अयोध्या से डरावनी खबर
राम दत्त त्रिपाठी
पिछले दिनों अयोध्या से बहुत डरावनी खबर आयी है, जिससे देश के सभी शांतिप्रिय नागरिकों को चिंतित होना स्वाभाविक है।केवल चिंतित ही नहीं, जागरूक और सक्रिय भी। पुलिस के मुताबिक़ ग्यारह हिन्दू लड़कों ने सिर पर टोपी लगाकर यानी मुसलमानों का वेश बनाकर अयोध्या की तीन प्रमुख मस्जिदों में जानवर का मांस , धर्म ग्रंथ के फटे पन्ने और आपत्तिजनक पर्चे फेंके . ग़नीमत है कि इनकी यह आपराधिक हरकतें सीसीटीवी कैमरों में क़ैद हो गयी। इसलिए पुलिस ने बहुत जल्दी ही षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश करके सात आरोपियों को जेल भेज दिया. बाद में शेष अभियुक्त भी पकड़े गए।
षड्यंत्र का मक़सद
षड्यंत्र का मक़सद बहुत साफ़ था . मक़सद था कि मस्जिदों में आपत्तिजनक सामग्री देखकर अयोध्या के मुसलमान भड़कें और सड़क पर उपद्रव करें , जिसके बाद वे पुलिस वालों के संरक्षण में बुलडोज़र लेकर मुस्लिम समुदाय पर हल्ला बोलें और रमज़ान के पवित्र दिनों में देश के तमाम हिस्सों में दंगे फैल जायें . लेकिन मुस्लिम समुदाय ने समझदारी दिखायी और खुद कुछ करने के बजाय सबूत के साथ पुलिस को सूचना दी।
पकड़े गये युवकों का कहना है कि उन्हें कोई प्रायश्चित नहीं है और उन्होंने दिल्ली की जहॉंगीरपुरी का बदला लेने के लिए यह हरकतें की.
जहॉंगीरपुरी में क्या हुआ था ? वहॉं हिन्दू युवकों का जत्था हाथ में तलवार और अन्य हथियार लेकर मस्जिद के सामने भड़काऊ नारे लगा रहा था. ये लोग पुलिस के संरक्षण में पथराव करते भी दिखे. जब मुस्लिम समुदाय ने हमले का जवाब देकर खदेड़ा तो प्रशासन ने उनके कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया। प्रशासन जहांगीरपुरी के मुसलमानों को सबक़ सिखाने के लिए दूसरे दिन बुलडोज़र लेकर पहुँच गया . सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा तब बुलडोज़र रुके , लेकिन मस्जिद का चबूतरा तोड़ने के बाद.
सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि जिस स्टेट मशीनरी का काम समाज में शांति व्यवस्था क़ायम रखकर सबको सुरक्षा देना है, वही दंगाइयों के एक गुट को बढ़ावा दे रही है। यह गुट खुले आम मुसलमानों के नर संहार की बातें करता है।
सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि जिस स्टेट मशीनरी का काम समाज में शांति व्यवस्था क़ायम रखकर सबको सुरक्षा देना है, वही दंगाइयों के एक गुट को बढ़ावा दे रही है। यह गुट खुले आम मुसलमानों के नर संहार की बातें करता है।
सवाल है कि वे कौन लोग और कौन संगठन हैं जो भारत में मुसलमानों और उनके धर्मस्थानों को लगातार निशाने पर लेकर उनके ख़िलाफ़ नफ़रत और हिंसा का अभियान चला रहे हैं। इस अभियान का दुष्प्रभाव युवा पीढ़ी के मन पर पड़ रहा है और वे अपनी पढ़ाई, लिखाई रोज़गार छोड़कर हिंसा का रास्ता पकड़ रहे हैं।
इस तरह की आपराधिक गतिविधियों में लिप्त बहुत से लोगों को सांसद , विधायक , मंत्री और मुख्यमंत्री भी बना दिया जाता है, इसलिए हो सकता है कि ये युवक साम्प्रदायिक हिंसा को राजनीति की पहली सीढ़ी समझकर ऐसा कर रहे हों।
पुलिस ने यह खुलासा नहीं किया है कि पर्दे के पीछे से कौन लोग अयोध्या के इन युवकों के दिमाग़ में ज़हर भर रहे थे। मूल संगठनों की पहचान छिपाने के लिए ही एक नए संगठन का गठन किया गया है – हिंदू योद्धा संगठन।
शायद बहुत से लोगों को नहीं पता कि पवित्र नगरी अयोध्या भगवान राम की जन्म भूमि होने के साथ और भी धर्मावलंबियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहाँ मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई धर्मावलम्बियों के पवित्र पूजा स्थल भी हैं। इन सभी धर्मों के लोग यहाँ सदियों से मिल जुलकर रहते आए हैं।
ऐसा नहीं है कि अतीत में झगड़े नहीं हुए होंगे, लेकिन बाद में सब मिल-जुलकर रहने लगे। अवध की मिली जुली गंगा- जमुनी संस्कृति सब जगह मशहूर है।
अयोध्या में जो तमाम बड़े मंदिर हैं उनकी अनुमानित उम्र तीन चार सौ साल के आसपास होगी। यानी ये इमारतें नवाबी शासन के दौरान बनीं। तमाम मंदिरों को खर्च चलाने के लिए नवाब शासकों ने ज़मीनें दीं । अनेक मंदिरों के मैनेजर अब भी मुस्लिम हैं । नवाब वाज़िद अली शाह स्वयं कत्थक नृत्य के प्रेमी थे जो मंदिरों का नृत्य है।अयोध्या के मुस्लिम मंदिरों में पूजा के लिए फूल पहुँचाते हैं .देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए पोशाक सिलते हैं .
गोस्वामी तुलसी दास ने राम राज्य की अपनी परिकल्पना में कहा , सब नर करहिं परस्पर प्रीती , चलहिं स्वधर्म सुरति श्रुति नीती .
लेकिन बहुसंख्यक हिन्दुओं के मन मस्तिष्क को उद्वेलित करके सत्ता प्राप्ति के उद्देश्य से अयोध्या से मंदिर – मस्जिद का झगड़ा शुरू कराया गया . मामला अदालत में होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखाते हुए , सरकार के संरक्षण में दिन दहाड़े मस्जिद को ढहा दिया गया .
झगड़े को ख़त्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए विवादित और सारी 67 एकड़ ज़मीन राम मंदिर के लिए दे दी और मुस्लिम समुदाय को वहाँ से काफ़ी दूर पॉंच एकड़ ज़मीन दी गयी. देश में शॉंति और सद्भाव के लिए सभी ने इस फ़ैसले को मान लिया. लेकिन अब जानबूझकर काशी और मथुरा में पुराने जख्मों को कुरेदा जा रहा है.
अपेक्षा थी कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण का काम सनातन हिन्दू धर्म के परम्परागत धर्म गुरुओं को सौंपा जायेगा। लेकिन मंदिर निर्माण समिति का काम एक दल विशेष के समर्थकों को दिया गया है और उसमें भी सनातन हिन्दू धर्माचार्यों की उपेक्षा की जा रही है. पता नहीं मर्यादा पुरुषोत्तम को यह अमर्यादित तरीक़ा पसंद आएगा कि नहीं।
इससे भी संतोष नहीं हुआ तो अब मस्जिदों में आपत्तिजनक सामग्री फेंककर मुसलमानों को भड़काने का काम किया गया . दंगे भड़काने का यह काम विशेषकर उन सभी राज्यों में हो रहा है जहॉं पुलिस का संरक्षण प्राप्त है.
माना जाता है कि यह अगले लोक सभा चुनाव को जीतने की रणनीति का हिस्सा है – अर्थात् इस तरह की भड़काने वाले काम आगे और ज़्यादा होंगे .
इससे हमारी युवा पीढ़ी कट्टरपंथी होकर हिंसा के मार्ग पर चले तो उनको परवाह नहीं . देश में अशांति हो , प्रगति में बाधा हो , दुनिया में भारत की छवि ख़राब हो तो हो , इसकी परवाह उन्हें नहीं .
देश में इस समय गॉंधी जैसा कोई नेता नहीं जो जनता को इस राजनीति के खिलाफ संगठित करे.
विपक्षी दलों के पास न तो साफ़ दृष्टिकोण है न उनके पास ज़मीनी संगठन।
नागरिकों की ज़िम्मेदारी
ऐसे में शॉंति प्रिय और सजग नागरिकों को पहल करके इस तरह की समाज तोड़क हिंसक गतिविधियों के खिलाफ खुलकर बोलना होगा और ऐसे लोगों को संगठित करना होगा। अयोध्या से डरावनी खबर सबको अपने – अपने परिवार के बच्चों को ग़लत संगत और ख़तरनाक रास्ते पर जाने से बचाना होगा।
ऐसे में शॉंति प्रिय और सजग नागरिकों को पहल करके इस तरह की समाज तोड़क हिंसक गतिविधियों के खिलाफ खुलकर बोलना होगा और ऐसे लोगों को संगठित करना होगा। अयोध्या से डरावनी खबर सबको अपने – अपने परिवार के बच्चों को ग़लत संगत और ख़तरनाक रास्ते पर जाने से बचाना होगा।
और साथ ही साथ पुलिस प्रशासन और न्यायपालिका को भी अधिक सतर्कता बरतनी होगी कि देश में क़ानून का राज चले। यह उनकी नैतिक और वैधानिक ज़िम्मेदारी है।