मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा और बेरोजगारी पर ओवैसी करेंगे बैठक

मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा

-सुषमाश्री

मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा उनके पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है। यही वजह है कि बेरोजगारी और गरीबी की समस्या भी तुलनात्मक रूप से मुसलमानों में ज्यादा देखने को मिलती है। बीते दिनों हुये एक अध्ययन ने उत्तर प्रदेश के मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा की जो तस्वीर पेश की है, वह रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट को बल देती प्रतीत होती है।

अध्ययन में बताया गया है कि अकेले उत्तर प्रदेश में ही 19.25 प्रतिशत मुस्लिम अशिक्षित हैं जबकि पूरे देश में इनका प्रतिशत 14.23 है। इनमें से 15 साल से अधिक उम्र के 71.2 प्रतिशत मुसलमान या तो अशिक्षित हैं या फिर प्राथमिक से भी कमतर शिक्षा ले पाये हैं जबकि यूपी की तुलना में पूरे देश में 58.3 प्रतिशत मुस्लिम शिक्षित हैं।

कामकाजी और बेरोजगारों की संख्या का आंकड़ा रखने वाले Periodic Labour Force Survey (PLFS) की रिपोर्ट का हवाला देते हुये अध्ययन में यह बताया गया है कि 2019-20 में मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा का प्रतिशत 40.83 था जबकि कुल अशिक्षित 34.01 प्रतिशत थे।

AIMIM की बैठक

तेलंगाना और महाराष्ट्र के बाद आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मस्लिमीन (AIMIM) ने शुक्रवार 7 जनवरी को लखनऊ में एक बैठक का आयोजन किया है। इस बैठक में ‘उत्तर प्रदेश में मुसलमान – विकास, सुरक्षा और समावेश’ मुद्दे पर चर्चा की जायेगी।

आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले यह बैठक करने के पीछे ओवैसी का मकसद भारत में मुसलमानों की स्थिति की ओर हर वर्ग और समुदाय का ध्यान दिलाना है। खासकर तब जबकि चुनावों के समय में हर समुदाय से जुड़े मुद्दों पर बात की जा रही है। आवैसी का मानना है कि ऐसे में यह मुद्दा उठाया जाये तो लोगों का ध्यान मुसलमानों की वास्तविक स्थिति की ओर आसानी से जायेगा। 

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के मुद्दों को लेकर जब भी बात की जाती है तो इस पर किसी भी तरह के विश्वसनीय और अनुभवजन्य डेटा की कमी का हवाला दे दिया जाता है। यही वजह है कि मुसलमानों पर की जाने वाली बातों को आमतौर पर बयानबाजी बताकर खारिज कर दिया जाता है। ऐसे में हमने मुसलमानों पर किये गये इस अध्ययन और संबंधित कई आंकड़े जुटाने के बाद इस बैठक के आयोजन की जरूरत महसूस की।

रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट

हालांकि, हालिया अध्ययन पूर्व चीफ़ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट की याद दिलाती है, जिसमें पिछड़े मुसलमानों को शिक्षा और रोजगार संबंधी आरक्षण की बात की गई थी। मिश्रा की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय धार्मिक और भाषीय अल्पसंख्यक आयोग की रिपोर्ट में अनुसूचित जाति के दर्जे को धर्म से अलग करने की सिफ़ारिश की गई थी। साथ ही 1950 के उस अनुसूचित जाति क्रम को भी ख़त्म करने को कहा गया था, जिसके तहत इस दायरे से अब भी मुसलमानों, ईसाइयों, जैनियों और पारसियों को अलग रखा गया है।

मूल रूप से इस क्रम में अनुसूचित जाति के दर्जे को हिंदू धर्म तक ही सीमित रखा गया था, बाद में इसमें बौद्ध और सिखों को शामिल किया गया। आरक्षण के कोटे पर आयोग ने कहा था कि केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण मुसलमानों और 5 प्रतिशत आरक्षण अन्य अल्पसंख्यकों को दिया जाना चाहिए।

दस प्रतिशत के कोटे को भरने के लिए योग्य उम्मीदवारों की कमी की स्थिति में यह अवसर दूसरे अल्पसंख्यकों को दिए जा सकते हैं लेकिन किसी भी सूरत में 15 प्रतिशत के इस साझे कोटे के तहत किसी बहुसंख्यक उम्मीदवार को नौकरी नहीं दी जानी चाहिए।

यह आयोग 2004 में बनाया गया था, जिसने 2005 में अपना काम शुरू किया। इस आयोग को सच्चर कमेटी की रिपोर्ट से एक क़दम आगे माना गया, जो सिर्फ़ मुसलमानों के पिछड़ेपन पर तैयार की गई थी। इस आयोग ने मई 2007 में अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप दी थी। बीजेपी को छोड़कर अन्य कई पार्टी की काफ़ी समय से मांग थी कि इस रिपोर्ट को संसद में पेश किया जाए और इसकी सिफ़ारिशों को लागू किया जाए। 

ताजा अध्ययन की रिपोर्ट

ओवैसी ने मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा को लेकर किये गये ताजा अध्ययन की रिपोर्ट को लेकर टाइम्स आफ इंडिया को बताया कि ताजा अध्ययन में इस्तेमाल किये गये 80 प्रतिशत से ज्यादा आंकड़े सरकारी रिकॉर्ड से निकाले गये हैं। इसके अलावा कुछ अन्य जाने माने शोधकर्ताओं के अध्ययनों को भी इसमें जगह दी गई है। आवैसी ने आगे कहा कि जो डाटा मिल रहा है, उसे हम मुसलमानों के लिये खुशनुमा नहीं बता सकते। ऐसे में इन हालातों को बेहतर बनाने की जरूरत है। उन्होंने आगे कहा कि इन रिपोर्ट्स को देखकर यह कहना होगा कि संबंधित अधिकारियों को मुसलमानों के अशिक्षित होने की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिये।

अध्ययन में क्या मुद्दे हैं शामिल

पिछले दिनों मुसलमानों की हालिया स्थिति पर जो अध्ययन किया गया, उसमें मुस्लिमों की जनसांख्यिकी, मदरसों समेत शिक्षा में चुनौतियां, औद्योगिक विभागों में भागीदारी, उद्यमिता, जनसंख्या पहलू, अपराधीकरण और कैदियों की संख्या समेत राज्य में बीते कई वर्षों में अल्पसंख्यकों के लिये जारी किये जाने वाले बजट जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है। 

इस अध्ययन में जो हस्तियाँ शामिल थीं, वे हैं — अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्रालय (Union Ministry Of Minority Affairs) द्वारा बनाये गये कुंडु कमिटी के प्रमुख अमिताभ कुंडु। इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फोर पॉपुलेशन साइंसेस आईआईपीएस, मुंबई के प्रोफेसर चंद्रशेखर। किंग्स कॉलेज लंदन के प्रमुख शोधकर्ता क्रिसटोप जैफरेलोट। उत्तरी कैलिफोर्निया के विंगेट यूनिवर्सिर्टी के विजिटिंग प्रोफेसर ऊषा सान्याल। हार्वर्ड यूनविर्सिटी के एस.वी. सुब्रमण्यिन। त्रिवेंद्रम स्थित इंटरनेशनल स्कूल आफ माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट के चेयरमैन सी. रवि।

AIMIM की शुक्रवार को आयोजित होने वाली बैठक में इस अध्ययन के अलावा कुछ अन्य नामी गिरामी शोधकर्ताओं या शोध संस्थाओं समेत कई जनहित कार्यों को लेकर जारी किये गये सरकारी आंकड़ों पर भी चर्चा की जायेगी।

बैठक में कौन होंगे शामिल

इस बैठक में जो विशेषज्ञ मुस्लिम समुदाय में अशिक्षा और बेरोजगारी पर किये इस अध्ययन के बारे में बतायेंगे, वे हैं — Centre for Economic and Social Studies (CESS) के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वेंकटनारायणा मोटुकुरी, Tata Institute of Social Sciences TISS, मुंबई के प्रोफेसर अब्दुल शबन, नेशनल स्टैटिसटिकल कमीशन के पूर्व सदस्य पीसी मोहनन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के पूर्व एडवाइजर डॉ. अमीर उल्लाह खान, जो इन दिनों सेंटर फोर डेवलपमेंट पॉलिसी एंड प्रैक्टिस CDPP में बतौर रिसर्च डायरेक्टर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

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