शंकराचार्य स्वरूपानंद के उत्तराधिकारी : बदरिकाश्रम पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द और द्वारका शारदापीठ पर स्वामी सदानन्द 

ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य ब्रहमलीन स्वरूपानंद के उत्तराधिकारी घोषित कर दिए गए हैं। ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती और द्वारका शारदापीठ पर स्वामी सदानन्द सरस्वती को उत्तराधिकारी घोषित किया गया है।यह घोषणा स्वामी स्वरूपानंद के निजी सचिव रहे ब्रह्मचारी श्री सुबुद्धानन्द ने मंगलवार को परमहंसी गंगा आश्रम में आयोजित एक पत्रकार वार्ता में की।

ब्रह्मचारी श्री सुबुद्धानन्द  ने घोषणा करते हुए कहा मेरा जीवन तो तभी धन्य हो गया था जब मैं छोटी सी उम्र में पूज्य महाराजश्री की सेवा में आ गया था। अपने जीवन की इस धन्यता का मुझे पग-पग पर अनुभव तब होता था जब मैं पूज्य महाराज श्री को मुझ पर पूर्ण विश्वास करते हुए देखता था और अब मुझे इस बात की अत्यन्त प्रसन्नता है कि पूज्य महाराजश्री ने अपने उत्तराधिकारियों की घोषणा करने का दायित्व मुझे प्रदान किया और मैं उसे निभा सका।

मठों की स्थापना 

श्री ब्रम्हचारी जी ने बताया कि आदि शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म की निरन्तर रक्षा के लिए भारत की चार दिशाओं में चार आम्नाय मठों की स्थापना की और उन पर अपने सुयोग्य शिष्यों को अभिषिक्त कर यह परम्परा बनाई कि पीठासीन आचार्य अपने उत्तराधिकारी चयन करेंगे परन्तु वह चयनित उत्तराधिकारी पीठासीन आचार्य के अन्त होने पर ही आचार्यत्वेन अभिषिक्त होकर रिक्त स्थान की पूर्ति करेंगे। मठाम्नाय महानुशासनम्  के इसी निर्देश के अनुसार पूज्य महाराजश्री ने अपने उत्तराधिकारी तैयार किए और अपने अन्त में उनको आचार्यत्व प्रदान करने का दायित्व अपने अन्तिम इच्छा पत्र को तैयार कर दिया और इच्छा पत्र हमें देते हुए निर्देश दिया कि हमारे ब्रह्मलीन होने के बाद तुम हमारे इस इच्छा पत्र के अनुसार मेरे द्वारा चयनित दो दण्डी संन्यासी शिष्यों को हमारे द्वारा बताए गए क्रम से पीठों पर अभिषिक्त कर देना। 

उन्होंने कहा , “हमें प्रसन्नता है कि पूज्य महाराजश्री की समाधि के पूर्व मैंने इच्छा पत्र और आदेश का पालन करते हुए ज्योतिष्पीठ पर पूज्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज और द्वारका शारदापीठ पर पूज्य स्वामी सदानन्द सरस्वती जी महाराज के नामों की घोषणा, अभिषेक, तिलक और चादर कर सका।” 

दो ही दण्डी संन्यासियों को दी दीक्षा

पूज्य महाराजश्री अपने उत्तराधिकारियों के बारे में पूर्णतः आश्वस्त थे। इसीलिए उन्होंने 19 साल पहले ही इन दोनों को दण्ड संन्यास दिया था जिनका समाधि से पूर्व अभिषेक किया गया है। न तो इसके पहले और न ही इन दोनों के बाद उन्होंने किसी को दण्ड संन्यास दिया। क्योंकि दण्डी संन्यासी शिष्य ही शंकराचार्य पीठ पर उत्तराधिकारी होता है।

ब्रह्मचारी जी ने आगे बताया कि पूज्य महाराजश्री के दोनों दण्डी संन्यासी शिष्य और  नवपदाभिषिक्त दोनों आचार्य 40 वर्षों से भी अधिक समय से पूज्य महाराजश्री के सान्निध्य में रह रहे हैं। दोनों ही ने इतनी लम्बी अवधि में संस्था और महाराजश्री का मान बढ़ाया ही है। आज पूरे देश में धर्म के क्षेत्र में दोनों का ही अपना नाम है।

photo of Shankarachary Swroopanand
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी

भावी कार्यक्रम

पूज्य महाराजश्री स्वरूपानंद 11 सितम्बर को ब्रह्मलीन हुए और 12 सितम्बर को उनकी स्थिर समाधि लगाई गई है। अब दशाह पर्यंन्त प्रतिदिन आत्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा का तर्पण, भगवान् श्री नारायण का समाधि स्थल पर पूजन, पायस बलि और ब्रह्म को अर्घ्यदान होगा। 21 सितम्बर को यति पार्वण 22 सितम्बर को नारायण बलि और आराधना सम्पन्न होगी। 23 सितम्बर को भण्डारा और श्रद्धाञ्जलि सभा आयोजित की जाएगी। उसी सभा में दोनों पीठों के आचार्यों के पट्टाभिषेक महोत्सव की तिथि भी घोषित की जाएगी।

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