त्रिफला : बनाने और सेवन का तरीक़ा जानें
वैद्य के परामर्श से कोविड में भी त्रिफला लाभकारी
त्रिफला से हम अच्छी तरह परिचित हैं। यह लगभग हर घर में किसी न किसी तरह मौजूद है। इसका प्रयोग हम पीढि़यों से परंपरानुसार करते आ रहे हैं। यह बाजार में बना बनाया मिलता है। पर इसको घर में किस तरह तैयार करें। इसके तीनो घटक हर्रे बहेड़ा और आंवला का किस अनुपात में मिश्रण करें और कैसे और किन रोगों में इसका प्रयोग करें इसके बारे में आइये वैद्यों की राय जानते हैँ।
नागपुर में आयुर्वेदिक मेडिकाल कालेज में प्रोफेसर बृजेश मिश्र का कहना है कि हर्रे बहेड़ा और आंवला तीन वनस्पति द्रव्य मिलकर त्रिफला का निर्माण करते हैं। इसमें एक भाग हर्रा दो भाग बहेड़ा और चार भाग आंवला होता है। इससे शरीर के बल की वर्ण की आयु की कांति और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। रस रक्त मांस आदि सप्तधातुओं की रक्षा करता है। वात पित्त कफ का संतुलन बनाता है।
आंख की रोशनी में लाभकारी होता है। समय से पूर्व बुढ़ापा आने पर लाभकारी होता है। आपका बुढ़ापा रोकता है। त्रिफला रसायन का प्रयोग रोज रात को गरम पानी के साथ ले सकते हैं। अग्नि को बढ़ाता है। शरीर का पोषण करता है। त्रिफला वैद्यों की सलाह से त्रिकटु के साथ कर सकते हैं। इसका प्रयोग मूर्च्छी रोग में माइग्रेन में किया जा सकता है। कोविड और पोस्ट कोविड पेशेंट में भी त्रिफला बहुत उपयोगी हो सकता है। त्रिफला का प्रयोग आंखों की रोशनी ठीक करने में किया जा सकता है। खासतौर से टीवी मोबाइल देखने के चलते बच्चों को आंखों में होने वाली दिक्कतों से त्रिफला के प्रयोग से निजात पायी जा सकती है।
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इसके अलावा बच्चों को एंजायटी में भी त्रिफला काम करता है। डॉ मदन गोपाल वाजपेयी ने त्रिफला को देव मानते हुए बताया कि आमलकी को ब्र्हमा हरीतकी को विष्णु स्वरुप और बहेड़ा को शिवस्वरूप बताया। वैद्यों ने त्रिफला को एंटी ऑक्सीडेंट गुण वाला बताया। इसके इनग्रेडिएंट हरीतकी को चबाने से कोलेस्ट्रॉल कम होता है। त्रिफला एजिंग प्रोसेस को रोकता है। शास्त्रों के अनुसार इसका प्रयोग आठ से 12 साल तक कर सकते हैं।
डॉ बृजेश मिश्र के अनुसार निघंटु में लिखा है कि एक साल तक करने से शरीर में स्फूर्तिवान दो साल में सभी रोगों का नाश तीन साल से आंखों की ज्योति में वृद्धि चार साल में कांति पांच साल तक में मेधाशक्ति धारणाशक्ति को बढ़ाता है। छरू साल तक उपयेाग से बलवर्द्धन करता है। सात साल में बाल घने काले और मुलायम होते हैं। आठ साल तक बराबर करने से आपका शरीर युवा बना रहता है। 12 साल तक प्रयोग करने से शरीर दैदीप्यमान बना रहेगा मेधाशक्ति बनी रहती है अर्थात आप चिरयुवा बने रहते हैं। सैंधव लवण करने से अलग तरह का लाभ मिलता है।
त्रिफला में अनुपान का महत्व
त्रिफला अनुपान के अनुसार आंखों के रोगों में बहुत लाभ देता है। ऋतु के अनुसार त्रिफला का प्रयोग करना चाहिए। त्रिफला का उपयोग ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ सुबह गरम पानी के साथ गरमी में लेते हैं। वर्षा ऋतु में सैंधव नमक के साथ करते हैं। शरद ऋतु में देशी खंाड राब के साथ करते हैं। हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ करते हैं। वसंत ऋतु में शहद के साथ करते हैं। पित्त के रोगी में दूध के साथ उपयोग करते हैं।
क्या कोरोना पेशेंट को त्रिफला देना चाहिए
डॉ वाजपेयी ने बताया कि अगर कफ के साथ ज्वर होता है तो उसे वात और पित्त दोनो प्रभावित करते हैं। इसलिए वैद्य की देखरेख में कोविड और पोस्ट कोविड पेशेंट को भी वैद्य की देखरेख में दिया जा सकता है। बिना वैद्य के परामर्श के बिल्कुल भी त्रिफला का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
यह माइल्ड या माडरेट दोनो परिस्थितियों में चिकित्सक की देखरेख में दिया जा सकता है। खुद से प्रयोग करना नुकसानदेह हो सकता है। गर्भवती महिला को पहले तीन महीना देने से परहेज करना चाहिए।
रुक्क्ष (शुष्क) भोजन करने वाले लोगों को सोच समझकर करना चाहिए। शुक्राल्पता हो तो सोच समझकर त्रिफला का प्रयोग करना चाहिए। हर हाल में त्रिफला का प्रयोग करते समय मात्रा और अनुपान का ध्यान रखकर करना चाहिए।
अतिसार डायरिया में प्रयोग नहीं करना चाहिए। अजीर्ण में सैंधव नमक के साथ प्रयोग करना चाहिए। आंखों को धोने में भी त्रिफला का प्रयोग चिकित्सक की देखरेख में ही प्रयोग करना चाहिए। अग्नि (डायजेशन) सही है तो शरीर निरोग रहता है। इसका सही मात्रा और सही अनुपान के साथ प्रयोग करके शरीर को निरोग रखा जा सकता है।