ये तो लाशें हैं साब, ये प्रश्न कहाँ करती हैं!
ये मात्र लाशें नहीं जम्हूरियत के मुँह पर तमाचे हैं
ये तो लाशें हैं साब, ये प्रश्न कहाँ करती हैं,
अगर ये बिलखते बच्चे होते, तो अपने मर चुके माँ – बाप का पता पूछते,
अगर ये शून्य में घूरती आँखें होतीं, तो अपने खोये सपनों का पता पूछतीं,
अगर ये माँ – बाप होते, तो रोजी – रोटी की तलाश में निकले अपने बच्चों का हाल पूछते,
होती अगर जनता तो लोकतंत्र का अर्थ पूछतीं,
किंतु, हाँ…….
ये तो लाशें हैं साब, ये प्रश्न कहाँ करती हैं,
ये तो आपके ‘भक्त’ भी नहीं, जो आपकी ‘उपलब्धियों’ का डंका पीटेंगीं,
ये आपके ‘वो पत्रकार’ नहीं, जो सिर्फ,’आपका सच’ बतातें हैं,
ये आपके कार्यकर्त्ता नहीं, जो आपका इक़बाल बुलंद करेंगें,
ये मौन की नीरवता में खोई गई आवाजें हैं, ये तो बस लाशें हैं,
डरिये मत……,
ये तो लाशें हैं साब, ये प्रश्न कहाँ करती हैं,
होतीं अगर ये जिन्दा कौमें, तो आपका गिरेबान पकड़ती,
होती अगर ये सच्चाई की रोशनाई, तो आपकी आत्मा को झझोड़ती,
ये मतदाता भी नहीं, जो आपको चुनने की वजह पूछेंगे,
ये तो मर चुकीं उम्मीदें हैं….. सच मानिये,
ये तो लाशें हैं साब, ये प्रश्न कहाँ करती हैं…………
ये तो मरे हुए लोग है, पर आपकी आत्मा तो जिन्दा है,
आपके “मन की बातें”तो बहुत हो चुकीं,परन्तु श्रीमान,
दूसरों की मन की बातें भी अब सुन ली जाए,
ये भी एक कायदा है,
कभी किसी के माँ, पिता,भाई, बहन, बच्चे या मित्र थे ये,
पर आज मौन इस दुनिया के बियावन में, ये सिर्फ लाशें हैं,
लेकिन नहीं, ये मात्र लाशें नहीं जम्हूरियत के मुँह पर तमाचे हैं,
इनकी चुप्पी एक चेतावनी है कि,
कही जिन्दा लोग प्रश्न ना करने लगें,
समाज आपके विरुद्ध खड़ा ना होने लगे,
अब भी जागिये अपने राज मद की निद्रा से,
अन्यथा सत्ता के अहम् के साथ बिखर जाएंगे,
देश के अंतर्मन का कोप नहीं झेल पाएंगे,
इन जीवित व्याकुल आँखों का दर्द समझिये,
पर इन लाशों का क्या….ये तो लाशें हैं साब,
ये प्रश्न कहाँ करती हैं…………
शिवेन्द्र प्रताप सिंह
शोधार्थी- सामाजिक विज्ञान संकाय
वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, बिहार
E-mail – Shivendrasinghrana@gmail.com