PEGASUS SPYWARE CASE सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी कांड की जाँच के लिए कमेटी बनायी

मीडिया स्वराज डेस्क 

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने बहुचर्चित पेगासस जासूसी कांड Pegasus Spyware Case में मोदी सरकार की तमाम दलीलों को ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आर वाई रवींद्रन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति EXPERT COMITTEE गठित कर दी है।

समिति में तीन सदस्य होंगे। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की बेंच ने यह फ़ैसला बुधवार को मनोहर लाल शर्मा बनाम भारत संघ मामले में दिया। आरोपों की जांच के लिए शीर्ष अदालत के समक्ष कई याचिकाएं दायर की गयी थीं। 

पेगासस जाँच कमेटी का गठन


सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस के मामले में जिस कमेटी का गठन किया है , उसमें पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज  जस्टिस आरवी रविंद्रन , पूर्व आईपीएस  आलोक जोशी , और संदीप ओबेराय होंगे। 

तकनीकी समिति में तीन सदस्य होंगे. 

1-  डॉ नवीन कुमार चौधरी, प्रोफेसर (साइबर सुरक्षा और डिजिटल फोरेंसिक) और डीन, राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधीनगर, गुजरात. 

2-  डॉ प्रबहारन पी., प्रोफेसर (इंजीनियरिंग स्कूल), अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरी, केरल.  

3 – डॉ अश्विन अनिल गुमस्ते, एसोसिएट प्रोफेसर (कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे, महाराष्ट्र.

कोर्ट ने जाँच का विरोध करने के लिए  राष्ट्रीय सुरक्षा के तर्क देने के लिए फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा जब भी कोर्ट न्यायिक समीक्षा करता है तो हर बार फ्री पास हासिल करने का यह एक सर्वव्यापी तर्क नहीं हो सकता है।

फैसला सुनाते हुए चीफ़ जस्टिस  एनवी रमना ने कहा कि हमने लोगों को उनके मौलिक अधिकारों के हनन से बचाने से कभी परहेज नहीं किया. निजता केवल पत्रकारों और नेताओं के लिए नहीं, बल्कि ये आम लोगों का भी अधिकार है . याचिकाओं में  इस बात पर चिंता जताई है कि प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे किया जा सकता है ?  प्रेस की स्वतंत्रता के महत्वपूर्ण है,  जो लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है, पत्रकारों के सूत्रों की सुरक्षा भी जरूरी है.

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में इस मामले में कई रिपोर्ट थीं. मामले में कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. तकनीक जीवन को उन्नत बनाने का सबसे बेहतरीन औजार है, हम भी ये मानते हैं. उन्होंने आगे कहा कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार सबसे ऊंचा है, उनमें संतुलन भी जरूरी है. तकनीक पर आपत्ति सबूतों के आधार पर होनी चाहिए.

प्रेस की आज़ादी

प्रेस की आजादी PRESS FREEDOM पर कोई असर नहीं होना चाहिए. उनको सूचना मिलने के स्रोत खुले होने चाहिए. उन पर कोई रोक ना हो. न्यूज पेपर पर आधारित रिपोर्ट के आधार पर दायर की गई याचिकाओं से पहले हम संतुष्ट नहीं थे, लेकिन फिर बहस आगे बढ़ी. सॉलिसिटर जनरल ने  ऐसी याचिकाओं को तथ्यों से परे और गलत मानसिकता से प्रेरित बताया था. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को उठाकर राज्य को हर बार मुफ्त पास नहीं मिल सकता है। न्यायिक समीक्षा के खिलाफ किसी भी व्यापक निषेध को नहीं कहा जा सकता है। केंद्र को यहां अपने रुख को सही ठहराना चाहिए और अदालत को मूकदर्शक नहीं बनाना चाहिए।”

केंद्र सरकार ने पहले इस मामले में हलफनामा दाखिल करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि यह मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा , “केंद्र द्वारा (पेगासस के उपयोग के बारे में) कोई विशेष खंडन नहीं किया गया है। इस प्रकार हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और इस प्रकार हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं जिसका कार्य सर्वोच्च न्यायालय द्वारा देखा जाएगा।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि जहां सूचना प्रौद्योगिकी का युग हमारे दैनिक जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं नागरिकों की निजता की रक्षा करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

जबकि निजता के अधिकार पर प्रतिबंध हैं, वही संवैधानिक सुरक्षा उपायों से बंधे हैं। गोपनीयता पर प्रतिबंध केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में आतंकवादी गतिविधियों की रोकथाम के लिए लगाया जा सकता है।

“हम सूचना के युग में रहते हैं। हमें यह पहचानना चाहिए कि प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण है, गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। न केवल पत्रकार आदि बल्कि गोपनीयता सभी नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण है।

निजता के अधिकार पर प्रतिबंध हैं लेकिन उन प्रतिबंधों की संवैधानिक जांच होनी चाहिए। आज की दुनिया में गोपनीयता पर प्रतिबंध आतंकवाद की गतिविधि को रोकने के लिए है और इसे केवल तभी लगाया जा सकता है जब राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए आवश्यक हो।”

इज़राइल स्थित स्पाइवेयर फर्म एनएसओ अपने पेगासस स्पाइवेयर के लिए सबसे अच्छी तरह से जाना जाता है, जिसका दावा है कि यह केवल “सत्यापित सरकारों” को बेचा जाता है, न कि निजी संस्थाओं को, हालांकि कंपनी यह नहीं बताती है कि वह किन सरकारों को विवादास्पद  सॉफ़्टवेयर बेंचती है।

भारतीय समाचार पोर्टल द वायर सहित एक अंतरराष्ट्रीय संघ ने हाल ही में रिपोर्टों की एक श्रृंखला जारी की थी जो यह दर्शाती है कि उक्त सॉफ़्टवेयर का उपयोग भारतीय पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, वकीलों, अधिकारियों, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और अन्य सहित कई व्यक्तियों के मोबाइल उपकरणों को संक्रमित करने के लिए किया गया हो सकता है।

रिपोर्टों में उन फ़ोन नंबरों की सूची का उल्लेख किया गया था जिन्हें संभावित लक्ष्यों के रूप में चुना गया था। एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक टीम द्वारा विश्लेषण करने पर, इनमें से कुछ नंबरों में एक सफल पेगासस संक्रमण के निशान पाए गए, जबकि कुछ ने संक्रमण का प्रयास दिखाया।

याचिकाकर्ताओं में अधिवक्ता एमएल शर्मा, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, हिंदू प्रकाशन समूह के निदेशक एन राम और एशियानेट के संस्थापक शशि कुमार, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, इप्सा शताक्षी, परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आबिदी और प्रेम शंकर झा शामिल थे।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने तर्क दिया था कि क्या केंद्र सरकार ने पेगासस या किसी अन्य निगरानी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है, इस सवाल पर अदालत के समक्ष दायर हलफनामों में बहस नहीं की जा सकती है।

एसजी मेहता ने ऐसा करने के लिए केंद्र की अनिच्छा को सही ठहराने के लिए एक आधार के रूप में राष्ट्रीय सुरक्षा के संरक्षण का हवाला दिया था।

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