Swami Vivekananda: गांधी जी स्वामी विवेकानंद से भेंट करने गए थे पर…

Swami Vivekananda: अगर भेंट हो जाती तो क्या बात होती ? हम सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं कि हिन्दू धर्म पर बात होती.

Swami Vivekananda: 1901-2 तक गांधीजी की कोई विशेष पहचान नहीं बनी थी. अफ्रीका में वे भाई थे, रंग भेद के अपमान को सह चुके थे और ईसाई उनको प्रभावित कर ईसाई बनाना चाहते थे. वही भारत में गोखले ने उनकी प्रतिभा को पहचान चुके थे.

इसी बीच वे बंगाल पहुचे जहाँ सुधारवाद और धार्मिक चेतना गहरी थी. 33 साल के गांधीजी फुर्सत में थे जिज्ञासू थे, हिन्दू धर्म के महापुरुषों से सम्पर्क कर रहे थे इसी बीच स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)से मिलने के लिए बेलूर मठ पहुंचे पर वे वहां नहीं कोलकात्ता वाले घर में थे, बीमार थे इसलिए भेंट नहीं हो सकी. बाद में गांधीजी ने 30 जनवरी 1921 को स्वामीजी को श्रृद्धांजलि दी थी और उनके योगदान पर बोले थे.

अगर भेंट हो जाती तो क्या बात होती ? हम सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं कि हिन्दू धर्म पर बात होती, शायद देश की आजादी पर भी बात होती. वैसे स्वामीजी के इसमें योगदान पर शोध की जरुरत है. स्वामीजी ने अपनी फ्रांसीसी शिष्या जोसेफानी मोकिल्यान से कहा था मैने स्वतन्त्रता के लिए प्रयास किया किन्तु देश अभी तैयार नहीं है इसलिए छोड दिया. गांधीजी ने स्वामीजी की शिष्या भगिनी निवेदिता से भेंट की पर उनकी तडक – भडक को देख आदर्शवादी गांधीजी चकरा गए. बाद की भेंट में भगिनी के हिन्दू धर्म से प्रेम से प्रभावित हुए.

स्वामी विवेकानंद का जन्म गांधीजी के जन्म से 6 साल पहले 12 जनवरी 1863 में हुआ था. तब प्रथम स्वतन्त्रता आन्दोलन के 6 साल हो गए थे. स्वामीजी की हिन्दू धर्म दर्शन पर गहरी पकड़ थी. 1893 में शिकागो में दिए धर्म भाषण को गांधीजी ने पढ़ा जरुर होगा और वे उनकी इस बात से सहमत भी हुए होंगे की ” मुझे ऐसे धर्मावलम्बी होने का गौरव है जिसने संसार को सहिश्णुता तथा सभी धर्मों को मान्यता प्रदान करने की शिक्षा दी है. ” गांधीजी के हिन्दू धर्म के विचार पढते हैं तो यहीं ध्वनी निकलती है. अगर दोनों एक दूसरे से मिल जाते तो दोनों ही एक दूसरे को प्रभावित करते, पर स्वामी 4 जुलाई 1902 को हमें छोड़कर चले गए.

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