैं? ये भी कहा जा रहा है कि वे चुनाव प्रचार नहीं कर रही हैं. यहां तक कि बीजेपी के दूसरे नंबर के लीडर माने जाने वाले ​अमित शाह ने कहा कि मायावती घर में कैद हैं. आखिर वास्तविकता क्या है? क्या मायावती घर में कैद हैं? या मायावती कोई रणनीति बना रही हैं और अपनी रणनीति के तहत काम कर रही हैं. या मायावती या कहें कि बहुजन समाज पार्टी का चुनाव प्रचार का ट्रेंड कुछ इसी तरह चलता है जिस तरह से 2022 में चल रहा है.

चुनाव आयोग ने जब चुनावों की घोषणा की, उससे पहले सात रैली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके थे. अखिलेश यादव पूरब से लेकर पश्चिम तक अपने सहयोगी नेताओं के साथ कई रैलियां कर चुके थे, लेकिन मायावती घर में बंद थीं. बीच में उनकी माताजी की मौत हो गयी थी, तब करीब एक सप्ताह के लिये वो दिल्ली गयी थीं, लेकिन दिल्ली से वापस आने के बाद फिर वो अपनी रणनीति में बनाने में जुट गयीं.

मायावती आखिर चाहती क्या हैं? 2022 में उनकी क्या स्थिति रहने वाली है? मायावती का फोकस किस पर है? वोट पर है या नहीं है? क्या 2022 में मायावती 19 पर ही रुक जायेंगी या तीन डिजिट तक वो पहुंच पायेंगी. ये एक बड़ा सवाल है. लेकिन बसपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो मायावती चुप नहीं हैं. मायावती खुद भले ही घर से बाहर न निकली हों, लेकिन उनके जो दूसरे नंबर के नेता हैं, जिन्हें ब्राह्मण नेता के तौर पर कहा जाता है, सतीश चंद्र मिश्रा, उन्होंने यूपी के सभी 75 जिलों में चुनाव शुरू होने से पहले ही ब्राह्मण सम्मेलन शुरू किया, जिसे बाद में प्रबुद्ध सम्मेलन कहा गया. कुछ दिनों बाद ये ब्राह्मण सम्मेलन या कहें कि प्रबुद्ध सम्मेलन था, ये सर्वधर्म सम्मेलन हो गया.

मायावती में अब दमख़म नहीं बचा

यूपी की राजनीति में गहरी पकड रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, लगता है मायावती में अब इतना दमख़म नहीं बचा कि सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ें. मायावती इस समय अपने कोर वोटरों और उम्मीदवारों की बिरादरी के भरोसे कुछ सीमित सीटों पर केंद्रित कर रही हैं. शायद उनको उम्मीद हो कि विधानसभा में किसी को बहुमत न मिलने पर वह बार्गेन कर सकेंगी. मायावती ने अपने टिकट इस तरह बाँटे हैं कि समाजवादी पार्टी और लोकदल गठबंधन को नुक़सान हो.

मायावती को समझना आसान नहीं

वरिष्ठ पत्रकार और द इंडियन पोस्ट के संपादक कुमार भवेश चंद्र कहते हैं, मायावती को समझना आसान नहीं है. वे रहस्यमयी राजनीति करती हैं. वे बीजेपी के साथ भी जा सकती हैं. अब चाहे यह वे अपनी खुशी से करें या फिर किसी दबाव में, जैसा कि अक्सर कहा जा रहा है कि बीजेपी और मायावती में साठगांठ हुई है और मायावती ने अपने पैसे और भतीजे को सीबीआई और ईडी से बचाने के लिये ही राजनीतिक रूप से चुप्पी साधी हुई है. हालांकि इस बात में संशय नहीं किया जा सकता कि दलित वोट मायावती के साथ ही रहेगा.

2007 का प्लान दोहराने की जुगत में मायावती

वरिष्ठ पत्रकार विजय तिवारी कहते हैं, मायावती को लग रहा है कि 2007 में उनका जो दांव चल गया, 2022 में एक बार फिर उनका वही दांव चल जायेगा, पर ऐसा होता नहीं है. राजनीति में हर बार पुराना मॉडल या पुराना तरीका नहीं चलता. तब बीएसपी के साथ हर जाति के लोग थे, ब्राह्मण भी थे और दलित व पिछड़ी जाति के लोग भी. लेकिन आज ऐसा नहीं है. फिर, तब हर जाति के लोगों ने मायावती को वोट दिया था, ये सोचकर कि उन्हें इसका फायदा मिलेगा, पर बीएसपी से कोई भी जाति संतुष्ट नहीं हो पायी. सतीश मिश्रा के अलावा बीएसपी में किसी ब्राह्मण का भला नहीं हुआ है. उस पर अब ऐसा महसूस होता है जैसे कि सतीश मिश्रा ने मायावती को उसी तरह से हाइजैक कर लिया है, जैसे कि मायावती ने कांशीराम ​को किया था. इस बात पर भी आश्चर्य नहीं होगा, अगर किसी दिन सतीश मिश्रा पूरी ​बीएसपी पार्टी के साथ ही बीजेपी में मिल जायें.

मायावती को अपने वर्कर्स पर भरोसा

पब्लिक न्यूज टीवी के वरिष्ठ पत्रकार देवकी नंदन मिश्र कहते हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मायावती का वोटर या कहें कि काडर, गांव गांव तक फैला हुआ है. यूपी में कोई ऐसा गांव नहीं होगा जहां बीएसपी का वर्कर नहीं होगा. मायावती को अपने वर्कर्स पर पूरा भरोसा है. वो हर हाल में अपने वोट को बिखरने नहीं देता है. वो ये भी नहीं देखता है कि प्रत्याशी कौन है, किसको बहनजी ने प्रत्याशी बनाया है. वो सिर्फ हाथी पर वोट डालने के लिये लोगों को प्रेरित करता है.

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मायावती की पुरानी आदत रही है, खासकर जब वे 2007 में सत्ता में आयीं, तब फुल फ्लेज्ड मेजोरिटी के साथ आयीं और पूरे पांच साल सत्ता में रहीं तब उन्होंने जातियों का एक कॉम्बिनेशन बनाया. दलित और ब्राह्मण का. इसी कॉम्बिनेशन की बदौलत 2007 में वे पूरी तरह से अपने बल पर सरकार बनाने में कामयाब रहीं. 2012 में जब चुनाव हुआ तो ये कॉम्बिेनेशन टूट गया, किस वजह से टूटा, यह भी देखना होगा लेकिन फिर भी 80 सीटें बसपा को मिलीं. मायावती के लिये ये हार बहुत बड़ा झटका था क्योंकि उनकी सत्ता में कानून व्यवस्था और विकास के काफी काम हुये थे.

हालांकि मायावती पर एक आरोप ये भी लगते रहे कि उन्होंने स्मारक बनवाये और उन स्मारकों के निर्माण पर बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ. लेकिन ये बात भी मालूम होना चाहिये कि मायावती के समय में ही अयोध्या के राम मंदिर मामले में हाईकोर्ट का फैसला आया था. तब ऐसा कहा जा रहा था कि इसे लेकर विवाद हो सकता है क्योंकि हिंदुओं के फेवर में फैसला आया था, लेकिन पूरे यूपी में कहीं भी एक भी प्रदर्शन नहीं हुये थे. इसे मायावती के सरकार की कामयाबी के तौर पर देखा गया.

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