आज का सूर्यग्रहण क्या सन्देश लेकर आ रहा है ? एक वैज्ञानिक विवेचना 

  डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी , वैज्ञानिक प्रयागराज 

 आषाढ़ अमावस्या ,इक्कीस जून ,रविवार को सूर्यग्रहण 10 बजकर 20 मिनट पर प्रारम्भ होगा ,दोपहर 1 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगा। इसका सूतक काल 12 घंटे पहले २० जून की रात्रि 10 बजकर 20 मिनट से शुरू हो जाएगा। यह ग्रहण भारत ,नेपाल ,पाकिस्तान ,सऊदी अरब ,यूएई , इथोपिया और कांगो में दिखेगा। यह वलयाकार सूर्यग्रहण है जिसमे चन्द्रमा ,पृथ्वी और सूर्य के बीच में आता है और सूर्य के मध्यभाग को पूरी तरह ढक लेता है जिसके फलस्वरूप सूर्य का घेरा एक चमकती अंगूठी की भांति प्रतीत होता है। इस प्रकार का सूर्यग्रहण जो सूर्य दिन रविवार को घटित हो रहा है निश्चित रूप से कुछ विशिष्टता समेटे है। खगोलशास्त्रियों का मत है की ऐसा सूर्यग्रहण आज से पूर्व 21 अगस्त 1933 को संपन्न हुआ था और आज के बाद 21 मई 2034 को संपन्न होगा। वैज्ञानिकों का मत है की सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण नैसर्गिक खगोलीय घटना है जो एक निश्चित समय के अंतराल पर घटता रहता है यह उसी प्रकार से है जैसे रात दिन होते हैं ,सर्दी ,गर्मी ,बरसात होते हैं अपने नैसर्गिक नियमों के अंतर्गत। 

 

आपके शहर में ग्रहण का समय

आधुनिक विज्ञान के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य से हुयी ,हजारों वर्ष पूर्व वैदिक साहित्य में सूर्य को इस विश्व का आत्मा और पिता माना गया है –आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्षे सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च –ऋगवेद 1 /115 /1 पृथ्वी का अस्तित्व सूर्य से ही है। ऋग्वेद के पंचम मंडल के सूक्त 40 के मन्त्र 5 से 8 में यह उल्लेख मिलता है कि  जब स्वर्भानु नामक असुर ने सूर्य को माया द्वारा निर्मित अंधकार से ढक लिया था तब सभी लोक अंधकारपूर्ण हो गए।

 इंद्र ने सूर्य के नीचे वाले स्थान में फैली हुयी स्वर्भानु की दिव्य माया को दूर भगा दिया। अत्रि ऋषि ने चार ऋचाएं बोलकर कर्मों में बाधक अंधकार द्वारा ढके हुए सूर्य को प्राप्त किया था। सूर्य ने तब अत्रि से कहा हे अत्रि इस प्रकार की अवस्था में पड़ा मैं तुम्हारा सेवक हूँ  इस अन्न की इच्छा के कारण द्रोह करने वाले असुर भय जनक अंधकार द्वारा मुझे न निगलते ,तुम मेरे मित्र और सत्य का पालन करने वाले हो तुम और वरुण मेरी रक्षा करो।  अत्रि ने सूर्य रूपी नेत्र को अंतरिक्ष में स्थापित किया और स्वर्भानु की माया को दूर कर दिया —

       यं वै सूर्य स्वर्भानुसत्मासाविद्यदासुराः ,अत्रायस्म्नवविन्दननाहिंए अश्कनुवन –अर्थात स्वर्भानु नामक असुर ने जिस सूर्य को अंधकार द्वारा जकड लिया था अत्रि ने उसे स्वतन्त्र किया ,अन्य किसी में इतनी शक्ति नहीं थी। उल्लेखनीय है की पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध के आकाश में दिखने वाला एक तारामंडल सप्तर्षि मंडल कहलाता है इसके चार तारे चौकोर तथा तीन तिरछी रेखा में रहते हैं। अत्रि इनमें  एक तारा हैं अन्य छह हैं कश्यप ,भारद्वाज ,विश्वामित्र ,गौतम ,जमदग्नि और वशिष्ठ। ऐसी कोई खगोलीय घटना कभी घटी यह शोध का विषय है। 

     वैदिक साहित्य का स्वर्भानु वैदिकोत्तर पुराकथाशास्त्र में राहु केतु हो गया। पुराणों के अनुसार देवगण जब अमृतपान करने लगे तब यह दानव स्वर्भानु प्रच्छन्न रूप धारण कर अमृतपान में शामिल हुआ। अमृत इसके गले तक ही पहुँच पाया था कि  सूर्यचंद्र ने इसके दैत्य होने की सूचना विष्णु को दे दी। विष्णु ने तत्काल इसका शिराच्छेद किया। इसके शिर से केतु का निर्माण हुआ और शिरविहीन राहु कहा जाने लगा। इन दोनो का द्वेष सूर्य और चन्दमा से कम  नहीं हुआ जिसके कारण सूर्य और चंद्रग्रहण होते हैं। पौराणिक आख्यानों के आधार पर सूर्यग्रहण को राहु केतु के मिथक के आधार पर माना जाता रहा। आज से लगभग पंद्रह सौ साल पहले महान गणितज्ञ ज्योतिषी आर्यभट्ट  ने अपनी पुस्तक आर्यभटीय में सूर्यग्रहण का वैज्ञानिक कारण बताया। आर्यभटीय के गोलपाद में लिखा गया –छादयति शशी सूर्य शशिनं महती च भूच्छाया –अर्थात जब चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ती है तब चंद्र ग्रहण होता है ,जब पृथ्वी पर चन्द्रमा की छाया पड़ती है तो सूर्यग्रहण होता है। 

    ज्योतिषविदों का मत है कि  यह सूर्यग्रहण विशिष्ट प्रकृति का है अतः यह समाज में खर मंडल मचाएगा। उनका कहना है की यह सूर्यग्रहण अत्यंत संवेदनशील है जो मिथुन राशि पर होने जा रहा है। इस ग्रहण के समय मंगल मीन में स्थित होकर सूर्य ,बुध , चन्द्रमा और राहु को देखेगा जो अशुभ स्थिति का कारक है। ग्रहण के समय छह गृह शनि ,गुरु ,शुक्र , और बुध वक्र होंगे राहु और केतु तो वक्री हैं ही। छह ग्रहों का एक साथ वक्री होना अशुभ फलदायक का द्योतक है। 

    ऐसी विकट स्थिति में चेन्नई के न्यूक्लियर और अर्थ विज्ञानी डा के यल सुंदरकृष्णा का दावा आशा का प्रकाश है जिसमे उन्होंने कहा की पिछले 26 दिसंबर 2019 को हुए सूर्यग्रहण का सीधा सम्बन्ध कोरोना वायरस से है और 21 जून को होने वाले सूर्यग्रहण को कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा। डा सुंदरकृष्ण की अवधारणा के अनुसार 26 दिसंबर को हुए सूर्यग्रहण के बाद उतसर्जित विखंडन ऊर्जा के कारण न्युट्रान कणों के संपर्क में आने पर कोरोना वायरस टूटा। इस ग्रहण के बाद सौर मंडल के ग्रहोंकी स्थिति में बदलाव हुआ और अन्तः ग्रह बल भिन्नता के कारण वायरस का प्रकोप हुआ। डा कृष्णा के अनुसार बाहरी वायुमंडल  में बायोमालिक्यूल प्रोटीन और बायो न्यूक्लियर के संपर्क में आने से प्रोटीन के म्यूटेशन से कोरोना वायरस की तीव्रता तेज हुयी प्रतीत होती है। 

      डा कृष्णा के अनुसार म्यूटेशन प्रॉसेस सबसे पहले चीन में शुरू हुआ होगा। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता की यह जानबूझ कर किया गया प्रयास हो। डा कृष्णा का मत है की 21 जून के सूर्यग्रहण से सूर्य की किरणों की तीव्रता वायरस को निष्क्रिय कर सकती है। इस सूर्यग्रहण के काल में ग्रहों की जो स्थिति होगी उसमे अन्तः ग्रह बलभिन्नता भी कोरोना के निदान का कारण बन सकता है। सूर्यनारायण विज्ञानी की अवधारणा को सच साबित करें–उद्यते नमः उदायते नमः उदियात नमः। अथर्ववेद के आदित्य सूक्त में कहा गया है —

विश्वरूपम चतुरक्षम कृमिं सरंगमार्जुनाम 

श्रिणामयस्य पृष्टिरपि वृश्चामि याच्छिरः 

अर्थात सूर्य नारायण कहते हैं की मैं नाना आकार वालों ,चार आखों वाले चितकबरे रंग के अवं धवल वर्ण के कीटाणुओं का विनाश करता हूँ ,मैं उन कीटाणुओं के शीश और पीठ का भी विनाश करता हूँ। 

       यह सूर्यात्मक परमात्मा हमारा पालनकर्ता जन्मदाता और बंधु  है -अथर्ववेद 2 /1 /3 

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