ट्वीट करती कांग्रेस
जिस वक्त बिहार चुनाव के नतीजे आ रहे थे और ये लगभग तय हो चुका था कि अब मैच महागठबंधन की गिरफ्त में आने से रहा तो ठीक उसी समय एक ट्वीट आया। ट्वीट करने वाली थी – अर्चना डालमिया। गाँधी परिवार की बहुत करीबी हैं अर्चना डालमिया। उन्होंने कहा कि “लगता है गरीब बिहारी मुफ्त वैक्सीन के लालच के चक्कर में आ गए हैं”। बहरहाल इस खिसियानी बिल्ली के ट्वीट को कई लोग बिहारी अस्मिता पर हमला मान रहे थे तो कोई इसे जनता के फैसले का अनादर।
लेकिन इन सबसे हटके जो अहम सवाल लोग पूछ रहे थे वो ये था कि – इन अर्चना डालमिया का पार्टी को सशक्त करने में क्या योगदान है? और दूसरा कि आखिर इनकी क्या योग्यता है जो ये दस जनपथ की इतनी करीबी हैँ? और तीसरा सवाल ये था कि क्या राहुल गाँधी के इर्द – गिर्द ऐसे ही लोगों का जमावड़ा है?
ये तीन सवाल ऐसे हैं जो कांग्रेस की दुर्गति को रेखांकित करते हैं। दस जनपथ या राहुल गाँधी की अगर वो करीब हैं तो उसका सिर्फ एक कारण है – उनका ट्वीट। और ये भी एक हकीकत है कि कांग्रेस आला कमान को ऐसे ही लोग घेरे हुए हैं जो सिर्फ ट्वीट पर ही दिखते हैं। और यही लोग कांग्रेस के मैनेजर टीम के सदस्य हैं। इनका जमीनी कार्यकर्ता या मुद्दों से कुछ भी लेना-देना नहीं होता। फिर भी ये ताकतवर दीवार हैं जो आम कार्यकर्ता और आला नेतृत्व के बीच हमेशा खड़ी रहती है।
सवाल ये है कि ऐसे ट्वीट से पार्टी को क्या फायदा हो रहा है। क्या इस तरह के ट्वीट काग्रेस के लिए समर्थकों का झुंड ला रहे हैं या कोई ऐसा मुद्दा खड़ा कर रहे हैं जो समाज को उद्वेलित कर रहा हो। आसमान छूती बेरोजगारी हो या महँगाई या फिर पस्त अर्थव्यवस्था – इन ज्वलंत मुद्दों के रहते हुए भी अगर भाजपा को बंपर कामयाबी मिल रही है तो इसका मतलब यही है कि इन मुद्दों को उठाना बेमानी है। कांग्रेस लीडरशीप को ये समझना होगा कि मुद्दा सड़कों पर ही उठाया जाता है न कि ट्विटर पर। और उस तरह के मुद्दों को उठाने से क्या फायदा जिसे आम जनता ने अस्वीकार कर दिया है। नोटबंदी की तमाम तथाकथित परेशानियों के बीच भी अगर आम जनता भाजपा को ज्यादा वोट दे रही है तो नोटबंदी मुद्दे को चौथे साल भी उठाना एक निरर्थक कवायद ही साबित होगी।
अगर आज मुसलमानों का एक अच्छा-खासा वर्ग भाजपा और ओवैसी साहब के साथ है तो कांग्रेस का नागरिकता कानून ( सीएए और एनआरसी ) पर छाती पीटना एक सही कदम नहीं कहलाएगा। कोरोना महामारी के बीच भी अगर भाजपा को ज्यादा वोट मिल रहे हैं तो कहने की जरूरत नहीं कि कोरोना पर मुद्दा उठाना नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित होगी।
बिहार चुनाव के बाद कांग्रेसी नेता भी ट्वीट करने लगे गए हैं। तारिक अनवर ने ट्वीट किया कि हमें सच स्वीकार करना चाहिए। लेकिन तारिक साहब ये नहीं बताए कि सच क्या है। क्या ये सच नहीं कि बिहार का कांग्रेसी नेतृत्व आम जनता से बिल्कुल ही कट गया है। वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष ने कितने गाँव, वार्ड या अंचल स्तर पर कांग्रेस के पैदल सिपाहियों की जमात खड़ी की।
बहरहाल , इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि कमजोर कांग्रेस भारत के लोकतंत्र के लिए सही बात नहीं है। इसलिए कांग्रेस को अपना सारा ध्यान पार्टी को मजबूत करने में लगाना होगा। दिल्ली में बैठकर प्रियंका गाँधी यूपी में पार्टी में जान नहीं फूँक सकती। राहुल गाँधी रोज एक ट्वीट कर पार्टी को खड़ा नहीं कर सकते। या फिर सिर्फ प्रेस कांफ्रेंस के जरिए पार्टी को जीत नहीं दिलाई जा सकती है। पार्टी के आला नेता दिल्ली से पटना गए, लेकिन उनका काम सिर्फ पटना के होटलों में प्रेस कांफ्रेंस करना ही रह गया था। कोई भी दिल्ली का नेता पटना से बाहर नहीं गया। तो फिर कैसे पार्टी के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है।
पार्टी को अगर फिर से जीवंत बनाना है तो पार्टी नेतृत्व और सामान्य कार्यकर्ता के बीच के फासले को मिटाना होगा। एक ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि कोई अदना सा कार्यकर्ता भी राहुल गाँधी से विना किसी परेशानी के मिल सके। इसके लिए रोज ही राहुल गाँधी को पार्टी मुख्यालय में बैठना होगा। अपने चारों तरफ बैठे ट्वीटियाते नेताओं के चक्रव्यूह को तोड़ना होगा। आम कार्यकर्ता के फीडबैक के आधार पर पार्टी को फिर से एक जुझारू संगठन के रूप में खड़ा करना होगा। अभी बंगाल के चुनाव आने वाले हैं। विरोधी खेमा की तैयारी शुरी हो चुकी है …लेकिन कांग्रेस के अंदर अभी तक किसी तरह की सुगबुगाहट नहीं दिखाई दे रही है। कम से कम राहुल गाँधी को बंगाल जा कर दो-तीन दिनों का प्रवास करना चाहिए …आम कार्यकर्ताओं से मिलना चाहिए ..स्थानीय मुद्दों को समझना चाहिए। तभी ये कहा जा सकता है कि वो पार्टी की दुर्दशा को लेकर चितित हैं और अपने उपर ये तोहमत नहीं लेना चाहते कि गाँधी परिवार की इस पीढ़ी ने कांग्रेस के ताबूत में अंतिम कील ठोक दी है।