आज का वेद चिंतन विचार
*वस्त्रा पुत्राय मातरो वयन्ति (5.3.13)*
लड़के के लिए माताएं वस्त्र बुन रही हैं।
बहने घर में रसोई बनाती हैं, उससे स्वच्छ, सुंदर भोजन मिलता है।
बहने घर में रसोई बनाती हैं, उससे स्वच्छ, सुंदर भोजन मिलता है।
वैसे ही दोनों के हाथ में कपड़ा कातने और बुनने का काम आ जायेगा, तो बहनें रानियां बनेगी।
प्राचीन काल में पुरुष खेती में काम करता था और स्त्री घर में बुनती थी।
प्राचीन काल में पुरुष खेती में काम करता था और स्त्री घर में बुनती थी।
आज पुरुष बुनते हैं और स्त्रियां कांड़ी भरने का काम करती हैं। यानी स्त्रियों का स्वतंत्र धंधा चला गया।
इस तरह एक-एक धंधा छीना जायेगा तो स्त्रियां स्वाधीन कैसे रहेंगी?
वे यह भी नहीं जानती हैं कि पति मर जाये तो बच्चे का पालन कैसे करें। बहुत दयनीय अवस्था हो जाती है उनकी!
इसलिए स्त्रियों के लिए धंधे होने चाहिए और वे उनके हाथ में होने चाहिए। उसके बिना समाज नहीं टिकेगा और धर्म भी नहीं टिकेगा।
स्त्रियां घर में होंगी, तो धर्म टिकेगा और बाल-बच्चों की अच्छी व्यवस्था होगी।
इसलिए धर्म-रक्षण के लिए स्त्रियों को घर में उद्योग मिलना चाहिए। और इसलिए खादी पहनना सबका धर्म हो जाता है।
वेद में आया है, ” हे भगवान, न मैं जानता हूं ताने का सूत, न मैं जानता हूं बाने का सूत। मेरा रक्षण करो, जीवन बरबाद जा रहा है।
वेद में आया है, ” हे भगवान, न मैं जानता हूं ताने का सूत, न मैं जानता हूं बाने का सूत। मेरा रक्षण करो, जीवन बरबाद जा रहा है।
इतना महत्त्व ” वेद ने खादी को दिया है।