आज का वेद चिंतन विचार

नम इडुग्रं नम आ विवासे नमो दाधारं पृथ्वीमुत् द्याम।

नमो ने पृथ्वी और स्वर्ग को धारण किया है। नम्रता ही ऊंची है। मैं नम्रता की उपासना करता हूं ।

नम्रता ने पृथ्वी और स्वर्ग को धारण किया है। वहां नम्रता परमेश्वर की संज्ञा है।

ओम नमो इस त्रयक्षरी मंत्र में ओम और नमो दोनों भगवान के नाम हैं।

नाम शब्द नम धातु से बना है , जिससे नम्रता और नमस्कार साधित है। नाम भक्त को नम्र बनाएगा ।

नम्रता के बिना सत्य – शोधन नहीं होता, इसलिए सारे वैज्ञानिक नम्र होते हैं ।

नम्रता के बिना चित्त- शोधन नहीं होता, इसलिए सारे अध्यात्मिक नम्र होते हैं।

गांधीजी ने ईश्वर की नम्रता का वर्णन करते हुए उसे दीन भंगी की हीन कुटिया के निवासी कहकर पुकारा है।

उनकी उस अद्भुत प्रार्थना में वे कहते हैं – हे नम्रता के सम्राट! तेरी अपनी नम्रता तू हमें दे। नमो यानी नमने वाला, झुकने वाला।

ईश्वर की ओर से- नमो यानी ईश्वर भक्त को ऊपर उठाने के लिए झुकने वाला है ,जैसे मां बच्चे को गोद में उठा लेने के लिए झुकती है।

भक्त की ओर से – नमो यानी नमने वाला, यानी परम नम्र । सेवा करके नम रहने वाला ।

वेद
विनोबा विचार की प्रस्तुति : रमेश भैया

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