चीन सीमा पर भारतीय की सेना की तैयारी जोरों शोरों पर

अगले छह हफ्तों के भीतर सेना द्वारा यह निर्णय लिया जाएगा कि आगामी सर्दियों के दौरान दूरदराज के क्षेत्रों में सैनिकों की संख्या कितनी रखी जाए, जिससे कि सैन्य आपूर्ति श्रंखला बाधित न हो.
लगभग 3500 किलोमीटर लंबी विवादित लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के लदाख सेक्टर में भारतीय सेना चीन के विरुद्ध एक लंबे चलने वाले संभावित संघर्ष के लिए स्वयं को तैयार कर रही है. और इसके लिए सम्भवतः उसे ज्यादा सैनिक सीमा पर भेजने पड़ेंगे.
इसी के मद्देनजर सेना ने निर्णय लिया है कि वह अगले छह हफ्तों में यह पता करेगी कि सीमा पर दूरदराज के क्षेत्रों में कितने सैनिक तैनात किए जाएं जिससे आपूर्ति श्रृंखला बाधित न हो.
सेना के सूत्रों के अनुसार लद्दाख सेक्टर में सेना ने तीन डिवीजन तैनात की हैं जिनमे से दो डिवीजन देश के अन्य हिस्सों से लाई गई हैं.
इन डिवीजनों में से एक, जिसकी उस क्षेत्र में अब तक ऑपरेशनल भूमिका नहीं थी, के लिए रसद आपूर्ति सुनिश्चित करना ज्यादा मुश्किल हैं. पिछले दो महीनों में मैदानी इलाकों से लद्दाख भेजी गई अन्य अतिरिक्त यूनिटों के लिए भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति होने होने वाली है।
LAC पर तैनात अतिरिक्त सैनिक अगर सर्दियों तक इन स्थानों पर बने रहते हैं, तो दूरदराज के पहाड़ी इलाकों के हिसाब से सेना की लंबी आपूर्ति श्रृंखला का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक हो जाता है.
रसद आपूर्ति में बाधाएं आने का साफ मतलब है कि अतिरिक्त सैनिक बल जो लद्दाख में लंबे समय के लिए तैनात रह सकते हैं, की संख्या में कमी करनी पड़ जाएगी.

लद्दाख़ में भारत चीन सीमा विवाद

एक सैन्य अधिकारी, जो सेना की उत्तरी कमान के लॉजिस्टिक प्रभारी रहे हैं, ने बताया कि “यदि अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया जाना है और सर्दियों में सतर्कता की उच्च स्थिति में रहना है, तो रसद की सप्लाई एक चुनौती होगी. सामान की खरीद से लेकर जवानों की तैनाती वाली जगह तक आवश्यक संसाधन पहुँचा पाना एक मुश्किल कार्य होता है. मौजूदा सैन्य स्तरों के लिए नियमित मेन्टेनेन्स मुद्दा नहीं है, लेकिन ठंड के मौसम में दर्रों के बंद होने और सड़कों के कट जाने से पहले कैसे सारे संसाधन जुटाने हैं, अगले छह हफ्तों में इस पर अंतिम निर्णय करना होगा”.
सेक्टर में सेना के लिए रसद की आपूर्ति सेना द्वारा एडवांस विंटर स्टॉकिंग (एडब्ल्यूएस) के माध्यम से प्रदान की जाती है जो गर्मियों के महीनों में होती है. आपूर्ति दो मार्गों से होती है – श्रीनगर से लेह तक ज़ोजी ला पास से होकर और, मनाली के रास्ते से. ज़ोजी ला मार्ग पर ‘टर्न अराउंड’ दो सप्ताह का होता है, वहीं मनाली एक्सिस के लिए यह 17-18 दिन है।
ये दोनों मार्ग बर्फबारी के कारण दिसंबर की शुरुआत तक बंद हो जाते हैं लेकिन सेना किसी भी आकस्मिक स्थिति के लिए नवंबर की शुरुआत तक रसद काफिले की आवाजाही को पूरा करने का प्रयास करती है। रसद गणनाओं के आधार पर सर्दियों के महीनों में कुछ गैर-जरूरी सैनिकों को वहाँ से हटाने पर सेना द्वारा विचार किया जा सकता है।
सियाचिन या द्रास के विपरीत, पूर्वी लद्दाख में कम मात्रा में बर्फबारी होती है, जिससे स्थानीय सड़कें सर्दियों के महीनों में भी खुली रह सकती हैं, साथ ही इलाके की समतल भूमि हेलीपैड के निर्माण को आसान बनाती है. यह आंतरिक परिवहन को निर्बाध बनाता है. लेकिन चूंकि लद्दाख में किसी भी प्रकार की स्थानीय उत्पादकता या उद्योग का अभाव है, सभी आपूर्ति और भंडार बाहर से ही लाए जाने पड़ेंगे.
“यह प्रक्रिया खरीद के साथ शुरू होती है जिसके लिए अनुबंधों पर हर साल मार्च में हस्ताक्षर किए जाते हैं. नए अनुबंधों पर अब हस्ताक्षर करने होंगे और अधिक परिवहन, वाहन, स्टॉकिंग संसाधनों की व्यवस्था करनी होगी. मार्ग खुला होने तक ही रूटीन रखरखाव संभव है. अधिकारी ने कहा कि वायु सेना का उपयोग भी बड़ी चुनौती है क्योंकि ज्यादा ऊंचाई पर स्थित होने के कारण और विपरीत मौसम को देखते हुए लेह एयरबेस की अपनी समस्याएं है.
तापमान के एक बार एक निश्चित सीमा से नीचे जाने पर विमान पूरे भार के साथ लेह से उड़ान नहीं भर सकता है. यहां पर गर्मियों के दौरान वापसी उड़ानों के लिए कटऑफ के रूप में दोपहर से पहले का समय निश्चित होता है. अमेरिकी सी -130 जे विमान उस स्थिति में बहुत बेहतर हैं, लेकिन पुराने रूसी आईएल -76 परिवहन विमान की क्षमता गंभीर रूप से सीमित हैं.
आपूर्ति के अलावा, अन्य चुनौती उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए सैनिकों को विशेष कपड़े प्रदान करना है, जहां तापमान शून्य से 25 डिग्री नीचे जा सकता है. एक अन्य अधिकारी ने कहा कि पिछले छह हफ्तों में मैदानी इलाकों से लद्दाख में स्थानांतरित की गई कुछ इकाइयों को क्षेत्र में रखे गए अधिशेष स्टॉक से आपूर्ति की जा रही है, जबकि डिपो में आरक्षित स्टॉक को भी आगे बढ़ाया गया है.
अधिकारी ने कहा कि अतिरिक्त सैनिकों के लिए आवास की व्यवस्था में फिलहाल कोई बाधा नहीं है क्योंकि वे सितंबर तक कई स्थानों पर सामान्य टेंट का उपयोग कर सकते हैं. तब तक, सर्दियों के लिए सैनिकों को पर्याप्त संख्या में बर्फ या आर्कटिक टेंट उपलब्ध कराए जाएंगे, अधिकारी ने कहा कि अर्ध-स्थायी निवास का निर्माण अभी विचार के अधीन नहीं है.

(यह लेख रक्षा मामलों के विशेषज्ञ सुशांत सिंह के Indian Express , Delhi में छपे लेख का हिंदी रूपांतरण है जिसे पूर्व वायु सेना अधिकारी अनुपम तिवारी ने मीडिया स्वराज के लिए अनुवादित किया है)

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