गंगा नादानों के बीच एक अबूझ पहेली-सी

भारतवर्ष एक यज्ञ मंडप है, जिसमें गंगा ओंकार की तरह गूंज रही है।

रामसागर दुबे

वैदिक विमर्श से लेकर आधुनिक ज्ञान-विज्ञान तक भगवती गंगा अत्यंत गंभीर चिंतन का केंद्र बिंदु रही हैं। गंगा की उत्ताल लहरों से भ् तरंगित होती है। लोक मानस का धार्मिक और आध्यात्मिक वैभव मां गंगा को पाकर गौरवान्वित होता है। जीवन का सार तत्व मां गंगा में समाहित है। अफसोस, आज गंगा गोमुख से लेकर गंगासागर तक कलियुगी विसंगतियों से जूझ रही है। अपने प्रत्येक बूथ में अमृत लुटाने वाली गंगा आज नादानों के बीच एक अबूझ पहेली सी बनकर रह गई है। वास्तव में जो संस्कृति विहीन तथाकथित विकासवादी हैं, उन्हें गंगा मात्र एक नदी दिख रही है। स्मरण रहे भारतवर्ष एक यज्ञ मंडप है, जिसमें गंगा ओंकार की तरह गूंज रही है।

भारतीयों की अंतरात्मा में गंगा की पैठ बहुत गहरी है। परंतु गंगा के प्रति सरकारों द्वारा हो रहे दुर्व्यवहार से भारतीय लोक मानस बहुत व्यथित है, दुखी है, विवश है, लाचार है। जन-जन द्वारा पूजित गंगा पर सरकारें कहर ढहा रही हैं। लोक आस्था में रची बसी गंगा पर कुठाराघात कोई और नहीं, अब सरकारें कर रहे हैं। अपनी आस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए भारतीय जनमानस ने आशा के दीप तले कई सरकारें बदलीं, परंतु एक नागनाथ तो दूसरा सांप नाथ जैसा व्यवहार पाकर अब निराज जनता इस सोच में डूबी है कि क्या किया जाए? यह सत्य है कि गंगा संपूर्ण विकास की धुरी है। गंगा चेतना की बुनियाद है।

सरकारी योजनाओं के माध्यम से विकास की आड़ में गंगा का दोहन गोमुख से गंगासागर तक किया जा रहा है। इसका नवीनतम उदाहरण आज काशी में देखा जा सकता है। ललिता घाट काशी का हृदय प्रदेश है, जिसके सामने गंगा को विशाल क्षेत्र में पाट दिया गया, हमारा आपका अर्थात जनता का पैसा बेतहाशा खर्च किया गया और लोकमानस मूक द्रष्टा बना रहा, क्योंकि लोग भय के साए में जी रहे हैं। सभी विवश होकर सारे कुकृत्य को चश्मदीद गवाह की तरह देखते हुए मौन हैं। वाराणसी में ही गंगा के दूसरे तट पर 5.5 किमी लंबी 45 मीटर चौड़ी और 6 मीटर गहरी गंगा नहर खोदी गई, जिस पर जनता का 12 से 15 करोड़ खर्च किया गया। अंततः नहर बाढ़ के बाद खत्म हो गई, बाढ़ के बालू से पट गई। सरकार का उद्देश्य है नहर के माध्यम से जल का संभरण कर क्रूज अर्थात आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित जहाज चलाना, जो आमोद प्रमोद का साधन है।

अंततोगत्वा सरकारों का इरादा स्पष्ट है कि मां गंगा का तट या गंगा के सीने पर ऐशगाह विकसित करना है, जिससे धन कमाया जा सके, व्यापार किया जा सके। स्मरण रहे कि भगवती गंगा का तट और उनका परिक्षेत्र साधना का केंद्र बिंदु है, व्यापार का नहीं। मां गंगा के आध्यात्मिक ऊर्जा क्षेत्र को भोग विलास का क्षेत्र बनाना अपराध है। बिना आध्यात्मिक ऊर्जा के जीवन का संचरण संभव नहीं है, क्योंकि मनुष्य की चेतना वहीं से बलवती होती हैं और मनुष्य के भविष्य को समृद्ध बनाती है।

सबसे दुःखद पहलू है कि गंगा के प्रति लोक जागरण हेतु गंगा तट पर बसे अनेक शहरों में विभिन्न संस्थाएं कार्य कर रही थीं, अपने दायित्व को निष्ठा पूर्वक निभा रही थीं, परंतु आज सरकार ने उनको भी सरकारी माध्यम बनाकर लोक मानस को हतोत्साहित कर दिया है। इससे यह संदेश मिल रहा है कि लोक मानस की आस्था अमृतवाहिनी शाप-ताप-हारिणी गंगा अब केवल सरकारी उपक्रमों का केंद्र बनती जा रही है।

सरकारों द्वारा भगवती गंगा के विज्ञान परक धार्मिक मूल्यों की अवहेलना की जा रही है। सरकारी संयंत्रों में उलझी मां गंगा हिमालय के सत्व को अपने आस्थावान पुत्रों तक नहीं पहुंचा पा रही है, इसीलिए हमारी मेधा अनवरत क्षीण हो रही है और हम अनेक कुंठाओं के शिकार हो रहे हैं। सरकारों से हमारा निवेदन है कि गंगा के आध्यात्मिक क्षेत्र को छोड़कर अपने विकास का वितान कहीं और तानें, भौतिक संसाधनों का क्षेत्र कहीं और बनाएं, क्योंकि आधुनिक संसाधनों से उस भारतीय मेधा का विकास नहीं हो सकता, जिसे गंगा अपने अमृत जल से सिंचित करती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

3 × two =

Related Articles

Back to top button