सुनिए 1975 इमर्जेंसी के किस्से उन लोगों की ज़ुबानी जिन्होंने लोकतंत्र बचाने के लिए सब कुछ झेला

सोपान जोशी की राम दत्त त्रिपाठी से लम्बी बातचीत

इमर्जेंसी की कार्यप्रणाली चित्रित करता एक कार्टून जिसमें राष्ट्रपति बाथरूम में भी फ़ाइल पर दस्तख़त कर रहे हैं.

 

(मीडिया स्वराज़ डेस्क )

26  जून 1975 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी अपनी सरकार को बचाने के लिए देश में आपातकाल लगाकर लाखों लोगों को जेल भेज दिया . नागरिकों के मौलिक अधिकार निलम्बित कर दिए गए.  पर सेंशरशिप लगा दी  गयी . देश की सर्वोच्च अदालत ने भी सरकार के सामने हाथ खड़े कर दिए गए. तत्कालीन सत्तारूढ़ दल ने इंदिरा इज इंडिया का नारा देकर देश की अस्मिता को एक नेता से जोड़ने की भारी भूल की थी, जिसका परिणाम न केवल उस दल बल्कि पूरे देश को भोगना पड़ा. प्रेस, अदालत, संसद, स्थायी नौकरशाही और लोकतंत्र की दूसरी बुनियादी संस्थाएँ कमजोर हो गयीं. 

इमर्जेंसी भारत देश के राजनीतिक  इतिहास का बहुचर्चित काला अध्याय है. वर्तमान को समझने के लिए इतिहास को जानना , समझना और सबक़ लेना ज़रूरी होता है ताकि समाज फिर से वही गलती न दोहराए. 

नीचे दिए गए लिंक में अनेक लोगों ने इमर्जेंसी के अपने लम्बे अनुभव साझा किए हैं जो अंग्रेज़ी के अल्फ़ाबेट  के क्रम  में लगाए गए हैं. इसमें बीबीसी के पूर्व संवाददाता और इमर्जेंसी के मीसाबंदी राम दत्त त्रिपाठी से लम्बी बातचीत R सेक्शन में शामिल है, वहाँ पहुँचने के लिए चार बार NEXT क्लिक करना होगा.  

https://longemergency.demx.in/#/series/oral-histories

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