महाकाल की महाशक्ति –महाकाली की वैज्ञानिकता

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज 

 महाकाल की महाशक्ति महाकाली के सम्बन्ध में कालीतंत्र में कहा गया है —

शवारुढा  महाभीमा  घोरदृष्टां  हसन्मुखी 

चतुर्भुजा खडमुंडवारामायकाराम शिवायं 

मुण्डमालाधरा देवी लालजिह्वां दिगम्बराय 

एवं संचिन्तयेत काली श्मशानवासिनीम 

यहमहाकाली शव पर सवार है ,उसके शरीर की आकृति महाडरावनी है। उसकी दृष्टि अत्यंत तीक्ष्ण और महाभयावह है। ऐसी महाभयानक रूपवाली आदिमाया हँस रही है। उनके चार हाथ हैं ,एक हाथ में खड्ग है ,एक में नरमुंड है ,एक में अभय मुद्रा है ,एक में वर है। गले में मुण्डमाल है। जिह्वा बाहर निकल रही है। वह सर्वथा नग्न है ,श्मशान ही उसकी आवासभूमि है। महाकाली के इस ध्यानरूप का रहस्य अत्यंत गूढ़ है। 

    प्रलयकाल में समस्त ब्रह्माण्ड शव हो चुका है ,आदि शक्ति इस शव पर आरूढ़ है। सारे ग्रह ,नक्षत्र ,आकाशगंगाओं का अस्तित्व महाकाली में सिमट गया है –नरमुंड के प्रतीक के रूप में। हसन्मुखी माँ महाकाली अट्टहास कर रही है। माँ नग्न है क्योंकि ब्रह्माण्ड जो मां का वस्त्र है उसका अस्तित्व समाप्त हो चुका है। मां का यह रूप डरावना नहीं है ,यही अभय प्रदान करती है। महाकाली की वंदना हम उसके ग्यारह रूपों में करते हैं —

ओउम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते 

काली के लिए कहा जाता है –कलयति भक्षयति प्रलयकाले सर्वम इति काली –जो प्रलय काल में सम्पूर्ण सृष्टि को अपना ग्रास बना लेती है वह काली है। सृष्टि विजयिनी इस काली की जयंती और मंगला रूप में  ही सृष्टि के निर्माण की मंगलकामना निहित है जो भद्रकाली के रूप में भद्र और सुख के साधन सृष्टि में सृजित करते हैं। कपालिनिरूपा ग्रह ,नक्षत्र आकाशगंगाओं ,  को धारण करती है। यही महाशक्ति दुर्गा के रूप में कर्म और उपासना की शक्ति का विस्तार करती है। सृष्टि का निर्माण करते हुए माँ की क्षमाशक्ति जो करुणामय जननी का स्वभाव होता है वह प्राणियों को क्षमा प्रदान करते हुए सृष्टि में चेतनशील प्राण संचारित करती है उसकी रक्षा करती है उसका पालन करती है। यही शक्ति कल्याणकारी जगदम्बा शिवा है जिसकी धात्री महाशक्ति सृष्टि के सम्पूर्ण प्रपंच धारण करती है। स्वाहारूप में यही माँ कर्मयज्ञ की हविषा को ग्रहण कर जीवन के देवताओं को  वितरित कराती है। माँ की स्वधा शक्ति से ही पितरों का पोषण होता है। 

  वैज्ञानिक धारणा के अनुसार ब्रह्माण्ड की निरंतरता ब्रह्माण्ड के विस्तारण और संकुचन की सतत प्रक्रिया से है। ब्रह्माण्ड के विस्तारण से दिग -स्पेस का सृजन होता है। दिग से द्रव्य का निर्माण होता है जिसे दिग धारण करता है। ग्रह ,नक्षत्र ,आकाशगंगाये अस्तित्व में आती हैं। संकुचन पर समस्त आकाशगंगाएं ,निहारिकायें ,सारे तारामंडल समीप आते जाते हैं जो अंततः एक छोटे से विन्दु में समाहित हो जाते हैं। वैज्ञानिकों का मत है की इसका भार 10 टू पावर 48 टन आंका गया है। यही महाप्रलय की स्थिति है। 

 यही विन्दु ही ब्रह्म है सत -चित -आनंद ,सत अर्थात ब्रह्मांडीय नियम ,चित अर्थात चेतना ,आनंद अर्थात संतुलन। ब्रह्मरूपा महाशक्ति में सारे ब्रह्मांडीय नियम सारी  चेतना संतुलन की स्थिति में आ जाते हैं। यही महाकाल की महारात्रि है। यही बिंदु महाकाली है महाशक्ति है। चित में विक्षोभ होता है जिसके फलस्वरूप महाविस्फोट होता है। इस विस्फोट की ध्वनि ही महाकाली का अट्टहास है।

महाप्रलय की ऊर्जा –महाशक्ति महाकाली ब्रह्माण्ड के विस्तारण और संकुचन की शक्ति है ,इस आदि शक्ति के लिए– तत्सृष्टा तदेवानुप्राविशत कहा गया है अर्थात यह महाशक्ति सृष्टि का निर्माण कर उसी में प्रविष्ट हो जाती है।निर्माण करती है ,पालन करती है ,लय करती है।  

 या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिताम नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः। 

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