बिहार चुनाव में गूंज रहा बेरोजगारी और रोजगार का मुद्दा

विकास सिंह

बिहार में चुनावी रणभेरी बज चुकी है, तारीख का भी ऐलान हो गया है और ऐसे में राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने के लिए कई दाव चल रहे हैं। यूं तो बिहार चुनाव में कई मुद्दे अहम  है पर बेरोज़गारी का मुद्दा विशेष है और ऐसे में आरजेडी के नेता तेजस्वी द्वारा 10 लाख रोजगार देने का चुनावी वादा तुरूप का ईक्का साबित हो सकता है। 

बिहार चुनाव में जाति, बाढ बिजली-पानी और किसान संबंधित मुद्दे रहे हैं पर कोरोना काल में में होने वाला यह चुनाव थोड़ा अलग है ।

पंद्रह ‌साल‌‌ का‌ वनवास खत्म कर सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी लालू यादव की पार्टी आरजेडी ने युवा वोटरों‌ को रिझाने ‌के लिए ट्रंप कार्ड चलते हुई ऐलान किया कि अगर चुनाव के बाद आरजेडी की सरकार बनती है तो सबसे पहले दस‌ लाख युवाओं को नौकरी देंगे।

अब सवाल यह उठता है कि तेजस्वी यादव ने बेरोजगारों को लेकर और रोजगार के नाम पर इतना बड़ा वादा क्यों किया ?

कोरोनाकाल में हो रहे बिहार चुनाव में इस बार करीब 40 लाख युवा वोटर पहली बार अपना वोट देंगे।

वहीं राज्य में इस बार वोट डालने वाले कुल सात करोड़ से अधिक वोटरों में आधे से अधिक वोटरों की संख्या 18-39 साल आयु वर्ग वालों की है और वोटरों का यह बड़ा तबका इस वक्त बेरोजगारी की समस्या से बुरी तरह जूझ रहा है।

अप्रैल 2020 में जारी आंकड़ों के अनुसार बिहार में बेरोजगारी दर 46.6 फीसदी तक पहुंच गई है,यानि चुनावी काल में लगभग आधा बिहार बेरोजगार है। 

बिहार की बेरोजगारी दर वर्तमान में देश की बेरोजगारी दर से दोगुनी है। कोरोना और उसके साथ हुए लॉकडाउन के राज्य में लाखों की संख्या में प्रवासी  मजूदर वापस लौट आए जिसके चलते राज्य में बेरोजगारी की हालत चिंताजनक स्थिति में पहुंच गई है। 

गांधी फेलो और कटिहार में शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सत्यजीत कुमार कहते हैं कि बिहार चुनाव में जाति, बाढ बिजली-पानी और किसान संबंधित मुद्दे रहे हैं,पर कोरोना काल में में होने वाला यह चुनाव अब तक हुए सभी चुनाव से थोड़ा अलग है।

कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन के चलते सूबे में लाखों लोग बेरोज़गारी का दंश झेल रहे और इसमें बड़ी तदाद में प्रवासी मजदूरों की संख्या है।

अचानक से बड़ी संख्या में लोगों के घर लौटने से बेरोजगारी  के आंकड़ों में अचानक से वृद्धि हो गई है वहीं इससे इतर सरकारी वैकेंसी न निकलने और रिक्त पदों की भर्ती में देरी को लेकर युवाओं में बहुत गुस्सा है।

हाल ही में बिहार भर के कोचिंग चलाने वाले शिक्षकों ने छात्रों के पक्ष में सरकार का विरोध किया था और कम्पटीशन परीक्षा के परिणाम घोषित करने की मांग की थी।

बीते 17 सितम्बर को बेरोज़गार दिवस मनाया जाना भी सरकार को एक इशारा दिए जाने की तरह ही था।

कोरोना काल में लोगों ने  महज नौकरी ही नहीं खोई है बल्कि अब नई नौकरी के अवसर भी महज नाम मात्र के लिए ही उपलब्ध हुए हैं।

आर्थिक अनिश्चितता के चलते  इस समय में अधिकतर कंपनियां नई भर्ती नहीं कर रही साथ ही अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती भी की है जिसका असर लोगों के सामान्य जीवन पर पड़ा है।

वेबदुनिया से बातचीत में सत्यजीत आगे कहते हैं कि मेरा जमीनी स्तर के अनुभवों के  आधार पर मानना है कि बिहार की आबादी का बड़ा हिस्सा बेरोज़गारी का शिकार है और उनके लिए परिवार की पूर्ति करना मुश्किल हो रहा है।

दिहाड़ी मजदूर, फेरी वाला और कई छोटे व्यवसायी से मेरी बातचीत में यह सामने आया कि लोग आवश्यक खर्च में भी कटौती कर रहें हैं।

ऐसे में बेरोज़गारी का मुद्दा और तेजस्वी का रोजगार देने का दाव वोटरों के लिए काफी लुभावना है।

मेरा मानना है कि जाति की राजनीति वाले बिहार में रोजगार का मुद्दा इस समय ज्यादा मजबूत है।

बेरोज़गारी का मुद्दा जातीय समीकरण को तोड़ने की क्षमता रखता है,प्रश्न एक ही है कि किस तरह विपक्षी दल इस मुद्दे को भुनाते है ।

बिहार के वैशाली जिले के पेशे से शिक्षक‌ विकास कुमार कहते है कि  इस बार चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी का है। युवाओं के भारी रोष का असर इस बार के चुनाव पर साफ तौर पर दिखेगा।

2014 में बिहार कर्मचारी चयन आयोग ने जो अधिसूचना जारी की और जो आवेदन लिया गया, उसका द्वितीय परीक्षा आज तक नहीं हुई है।

बिहार ITI के अनुदेशक भर्ती का विज्ञापन 2013 में निकला जिसके परीक्षा की तारीख अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है। शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया भी रुकी हुई है।

बिहार में डबल इंजन वाली सरकार की विफलता का पता इसी बात से लगता है कि बिहार में बेरोजगारी 31.2% तक बढ़कर 46.6% तक चली गई है।

अप्रैल 2020 तक के इस आंकड़े के बाद बिहार बेरोजगारी में तमिलनाडु और झारखंड के बाद देश के राज्यों में तीसरे स्थान पर है।

सत्ता में वापसी के लिए RJD का रोजगार कार्ड- 15 साल बाद के वनवास को खत्म कर सत्ता वापसी की कोशिश में लगी आरजेडी ने इस बार चुनाव में रोजगार का कार्ड चला है। 

तारीखों के एलान के तुरंत बाद तेजस्वी यादव ने कहा कि सरकार बनने पर पहली कैबिनेट‌ में पहली ही कलम से बिहार के 10 लाख युवाओं को स्थायी नौकरी देंगे।

तेजस्वी ने दावा किया‌ कि  बिहार में 4 लाख 50 हज़ार रिक्तियाँ पहले से ही है।

शिक्षा, स्वास्थ्य, गृह विभाग सहित अन्य विभागों में राष्ट्रीय औसत एव तय मानकों के हिसाब से बिहार में अभी भी 5 लाख 50 हज़ार नियुक्तियों की अत्यंत आवश्यकता है।

तेजस्वी ने कहा कि  राज्य में पुलिसकर्मियों के 50 हजार से अधिक पद रिक्त हैं. यह तब है जब बिहार में पुलिस-पब्लिक का अनुपात न्यूनतम स्तर पर पहुंचा हुआ है, यहां प्रति एक लाख की आबादी पर सिर्फ 77 पुलिस कर्मी हैं।

वहीं शिक्षा क्षेत्र में 3 लाख शिक्षकों की ज़रूरत है। प्राइमरी और सेकंडेरी लेवल पर ढाई लाख से अधिक स्थायी शिक्षकों की पद रिक्त है। कॉलेज और यूनिवर्सिटी स्तर पर लगभग 50 हज़ार प्रोफ़ेसर की आवश्यकता है।

इसके साथ‌ राज्य में जूनियर इंजीनियर के 66% पद ख़ाली हैं। पथ निर्माण, जल संसाधन, भवन निर्माण, बिजली विभाग तथा अन्य अभियांत्रिक विभागों में लगभग 75 हज़ार अभियंताओं की ज़रूरत है।

इसके अलावा लिपिकों, सहायकों, चपरासी और अन्य वर्गों के लगभग 2 लाख पद भरने की आवश्यकता है।

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